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फ़िराक़ गोरखपुरी आधुनिक उर्दू शायरी के मीर हैं: शमीम तारिकफ़िराक़ ने भारत की संस्कृति और मानवीय मूल्यों को विकसित किया है: आफताब अहमद अफाकी
बीएचयू के उर्दू विभाग में “फ़िराक़ गोरखपुरी: हयात और अदबी ख़िदमात” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया।
वाराणसी – उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी लखनऊ के सहयोग से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग द्वारा दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार “फ़िराक़ गोरखपुरी: हयात और अदबी ख़िदमात” का आयोजन किया गया, जिसका उद्घाटन सत्र विश्वविद्यालय के आर के हॉल में आयोजित किया गया। बैठक की अध्यक्षता कला संकाय के डीन एवं अंग्रेजी के प्रख्यात विद्वान प्रोफेसर माया शंकर पांडे ने की। अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने कहा कि यह उर्दू भाषा का सौभाग्य है कि उसने इस देश को फ़िराक़ जैसा महान शायर दिया।

फ़िराक़ अंग्रेजी भाषा के विशेषज्ञ थे और अंग्रेजी भाषा के लिए उनकी बहुमूल्य सेवाएं थीं, लेकिन उर्दू ने उन्हें प्रसिद्ध बना दिया। हिन्दी के प्रमुख साहित्यकार प्रो. औधेश प्रधान ने फ़िराक़ की महानता और उनकी उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि फ़िराक़ की शायरी का ख़मीर इसी धरती पर विकसित हुआ। उन्होंने अपनी शायरी के जरिए कई पुराने मूल्यों को पुनर्जीवित किया और फ़िराक़ को हिंदी के साथ-साथ उर्दू में भी पढ़ा जाता है।

उर्दू भाषा हमारी साझी सभ्यता का प्रतीक है और फ़िराक़ इस खूबसूरत भाषा के महान शायर हैं। उनकी शायरी हिंदी और उर्दू दोनों में समान है और उन्होंने कहा कि फ़िराक़ की शायरी में भारत का दिल धड़कता है उनके काव्य और गद्य दोनों ने काव्य के उच्चारण को भारतीयता से जोड़ा। अपने मुख्य भाषण में, प्रख्यात उर्दू लेखक शमीम तारिक ने फ़िराक़ की ग़ज़लों, कविताओं और रुबाई पर प्रकाश डाला और कहा कि फ़िराक़ आधुनिक ग़ज़ल के वास्तुकार हैं। वे कविता में प्रयोग करते रहे, इसीलिए उनकी कविता में विविधता है।

उनके व्यक्तित्व और कला दोनों ने संपूर्ण भारतीय साहित्य को प्रभावित किया है। उन्होंने फ़िराक़ के कलाम, सोच-विचार और साहित्यिक उपलब्धियों पर विस्तृत प्रकाश डाला और कहा कि फ़िराक़ ने ख़ुदाए सूख़न मीर तकी मीर का अनुसरण किया है और अपनी शायरी से हर दिल को छूने की कोशिश की है। इसीलिए उनके कलाम में मीर का सा सुज़ो गूदाज़ मिलता है। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषा साहित्य की जिन महान विभूतियों ने उर्दू को गौरव दिलाया उनमें रघुपति सहाय फराक गोरखपुरी का नाम शीर्ष पर है।

उनकी साहित्यिक और काव्य सेवाओं को पूरा उर्दू जगत मान्यता देता है। उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर आफताब अहमद अफाकी ने स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए कहा कि फराक ने अपनी शायरी और साहित्य के माध्यम से भाषा और साहित्य के साथ-साथ देश की साझी संस्कृति और मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने का भरपूर प्रयास किया उर्दू विभाग ने इस दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन इसलिए किया है ताकि फ़राक के साहित्यिक मिशन को आगे बढ़ाया जा सके और नई पीढ़ी फ़राक की शैक्षणिक और साहित्यिक उपलब्धियों से अच्छी तरह परिचित हो सके।

दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन सत्र विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर किया गया। इस अवसर पर परंपरा के अनुसार यू-यूनिवर्सिटी का कुलगीत प्रस्तुत किया गया तथा अतिथियों का स्वागत पुष्प, शॉल एवं मोमेंटो से किया गया एवं सेमिनार के आयोजन को विश्वविद्यालय विभाग की उर्दू सेवाओं की सराहना करते हुए एक स्वागत योग्य कदम बताया गया। विभाग के शिक्षक डॉ. मुशर्रफ अली ने संगठन का दायित्व निभाया तथा धन्यवाद ज्ञापन की रस्म डॉ. एहसान हसन ने निभाई। विभाग के शिक्षकों में डॉ. कासिम अंसारी, डॉ. अब्दुल समी, डॉ. रूकिया बानो समेत देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों से आये साहित्यकार एवं लेखिकाओं ने भाग लिया।

इसके अलावा विश्वविद्यालय के अन्य विभागों के शिक्षकों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों ने भी बड़ी संख्या में भाग लिया। उद्घाटन सत्र के बाद फ़राक की याद में एक मुशायरे का आयोजन किया गया, जिसमें उर्दू और हिंदी के प्रमुख शायर, विशेष रूप से शमीम तारिक ,अशहद करीम उलफ़त, मोहम्मद अकील, आलम बनारसी, समर ग़ाज़ीपुरी, अहमद आज़मी, ज़िया अहसानी, शमीम ग़ाज़ीपुरी, हसरत, अब्दुल रहमान, जफर मेहदी और असजद रजा ने अपने बेहतरीन भाषण से दर्शकों का मनोरंजन किया। मुशायरे की सदारत हिन्दी के मशहूर शायर वादीब प्रोफ़ेसर वशिष्ठ अनुप ने की और निज़ामत का फर्ज डॉ सरवर साजिद ने निभाया।

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