वाराणसी: महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. ए.के. त्यागी के कुशल नेतृत्व एवं निर्देशानुसार मंगलवार को ट्रेनिंग एवं प्लेसमेंट सेल और मनोविज्ञान विभाग के संयुक्त तत्वाधान में इंस्पायर्ड लीडर प्रोग्राम का आयोजन किया गया। यह प्रोग्राम हार्वर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा संचालित होता है। कार्यक्रम के रिसोर्स पर्सन मिस खुशहाली जायसवाल ने छात्र-छात्राओं को बताया कि किस प्रकार से वह ग्लोबल जुड़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि हम किस प्रकार से इंस्पायर लीडर प्रोग्राम में एप्लीकेशन कर सकते हैं तथा किस प्रकार से वहां पर छात्र-छात्राओं को क्लासेस प्रदान की जाएगी। यह कार्यक्रम निशुल्क है इसमें बिजनेस हेतु फंड की सुविधा भी प्रदान की गई है। यह कार्यक्रम मनोविज्ञान विभाग की अध्यक्ष प्रो.रश्मि सिंह एवं ट्रेनिंग और प्लेसमेंट सेल की डायरेक्ट प्रो. शेफाली ठकराल की अध्यक्षता में संचालित हुआ इस कार्यक्रम में डॉ. मुकेश कुमार पंत, डॉ.दुर्गेश कुमार उपाध्याय, डॉ. प्रतिभा सिंह, डॉ.कंचन शुक्ला, डॉ. दीपमाला सिंह बघेल, डॉक्टर पूर्णिमा श्रीवास्तव, डॉ.पूनम सिंह एवं अन्य स्नातक तथा स्नातकोत्तर के समस्त छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
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विद्यापीठ ललित कला विभाग के छात्रों की परीक्षा 19 को
वाराणसी। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के ललित कला विभाग विषय के स्किल डेवलपमेंट एवं माइनर/मेजर स्नातक प्रथम, तृतीय एवं पंचम सेमेस्टर के छात्र-छात्राओं की परीक्षा विभाग में 19 फ़रवरी को आयोजित की जाएगी।
दर्शनशास्त्र के विषय वैज्ञानिकों ने भारतीय शिक्षण पर किया मंथन
तकनीकी सत्रों में दस राज्यों के विद्वानों ने पढ़े 21 शोध पत्र
वाराणसी। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के दर्शनशास्त्र विभाग एवं भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन मंगलवार को दर्शनशास्त्र के विषय वैज्ञानिकों ने भारतीय शिक्षण पर मंथन किया।
‘भारतीय भाषाओं में दार्शनिक तत्त्वांवेषण और शिक्षण’ विषयक संगोष्ठी के तकनीकी सत्रों में दस राज्यों के विद्वानों ने 21 शोध पत्र पढ़े ।
प्रथम तकनीकी सत्र की अध्यक्षता करते हुए गुजरात विश्वविद्यालय के प्रो. गिरीश कुमार, ने कहा कि भारतीय शिक्षण मातृभाषा में हो क्योंकि भाषाएं संस्कृति संवाहक होती हैं। अपनी मातृभाषा में ज्ञानार्जन करना आसान होता है।शांति निकेतन विश्वविद्यालय की डॉ. रेखा ओझा ने द्वितीय सत्र की अध्यक्षता करते हुये शोधर्थियों को कहा कि शोध भले अंग्रेजी में किया जाये लेकिन उसका निष्कर्ष हिंदी में करना चाहिए। इससे सभी लोगों को उस विषय के बारे में जानने और समझने में आसानी होती है।तृतीय सत्र के अध्यक्ष प्रो. सुशील दुबे, नव नालंदा विश्वविद्यालय, बिहार ने बताया कि शोध पत्र लिखते समय मौलिकता एवं सुचिता का ध्यान रखना चाहिये। संगोष्ठी में आयोजन सचिव प्रो. पीतांबर दास, प्रो. नंदिनी सिंह, डॉ. अंबरीश राय, डॉ. आशुतोष त्रिपाठी सहित विभाग के शोधार्थी एवं छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।