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युवा प्रयोगिक मूर्तिकार ‘ किशन लाल जी जिनका दृश्य कला संकाय, अहिवासी कला दीर्घा में 19/2/2024 -24 तक ग्रुप प्रदर्शनी 19 युवा कलाकारों के साथ लगी है इनकी तीन कला कृतियां लगाईं गई है जिसमें बनारस के उपर एक नाव बना हुआ है ,
जो दर्शकों को बहुत पसंद आ रहा है गोल्डेन कलर में उस कलाकृति को दर्शक खरीदना चाहते है प्रदर्शनी का उद्घाटन चीफ गेस्ट अनुपम कुमार नेमा सर व पद्मश्री विजय शर्मा जी, विशिष्ट अतिथि उत्तमा दीक्षित मैम ने किया।

मैं किशन सिंह चौहान ग्राम मकरा त्रिलोचन महादेव जौनपुर उत्तर प्रदेश से हूं
मेरा दृश्य कला संकाय,काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से परास्नातक पूरा हो चुका है वर्तमान में बनारस में रह कर बनारस के उपर कला अभ्यास कर रहा हूं।

किशन लाल परास्नातक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय दृश्य कला संकाय मूर्तिकला विभाग से हुआ है किशन अभी काशी हिंदू विश्वविद्यालय में डीन आफ़ स्टुडेंट एसआरके इन्टर्नशिप में एक वर्ष के लिए कार्यरत हैं।
इनका जन्म सन 1998 में जिला जौनपुर शहर से 23 किलोमीटर दूर ग्राम मकरा पोस्ट लहंगपुर उत्तर प्रदेश में हुआ है। इनकी रचना एक मूर्तिशिल्प के माध्यम से वर्तमान व अतीत के साथ संवाद करती है जो कि जीवन रूपी मूर्तिशिल्प को व प्रतिदिन कुछ नया आयाम देने की कोशिश करते रहते हैं, इस सतत प्रक्रिया में इनके विचार अक्सर किसी से प्रभावित होते है , कला में भी इसी प्रकार से कलाकार की शैली व विचार और वातावरण प्राकृतिक से या मानव के दैनिक जीवन व घटनाओं से प्रभावित होता है, इनके अनुसार यह अपने वर्तमान समय में होने वाली गतिविधियों से प्रभावित होते हैं। जब कि दुख व सुख भी शामिल हो सकता है , इनके विचारनुसार लॉकडाउन के त्रासदी व मोबाइल के दुष्प्रभाव से प्रभावित समाज जो आज मोबाइल के बदलते बोल चाल की भाषा भारतीय हिन्दी अक्षर के प्रतीकात्मक और इनकी कविता पाठ हुए सांकेतिक त्रियामी रूप में इनके कामों में शामिल होते हैं।
इनके व्यक्तिगत विचार से कलाकृतियों में कलर का सामंजस्य बनारस के घाटों मंदिरों व शहर के उलझे हुए गली एक अमूर्त रूप में प्रदर्शित करते हुए बनारस के उपर कला अभ्यास कर रहे हैं।
जिसमें सिलाई करके काट कर वेल्डिंग करके आर्मेचर के साथ तैयार होते हैं,
मूर्तिशिल्प में टेड़ी मेढी रेखीय प्रधानता व गोल्डेन कलर ,मटमैला पका हुआ गेरुआ कलर माध्यम का स्वभाव इनके पारिवारिक, व्यवसाय, आर्थिक रूप से किशन के बड़े भाई के कारखाने से लंबे समय से जुड़ाव के कारण रहा है‌ जो सॉफ्ट सोफा मटेरियल ( गोल्डेन रेक्सीन, कोमल कपड़ा ) इनकी कलाकृतियों के साथ उभर कर सामने आता है व आश्चर्य पैदा करता हैं । इनका विचार है कि –
” जब कभी हम किसी कलाकार व नए स्थान पर जाते हैं तो उस कलाकार व स्थान का प्रभाव हमारे आंतरिक मानस पटल पर एक रूपरेखा की तरह बन जाता है जिसमें कुछ कलाकार की प्रेरणा स्रोत कलाकृतियों के साथ सामूहिक प्रदर्शन करती है। “किशन जी कहते है कि एक सेमिनार के दौरान जी आर ईरन्ना, सुदर्शन शेट्टी, से भी इनकी रचनाधर्मिता प्रभावित है और असिस्टेंट प्रोफेसर अमरेश कुमार, उमेश सिंह, देवाशीष पॉल, रोज मेरी ट्रैकल, नरेश कुमार, गुर्जीत सिंह , इन सभी समकालीन कलाकारों से प्रभावित है।
जिसमें कहीं रंग की भूमिका होती है कहीं शैली की कहीं विचारों की सामंजस्य से इनकी कलाकृतियों के साथ एक मुहावरा गढ़ने में रोजमर्रा के जिंदगी में शामिल होती हैं जिनको लेकर यह अपनी कलाकृतियों के साथ कार्य करते हैं।

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