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वाराणसीः आप मतदान करने जाते है तो जो स्याही हाथ में लगती है क्या आपने सोचा है की ये कहाँ बनी? यह अमिट स्याही सीएसआईआर के लैब में बनी और आज भी प्रासंगिक है । यह बात हिन्दी प्रकाशन समिति द्वारा आयोजित कार्यशाला में लोकप्रिय विज्ञान पत्रिका विज्ञान प्रगति के संपादक और सीएसआईआर के वैज्ञानिक डॉ मनीष मोहन गोरे ने जंतु विज्ञान के एस पी रॉय चौधरी सभागार में कही।

उन्होंने कहा की विज्ञान दो रूपो में प्रचलित है; पहला अनुसंधान, दूसरा शिक्षकों द्वारा लेकिन इन विधियों द्वारा विज्ञान जन जन तक नहीं पहुचता है। विज्ञान को सामान्य जनता तक पहुँचाने में संचार माध्यमों को बड़ा योगदान है। इसलिये वैज्ञानिकों को अपना शोध प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया माध्यमों द्वारा लोगो तक पहुँचाने में कोई गुरेज़ नहीं करना चाहिए। जो लोग जादू भी दिखाते हैं उसके पीछे विज्ञान ही छिपा होता है । उन्होंने  इससे संबंधित नटराजन बनाम चिकमंगलूर पुलिस के रोचक केस को बताया। इसके अलावा उन्होंने विज्ञान से संबंधित कई महत्वपूर्ण बाते छात्र-छात्राओ को बतायी।

उन्होंने कार्यशाला में कई हैंड्स-ऑन ट्रेनिंग कराया और विद्यार्थीयो को क्लिष्ट विज्ञान को कैसे सरल भाषा में लिखा जाय को विभिन्न उदाहरणों द्वारा समझाया।

डॉ ऋचा आर्य ने अतिथि परिचय कराते हुवे बताया की डॉक्टर मनीष गोर CSIR में वैज्ञानिक व सहायक प्राध्यापक हैं। उन्होंने वनस्पति विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की है।  सीएसआईआर निस्पर में वह विज्ञान संचार विभाग के अध्यक्ष हैं। मनीष जी 15 वर्ष की आयु से वह विभिन्न माध्यमों में लेखन का कार्य कर रहे हैं।

वह अनेकों राष्ट्रीय सम्मानों से सुसज्जित है।  2021 में उनको राजभाषा गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 2016 में उन्हें प्यारेलाल विज्ञान लेखन सम्मान 2015 में शिक्षा पुरस्कार 2013 में शताब्दी सम्मान पुरस्कार प्राप्त हुआ। अतिथि का स्वागत करते हुवे, विज्ञान संकाय की छात्र समन्वयक प्रोफेसर मधु तपड़िया नें विद्यार्थीयो को बताया की यह कार्यशाला उनको अपने अंदर के हुनर को पहचानने के लिये आयोजित की गई है। आदरणीय महामना की परिकल्पना थी कि विज्ञान जन जन तक पहुँचे और इस संस्थान का सदस्य होने के नाते छात्र-छात्राओं का कर्तब्य है कि वो विज्ञान का गहन अध्ययन करे और सरल हिन्दी भाषा में लोगो तक पहुँचाए।

इस कार्यशाला का संचालन डॉ चंद्र शेखर पति त्रिपाठी ने और धन्यवाद ज्ञापन समिति के समन्वयक प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने किया।

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