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वोट चाहिए मुसलमान नहीं, गोश्त चाहिए गोश्त की दुकान नहीं, साड़ी चाहिए बुनकर नहीं, हज के नाम पर रेवेन्यू चाहिए पर हाजी नहीं, बॉर्डर पर तो हम चाहिए पर कैबिनेट में नहीं, चुनाव में हमारा नाम चाहिए इस्तेमाल के लिए लेकिन वोटर लिस्ट में मेरा नाम नही, पंचर वाला अब्दुल तो पसंद है लेकिन रुतबे वाला बर्दाश्त नहीं ,देश की अर्थव्यवस्था में साझेदार तो चाहिए पर सत्ता में भागीदार नहीं जेल में तो हम प्यारे हैं पर स्कूल में बेचारे हैं
मुस्लिम विरोध में अंधे हो चुके मेरे जज्बाती भारतवासियों इस शख्स ने अगर आप लोगों से नाक से लकीर ना खिंचवाई तो कहिएगा शर्ट स्क्रीन करके रख लीजिए शायद आप रोना चाहेंगे पर आंसू नहीं निकलेगा क्योंकि पार्टी तो अभी शुरू हुई है।

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