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कितना कुछ था
जिसे पीछे छोड़ देना चाहती थी
तुम्हारी यादों को जो रातों को सोने नहीं देती
तुम्हारा स्पर्श जो अभी तक पीठ सहलाती है
तुम्हारी छाती का स्वाद जो अब भी थोड़ा नमकीन है
वह जगह
जहां हमारे मिलने से कई गुलमोहर के फूल एक साथ झड़ते थे
गुलमोहर की टहनी थोड़ा झुक कर हमारा सिर सहलाती थी
जिसकी छांव तले हमने महसूस किया प्रेम
जाना प्रेम का स्वाद
हमें देखकर चाय की टपरी वाला भी थोड़ी और गाढ़ी चाय बना देता
जी लेता अपने हिस्से का प्रेम
प्रेम करना इतना कठिन कभी नहीं था
जितना कठिन है प्रेम को पीछे छोड़ देना
कितना कठिन है
हृदय के उन तंतुओं को खुरच देना
जहाॅं तुम्हारा नाम उगा है
जहाॅं तुम्हारे लिए कभी घर बनाया था
प्रेम की झालर बुनते हुए तुमने उलझा दिए थे
केश में कई सफ़ेद फूल
तुमने कहा – उपयुक्त समय पर मिलने वाली संतुष्टि हो तुम
उन यादों और वादों को पीछे छोड़ते हुए
ज़रा वह सिगरेट सुलगा देना
जिसके धुएं में कुछ देर सुस्ता लेना आसान है।
ज्योति रीता