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कशिश नेगी

अक्सर आजकल लोगों की शिकायत बढ़ती जा रही है कि लड़कियां भाग रही हैं. ”भागना ” शब्द सिर्फ
लड़कियों के लिए ही प्रयोग किया जाता है. “भागना “ शब्द का लड़कियों के लिए प्रयोग एक ”प्रोपेगंडा”
के रूप में किया जाता है. जैसे कि यदि एक दिवार पर रोज़ लात मार कर निकला जाए तो एक दिन वो
गिर जाती है ठीक यदि एक बात को रोज़ चिल्ला चिल्ला कर प्रचार व प्रसार किया जाए तो वह सच
प्रतीत होने लगता है. ऐसा नहीं है कि लड़कियां भाग नहीं रही है या हम इसे नकार रहे हैं बस उतना भी नहीं
भाग रही जितना प्रचार किया जा रहा. बाक़ी विच हंटिंग ने आजकल डिजिटल रूप ले ही लिया जिसका
उदाहरण सोशल मीडिया पर देखने को मिलता है. आखिर लड़कियां भाग क्यों रहीं हैं? इसकी जड़ में भी
पितृसत्ता की ही भूमिका है. हाँ!! आप बोल सकते हैं कि बस 2 शब्द सीख लेने से सभी दोषों को पितृसत्ता
के कंधे पर नहीं डाल सकते, यकीन मानिये, आपके ना मानने से सच नहीं बदल सकता. जो स्वतंत्रता
लड़कियों को एड़ी चोटी एक कर देने वाले संघर्ष से भी नहीं मिलती वो स्वतंत्रता लड़कों को थाली में
उपहार कि भांति परोसी हुई मिलती हैं. लड़कों के करियर के लिए अपनी ज़मीन जायदाद बेच देने वाले
अभिभावक लड़की को एक जिम्मेदारी या बोझ भी कह सकते हैं, की भांति पालते हैं और जल्द से जल्द
घर से दफा कर देना चाहते हैं. खुल कर जीने व आज़ादी का स्वाद चखने के लिए लड़कियों को भागना
पड़ता है यदि घर का माहौल अनुकूल हो जिसमें लड़कियों को आगे बढ़ने के सभी अवसर दिए जाते हों,
लड़के लड़कियों में कोई भेद ना हो, यदि ऐसा माहौल मिलेगा तो वो क्यों ही भागेगी? बाक़ी उन लड़कियों
के साथ भागते तो लड़के भी हैं, लेकिन वे ”भागने” की पूरी कहानी में मिस्टर इंडिया की तरह अदृश्य ही
रहता है. और “भागने” का पूरा ठीकरा फूटता हैं लड़की के सर, उसकी विच हंटिंग शुरू हो जाती है. इन
सबसे घरवाले या समाज सीख लेने के बजाय अपने घरों की अन्य लड़कियों पर शिकंजा और कस लेते हैं
जिससे अन्य लड़कियों का सांस लेना तक दूभर हो जाता है. इसका एक कारण घर की इज्जत का भारी
भरकम टोकरा लड़कियों के सर धर देना भी है. लड़की का “भागना” परिवार की इज्जत का मिट्टी में मिल
जाना जबकि लड़का कभी कहीं भी आ जा सकता है. दूसरा कारण है शिक्षा और कैरियर, भारतीय समाज
में महत्त्वकांक्षी लड़कियां अच्छी नहीं मानी जाती. भारतीय माँ –बाप जैसे तैसे लड़की की शादी कर निपट
जाना चाहते हैं इसीलिए जब लड़कियों की जबरदस्ती शादी की जाती है (किसी भी कारण से ) तब उनके
पास भागने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता. और कई बार तो घर का घुटनभरा माहौल, भेदभाव पूर्ण
रवैया, या एब्यूसीव माहौल से दुखी लड़की को किसी लड़के द्वारा भावनात्मक सपोर्ट मिलने पर अपनेपन
की चाह में घर से दूर भाग जाना ही बेहतर लगता है.
शादी के बाद भी स्त्रियों का घर से भागने का एक कारण घरेलू हिंसा होता है. अधिकतर लड़कियों को
आर्थिक सक्षम नहीं बनाया गया इसीलिए जब उन्हें बाहर से आर्थिक मदद के साथ भावनात्मक साथ
मिलता है तब उसे बेकार शादी से भाग जाना सही लगता है. माँ बाप द्वारा बोझ की तरह उतार फ़ेंकी गई

महत्वाकांक्षी लड़कियां ससुराल में घरेलू अनपेड काम करते करते जैसे तैसे पढ़ कर जब नौकरी हासिल
करती है और नीरस शादी से निकलने की कोशिश करती है तब भी ये समाज उनके पीछे पड़ जाते हैं. पत्नी
के मरने के बाद विधुर का शादी करना बहुत सामान्य है जबकि यदि को विधवा शादी कर ले तो यही
समाज विधुर विलाप करने लगता है.
असल में लड़की द्वारा सामान्य इंसान की तरह बर्ताव किया जाना समाज को पसंद नहीं, वे भूल जाते हैं
कि लड़की से पहले वह एक इंसान है. ये समाज लड़कियों को इंसान नहीं बल्कि एक अमूर्त बुत बनाना
चाहता हैं जिसे मानवीय अधिकार न दिए जाएँ. जबकि लड़को द्वारा कई घिनौने कामों तक में परदे डाल
दिए जाते हैं. लड़कियां भागती नहीं हैं बल्कि भागने के लिए विवश कर दी जाती हैं. वरना एक सुखद,
आरामदेह, अपने प्रिय को छोड़ कर कोई क्यों भाग जाना चाहेगा?

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