हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के जैव रसायन विभाग द्वारा ‘मोरिंगा की क्षमता को पहचानना:विश्व स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन के प्रति सहनशीलता के अवसर’ विषय पर 10 दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस कार्यशाला में 25 प्रतिभागियों ने भाग लिया जिसमें हकृवि के अलावा जीजेयू हिसार, एसकेएनएयू जोबनेर, डॉ. वाईएस परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टिकल्चर एंड फोरेस्ट्री व उतरांचल यूनिवर्सिटी देहरादून, के विद्यार्थी व वैज्ञानिक शामिल थे। कार्यशाला के समापन अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज मुख्यातिथि रहे।
कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने अपने संबोधन में कहा कि मोरिंगा स्वास्थ्य लाभ वाले पोषक तत्वों का एक प्रमुख स्त्रोत है। मोरिंगा सेहत के लिए वरदान है। इस पौधे के सभी भाग फायदेमंद होते हैं लेकिन इसके पत्ते अधिक गुणकारी होते हैं। मोरिंगा ना सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद है बल्कि इसे ब्यूटी प्रोडक्ट के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।
इसमें विभिन्न प्रकार के विटामिन पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं। मोरिंगा एक बहुउद्देशीय पौधा है जिसे आहार, औषधीय, औद्योगिक और चारे के उद्देश्य से भी उगाया जाता है। चारे की फसल के रूप में मोरिंगा को बढ़ावा दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि खाद्य पदार्थों के अलावा मोरिंगा का प्रयोग ईंधन, पशु चारा, उर्वरक, सौंदर्य प्रसाधन एवं इत्र में भी किया जाता है। प्रो. काम्बोज ने बताया कि मोरिंगा हीमोग्लोबिन को बेहतर बनाने में मदद करता है। रक्तचाप व कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है। लीवर और किडनी को डिटॉक्सीफाई करता है। वजन को घटाने व शुगर लेवल को नियंत्रित करता है। तनाव, चिंता को कम करता है।
थायराइड फंक्शन में सुधार करता है। स्तनपान कराने वाली माताओं के दूध में बढ़ोतरी करता है। प्रो. काम्बोज ने सभी प्रतिभागियों से इस कार्यशाला का लाभ उठाने के लिए कहा और अलग-अलग विभागों को मिलकर कार्य करने के लिए प्रेरित किया। कार्यशाला के समापन अवसर पर कुलपति ने प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र व मोरिंगा के पौधे भी वितरित किए।
अनुसंधान निदेशक डॉ. राजबीर गर्ग ने बताया कि मोरिंगा को लेकर विश्व स्तर पर अनुसंधान किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि मोरिंगा की खासियत यही है कि इसे पानी की कमी होने की स्थिति में भी उगाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि मोरिंगा को सुपरफूड के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि ये कई तरह के जरूरी पोषक तत्वों, खनिज पदार्थों और विटामिंस का बेहतरीन स्त्रोत है। उन्होंने कहा कि इस परियोजना के तहत हकृवि और न्यूजीलैंड की मैसी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक मोरिंगा पर संयुक्त रूप से शोध कार्य करेंगे।
विभागाध्यक्ष डॉ. जयंती टोकस ने इस अतंर्राष्ट्रीय कार्यशाला एवं प्रशिक्षण के दौरान विभिन्न सत्रों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा यह कार्यशाला ‘स्पार्क’ परियोजना के तहत आयोजित की गई। शोधार्थी अमीषा व सुजीता ने कार्यशाला के संबंध में अपने अनुभव व सांझा किए।
कार्यशाला के दौरान डॉ. चंदरेश कुमारी, डॉ. अक्षय भूकर, डॉ. क्रेग मैकगिल, डॉ. योगेश जिंदल, डॉ. भागीरथ सिंह चौहान, डॉ. राजेन्द्र सांगवान, डॉ. ब्लेयर मोसेस कामांगा, डॉ. नीरू रेडू, डॉ. जसबीर सिंह, डॉ. अमित गोस्वामी, डॉ. भारतभूषण, डॉ. अतुल जैन, डॉ. अनिल दाहुजा, डॉ. फियोना, डॉ. सीमा परमार, डॉ. मुरलीधर, डॉ. शिखा यशवीर, डॉ. सुरेन्द्र धनखड़ व डॉ. संदीप आर्य ने मोरिंगा से संबंधित अपने व्याख्यान दिए।
मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. राजेश गेरा ने कार्यशाला में आए हुए सभी प्रतिभागियों एवं अधिकारियों का स्वागत किया जबकि धन्यवाद प्रस्ताव डॉ. अक्षय भूकर ने पारित किया। मंच का संचालन यामिनी ने किया। इस अवसर पर सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी, शिक्षक, गैर शिक्षक, प्रतिभागी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।