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पूँजीवादी समाज में अलगाव बढ़ता जा रहा है, सामंती समाज की रागात्मकता खत्म होती जा रही है। आजकल के फिल्मी दर्शकों को तब तक मजा ही नहीं आता जब तक कि हिंसा-उत्तेजना के जुगुप्सा पैदा करने वाले बेहिसाब दृश्य न हों।
अभी साधना शिवदासानी अभिनीत आप आए बहार आई देख रहा हूँ। क्या गाने हैं, कैसा तो कर्णप्रिय म्यूजिक है और सबसे बढ़कर कैसी तो मनमोहिनी मुस्कान है। शांत मन से ठहरकर देखने लायक फिल्म मालूम पड़ रही है।
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हाई स्कूल में जब हम लोगों ने शोले देखी तो एक सुकुल जी थे, कहने लगे और तो कुछ अच्छा नहीं लगा बस वही बसंती थोड़ी-थोड़ी जँच रही थी। किसका अभिनय कैसा है, कितना अच्छा या खराब है यह तो फिल्म समीक्षक या कला मर्मज्ञ जानें लेकिन मुझे तो साधना शिवदासानी की फिल्में देखने लायक लगती हैं और उनकी फिल्मों के गाने सुनने लायक।


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