जीवन भाषा होती है मातृभाषा: प्रो. संतोष भदौरिया
जो अभिव्यक्ति हम अपनी मातृभाषा में कर सकते हैं वह अन्य किसी भाषा में नहीं। – प्रो. नरेंद्र कुमार शुक्ल
राजभाषा अनुभाग की डायरी 2024 का हुआ विमोचन।
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“धुंध से चेहरा निकलता दिख रहा है..
कौन क्षितिजों पर सवेरा लिख रहा है..
चुप्पियाँ हैं जुबाँ बनकर फूटने को…
दिलों में गुस्सा उबाला जा रहा है..
दबे पैरों से उजाला आ रहा है…
फिर कथाओं को खँगाला जा रहा है।”…..
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच जब यह गीत गांधी मंडपम में गूंजा तो तालियां रुकने का नाम नहीं ले रही थीं। गाने वाला एक था, साथ देने वाले सैकड़ों । गीत गा रहे थे मातृभाषा कवि-गोष्ठी में अध्यक्षता कर रहे सुपरिचित गीतकार‘यश मालवीय जी’ और अवसर था गांधी विचार एवं शांति अध्ययन संस्थान में राजभाषा अनुभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित ‘अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस’ का। यश मालवीय ने इस अवसर अपने कई गीतों के माध्यम से बेबाक तरीके से अपनी बात रखी।
उन्होंने राजभाषा अनुभाग के इस प्रयास को सराहा कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अपने शिक्षक जो विभिन्न भाषा- भाषी क्षेत्रों से आते हैं। वे अपनी मातृभाषा में रचना- पाठ कर रहे हैं। जिस प्रकार भारत की संस्कृति में विविधता में एकता दिखाई देती है। आज इस गोष्ठी में विभिन्न भाषाओं में भी मातृभाषा की एकता दिख रही है।
इससे पहले राजभाषा कार्यान्वयन समिति के संयोजक और गांधी भवन के निदेशक प्रोफेसर संतोष भदौरिया जी ने राजभाषा कार्यान्वयन समिति के अध्यक्ष और इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर नरेंद्र कुमार शुक्ल और अध्यक्ष यश मालवीय जी का तथा विभिन्न भाषाओं के आमंत्रित कवियों का किताब और पुष्पगुच्छ देकर स्वागत किया। आपने कहा कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मातृभाषा दिवस का आयोजन एक महत्वपूर्ण संकल्पना है । आज जब दुनिया भर में भाषाओं का क्षय होता जा रहा है । ऐसे में ज्ञान , संस्कृति और विरासत की संवाहक मातृ भाषाओं को संरक्षित और प्रयोग में लाना सभी जागरूक समाजों का दायित्व है ।मातृभाषा हमारी जीवन भाषा होती है। अपनी मातृभाषा बुंदेली का जिक्र करते हुए मातृभाषाओं को जिंदा रखने की बात कही ।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कुलसचिव और राजभाषा कार्यान्वयन समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर नरेंद्र कुमार शुक्ल ने कहा कि हमें अपनी मातृभाषाओं से कभी परहेज नहीं करना चाहिए। जब हमें अवसर मिले तो हमें अपनी मातृभाषा अवश्य बोलनी चाहिए। कई बार मातृभाषा आपका वह काम कर देती है जो आपका कार्य दूसरी भाषाएं नहीं कर पाती हैं। उन्होंने एक संस्मरण के साथ अपनी मातृभाषा की शक्ति की बात सभी के सामने रखी। साथ ही उन्होंने कहा कि यह सुखद अनुभव है कि पिछले 7 साल से लगातार राजभाषा अनुभाग अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मना रहा है।
इस अवसर पर राजभाषा कार्यालय को गति देने के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राजभाषा अनुभाग की “डायरी 2024” का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया। राजभाषा अनुभाग की इस डायरी में समाहित है इलाहाबाद विश्वविद्यालय के समस्त प्रशासनिक अधिकारियों के संपर्क सूत्र, डीन, डायरेक्टर,हेड के संपर्क सूत्र। कार्मिकों की मदद के लिए राजभाषा अधिनियम 1963, राजभाषा नियम 197,6 मानक वर्तनी,अंग्रेजी हिंदी पर्याय, महापुरुषों के अनमोल विचार।
अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस की संकल्पना उसको मनाए जाने के कारण, नामकरण आदि के ऊपर विस्तार से चर्चा की हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग के सहायक आचार्य डॉ दीनानाथ मौर्य जी ने।उन्होंने कहा शिक्षा नीति में प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा प्रस्तावित की गई है । इसमें समाज की महत्वपूर्ण भूमिका है । यह अत्यंत महत्वपूर्ण है यह हमें औपनिवेशिक दासता से मुक्त करती है और नए विविध और लोकतांत्रिक समाज के निर्माण की तरफ़ ले जाती है और अपनी जड़ों से जोड़ने का एक अवसर प्रदान करती है । अपनी अवधी भाषा में उन्होंने एक लोकगीत भी सभी के साथ साझा किया।
कार्यक्रम का आरंभ ‘बरगद कला मंच’ द्वारा कबीर गायन के साथ हुआ। कबीर गायन कर रहे थे वर्षा, सोना, संजय, शिवानी, रूपाली, रोहित, निलेश, ललित, ऋषिकेश। हारमोनियम पर संगत दे रही थीं इशिता।
मातृभाषा कवि गोष्ठी में में हिंदी, संस्कृत, मराठी, तेलुगू, पंजाबी, ओड़िया, अवधी, गोंडी, ब्रजभाषा, बुंदेली जैसी बोलियों और भाषाओं में विभिन्न विभागों से आए रचनाकारों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत की। ब्रज में डॉ. अमृता,ओड़िया में डॉ. देवाशीष पति, मराठी में डॉ. युवराज निबांजी हिराडे, संस्कृत में डॉ. लेखराम दन्नाना, तेलुगू में डॉ. गाजुला राजू, गोंडी में डॉ. जनार्दन, हिंदी में डॉ. तोषी आनंद, केतन यादव, बुंदेली में जगदीश गुप्ता ने रचना- पाठ किया। सभी कविगण इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए थे।
कार्यक्रम का संयोजन राजभाषा अनुभाग के संयोजक प्रो. संतोष भदौरिया और सहयोग हिंदी अधिकारी श्री प्रवीण श्रीवास्तव ने प्रदान किया। संचालन हरिओम कुमार ने और आयोजन के प्रतिभागियों के प्रति श्री प्रवीण श्रीवास्तव, हिंदी अधिकारी ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर डॉ सुरेंद्र कुमार, डॉ विजयलक्ष्मी , ओपी गुप्ता, शीलेन्द्र कुमार विभिन्न विभागों के शिक्षक, कर्मचारी, सृष्टि, धर्मवीर सरोज, दरक्शा, ज्योति,शिखा एवं विभिन्न विभागों के शोधार्थी एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।