प्रस्तुत पंक्तियों के लेखक श्री कामता प्रसाद तिवारी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मानित सदस्य हैं और उनका किसी भी बुर्जुआ पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है।
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नक्सलबाड़ी आंदोलन के बाद जितनी भी वाम संरचनाएं अस्तित्व में आईं, उनमें सबसे ज्यादा जन-विमुख और मुर्गा-चाँपू CLI की विभिन्न झाँटें रही हैं। शशिप्रकाश और उसके लंगड़े लौंडे की अगुआई वाली RCLI इस मामले में अनोखी-अलहदा और विरली है कि इसने भिखमंगई का नया इतिहास-नया मानदंड रच डाला है। ट्रेनों-बसों में जाकर इसके कार्यकर्ता भीख माँगते हैं, दे-दे, दे-दे कार्ल मार्क्स के नाम पर दे दे बाबा, लंगड़े को कनाडा-ऑस्ट्रेलिया की यात्रा करनी है।
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इन कुत्तों से कोई पूछे कि तुम स्साले अकादमीशियन हो जो फासीवाद पर, जाति-प्रश्न पर, साम्राज्यवाद वगैरह-वगैरह पर सेमिनार आयोजित करवा रहे हो। इतिहास को गति देने वाली मजदूर आबादी के बीच तुम्हारा काम देश के किस हिस्से में है। 10-20 हजार मजदूरों को उतार सकते हो, जंतर-मंतर पर। शशिप्रकाश ने अपने लंगड़े लौंडे को ब्रह्मांड स्तरीय विद्वान के रूप में स्थापित करने के लिए अपने जांबियों को मध्यवर्ग से चंदा वसूलने के काम पर भिड़ा दिया और करवा लिया सेमिनार। सेमिनार करवाने, किताब लिखने और विद्वान बनाने के अलावा इन अगिया बैतालों का कोई काम नहीं है।
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सोसायटी पर बोझ बन चुके हो तुम माने RCLI के खजहे कुत्तों। मजदूरों के बीच से आंगिक बुद्धिजीवी अगर तैयार नहीं कर सकते और अपना सारा ध्यान अगर मध्यवर्ग पर लगाए रहोगे तो जिस दिन योगी बाबा बे-अंदाज हुए, पेल दिए जाओगे क्योंकि मध्यवर्ग किसी भी और के लिए लड़ता नहीं है।
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जब बनारस के लाला संजय श्रीवास्तव वर्तमान साहित्य निकाल रहे हैं, सैकड़ों साहित्यिक पत्रिकाएं पहले से ही निकल रही हैं तो हरामजादों तुम्हें क्यों चुल्ल मची है साहित्यिक पत्रिका निकालने की। साफ है कि यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों से तुम्हें 10 परसेंट बतौर लेवी लेना है।
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लेकिन, भीख के पैसों से ऐय्याशी कर रही कविता श्रीवास्तव की असलियत बौद्धिक समाज जान चुका है और उसे यह भी पता चल चुका है कि सत्यम वह लता है, जिसे सहारे की जरूरत होती है। आप लोग देखिएगा, जल्दी हो वह दिन आने वाला है जब लंगड़े अभिनव का लौंडा भी सत्यम को लतियाएगा।
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CLI की सभी झाँटें मुर्दाबाद, इंकलाब जिंदाबाद।
Satyam Varma – ‘अन्वेषा वार्षिकी’ के लिए रचनाएँ भेजने की अंतिम… | Facebook