Total Views: 178

आबिद सुरती ( डब्बू जी) ने गांधी भवन में गांधी जी को पुष्पांजलि अर्पित की

प्रयागराजः आज शाम को हिंदी और गुजराती के मशहूर लेखक, नाटककार,पटकथा लेखक और कार्टूनिस्ट श्री आबिद सुरती ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के के गांधी विचार एवं शांति अध्ययन संस्थान पहुँचकर गांधी जी को अपनी पुष्पांजलि अर्पित की।

उन्होंने कहा गांधी जी जब यात्राओं पर रहते थे और कहीं उनकी सभा होती थी तो जनसैलाब उनकी प्रतीक्षा कर रहा होता था… बहुत तेजी से चलते हुए वह निकलते थे…डांडी यात्रा के दौरान मेरी दादी भी बुर्का पहनकर उनका इंतजार कर रही थी। पूरी भीड़ में वह मेरी दादी को देखकर उनके पास आए और हाथ जोड़ते हुए तेजी से दोनों हाथों को जोड़ते हुए हिलाया जैसा कि वह अमूनन करते थे… कुछ रुके और फिर तेजी से आगे निकल गए। ये मेरी दादी का हासिल था। सबका अपना-अपना हासिल होता है। गांधी जी से वह छोटी सी मुलाकात मेरी दादी का हासिल था। ये बातें गांधी भवन में उन्होंने पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद कहीं। उन्होंने आगे कहा कि उस समय हमारे मुहल्ले की मुस्लिम महिलाएं गांधी जी के आवाहन पर स्वेदशी कपड़ों हेतु लगाए गए चरखे सीखने एवं सूत कातने जाती थीं। ये सब बातें उनकी स्मृतियों में आज भी दर्ज हैं।

दृश्य कला विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अध्यक्ष प्रो.अजय जेटली ने इस अवसर पर कहा कि आबिद सुरती कार्टूनिस्ट तो हैं ही उससे बड़े पेंटर हैं। एक पेंटर बिल्कुल साहित्यकार की तरह होता है जब वह कविता लिखता है तो कविता लिखता है चाहे वह कितना बड़ा उपन्यासकार ही क्यों न हो।

संस्थान के निदेशक प्रो. संतोष भदौरिया जी ने संस्थान की और से सूत की माला पहनाकर उनका स्वागत करते हुए संस्थान की स्मारिका और गांधी केंद्रित किताबें उपहार स्वरूप भेंट कीं। गांधी मंडपम में लगी संस्थान की प्रदर्शनी और पोस्टरों को उन्होंने बारीकी से देखा और कहा कि अच्छी बात है कि गांधी को विभिन्न माध्यमों से लोगों के सामने रखा जा रहा है। संस्थान के निदेशक ने गांधी परिसर स्थित पुस्तकालय की जानकारी दी।उन्होंने पिछले दो वर्षों में विद्यार्थी केंद्रित होने वाले विभिन्न कार्यक्रमों की जानकारी दी।

सुरती जी ने संस्थान की विजिटर बुक का अवलोकन करने के बाद उसमें अपने उदगार व्यक्त किये। उन्होंने अपनी खुशी जाहिर की, कि यह बहुत ही बड़ी बात है कि आज के इस दौर में भी विद्यार्थी इस परिसर का अवलोकन कर रहे हैं और विभिन्न रचनात्मक कार्यक्रमों में प्रतिभाग कर रहे हैं । गांधी भवन सिर्फ एक भवन नहीं बल्कि मुझे तो धरती पर स्वर्ग लगता है। यहां बैठना महात्मा गांधी को अपने अंदर महसूस करना है। ये स्थान शांति , सद्भाव और गांधी को जानने, समझने का स्थान है। मैं इस परिसर को जीना चाहता हूं।समझना चाहता हूं महात्मा गांधी पर केंद्रित इस पुस्तकालय की किताबों का उपयोग करना चाहता हूँ।कुछ दिन रुककर गांधी जी पर अध्ययन करना चाहता हूं… बशर्ते संस्थान को इसी परिसर में मेरे रहने की व्यवस्था करनी होगी। उन्होंने कहा कि संस्थान में रुकने के लिए एक कमरा होना ही चाहिए।

इस अवसर पर डॉ तोशी आनंद, डॉ. सुरेन्द्र कुमार, हरिओम कुमार, धर्मेंद्र कुमार, धर्मवीर तथा संस्थान के कर्मचारी उपस्थित रहे।

Leave A Comment