किशन सिंह चौहान जी की अद्भुत कलाकृति चारू चिंतन प्रदर्शनी में अहिवासी कला वीथिका में प्रदर्शित हुई जिसका उद्घाटन मुख्य अतिथि डॉ छात्र अधिष्ठाता अनुपम कुमार नेमा व पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित विजय शर्मा, विशिष्ट अतिथि डॉ उत्तमा दीक्षित मैंम दृश्य कला संकाय डीन ने किया
बनारस के उपर डेढी- मेढी गलियों के बीच
काशी विश्वनाथ कारीडोर मंदिर को एक प्रतिकातमक बीच में गोल्डेन कलर जो दर्शकों को बहुत पसंद आ रहा है व चमक पैदा करता है और रेक्सीन कोमल कपड़े से गेरूआ कलर में 3 महीने में हाथ से सिलाई कर के तैयार हुई कलाकृति जो युवा कलाकारों को बहुत पसंद आ रहा है जिसमें दर्शकों को बनारस के गलियों जैसा उलझन पैदा करता है
किशन जौनपुर उत्तर प्रदेश से हैं
कला अभ्यास कविता , शब्द,फार्म व बनारस के रंगों को विभिन्न गलियों, मन्दिर,घाटों को लेकर अपने मूर्ति शिल्प में मर्ज किया और आकार व टेक्चर को लीनीयर सरल रेखाओं गति को एक्सप्रेस किया है जो अक्सर हैंगिंग मूर्ति शिल्प के साथ प्रदर्शित होती है जिसमें मैटेरियल फैमली सोफा व्यापार से प्रभावित होकर अपने सोफे के वेस्ट मैटेरियल को सिलाई करके कलाकृतियों को विभिन्न प्रयोगात्मक रचनाओं के सम्भावनाओ को एक साथ पिरोने का काम अपने आर्ट प्रैक्टिस में करते हैं।
बनारस में ही काशी हिंदू विश्वविद्यालय , दृश्य कला संकाय, प्लास्टिक आर्ट डिपार्टमेंट से स्नातक व परास्नातक पूरा किए हुए हैं वर्तमान में डीन आफ़ स्टुडेंट इन्टर्नशिप में कार्यरत हैं इनकी कला कृतियों को लोग देख कर बहुत प्रभावित हों रहे हैं
किशन युवा मुर्तिकार, चित्रकार, विडियो आर्ट, पर्फार्मेंस आर्ट,संस्थापन व लेखन में भी सक्रिय हैं
इनकी एक कविता है
मैं वास्तव में डुबना चाहता हूं
नदी में जितना नाव डुबी है मैं
तुममें उतना डुबना चाहता हूं
मैं वास्तव में डुबना नहीं चाहता
लहरों के साथ तैरना चाहता हूं