वाराणसीः कचहरी का “धाकड़” वकील श्रीनाथ त्रिपाठी माननीय जिला जज से गुहार लगा रहा है कि उसे मजिस्ट्रेटों के भ्रष्टाचार से बचाया जाए। बकौल उसके कुछ अपर सत्र न्यायाधीशों के कारण भ्रष्टाचार की स्थिति बनी हुई है।
हमारा मोर्चा ने प्रस्तुत मुद्दे को लेकर कचहरी के वकीलों और एक से अधिक पेशकारों से सघन बातचीत की और बातचीत में जो बात निकलकर आई वह चौंकाने वाली है।
खुद श्रीकांत त्रिपाठी अपराधी प्रकृति का और पक्का दल्ला है, कचहरी के सभी न्यायमूर्ति उसकी समस्त अदाओं से परिचित हो चुके हैं। प्रभावी-शानदार वकीलों के पास तीक्ष्ण बुद्धि, तर्क करने की अद्भुद क्षमता होती है और अपने तर्कों-तथ्यों को संप्रेषणीय भाषा में प्रस्तुत करने में निष्णात होते हैं। जो फीचर्ड इमेज लगाई गई है, उसे पढ़कर कोई भी आसानी से समझ सकता है कि श्रीकांत त्रिपाठी का भाषाई ज्ञान अत्यधिक दयनीय स्तर का है, जिस तरह के वाहियात तर्क यह प्रस्तुत कर रहा है, उससे इसके मंदबुद्धि होने का पता चलता है।
अगर हम इसी के तर्क को आगे बढ़ाएं तो अपर सत्र न्यायाधीशों की शिकायत जिला जज से और जिला जज की शिकायत हाईकोर्ट में और हाईकोर्ट के न्यायमूर्तियों की शिकायत सुप्रीम कोर्ट में और सुप्रीम कोर्ट के माननीय जजों के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने जैसी बातें हताश-निराश, कुंठित-ईर्ष्यालु वकील करते रह सकते हैं।
श्रीकांत त्रिपाठी का बौद्धिक स्तर कितना उन्नत है और यह कानून और संविधान में कितनी आस्था और विश्वास रखता है, इसकी बानगी देखी जाएः
पता चला है कि ईमानदार और उसूल के पक्के कुछ अपर सत्र न्यायाधीशों ने इसकी पेशकशों को ठुकरा कर इसे बेइज्जत करके भगा दिया था। अपनी उसी खीझ को यह बौड़म लिपिबद्ध कर रहा है। अब यह तो मानी हुई बात है कि श्रीकांत त्रिपाठी की तरह का अनपढ़-जाहिल और मंदबुद्धि वकील जिरह करने की जगह पर तोड़-पानी करके काम चलाना चाहेगा।
सलाम है उन सत्यनिष्ठा से बंधे अपर सत्र न्यायाधीशों को, जिन्होंने इस दल्ले को उसकी औकात बता रखी है।
वकालत के पेशे में पूरी जिंदगी खपा देने वाले इस गधे को यह भी नहीं मालूम कि अभियुक्त के द्वारा सिर्फ इकबाले जुर्म करने से कुछ नहीं होता, कोर्ट में अपराध को साबित करना होता है और उसकी समुचित कार्यविधि है, कोर्ट की कार्यवाही में जिसका पालन किया जाता है। मसलन, अगर हत्या हुई है तो हत्या किसने की है, किस हथियार से की है और क्यों की है, कोर्ट में इसे सप्रमाण बताना-साबित करना होता है। अगर अभियुक्त के जुर्म का इक़बाल कर लेने भर से सजा होती तो उसके इन्कार करने पर वह बाइज्जत बरी भी हो जाता, लेकिन ऐसा होता नहीं है।
फर्ज कीजिए कि किसी के बेटे से हत्या जैसा गुनाहे-अज़ीम हो गया और उसने पुलिस-कोर्ट में यह बात मान भी ली तो क्या उसे उस दशा में सजा हो जाएगी, जबकि उसका बाप-भाई, पत्नी या दोस्त आकर यह कहे कि अजी हत्या उसने नहीं मैंने की है। कहने की जरूरत नहीं अदालत में समुचित प्रोसीडिंग्स का अनुसरण किया जाएगा, फिर अपराध के साबित होने पर सजा सुनाई जाएगी।
कामता प्रसाद
कार्यकारी संपादक