वाराणसीः पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान संकाय, कृषि विज्ञान संस्थान, राजीव गांधी दक्षिणी परिसर, काशी हिंदू विश्वविद्यालय बरकछा, मिर्जापुर में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना द्वारा वित्त पोषित और सहयोग प्राप्त परियोजना “कुक्कुट पालन: विंध्यान क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक कमजोर वर्ग की स्थायी आजीविका के लिए बैकयार्ड पोल्ट्री फार्म” के अन्तर्गत छठी तीन दिवसीय बैकयार्ड पोल्ट्री प्रशिक्षण कार्यशाला के आयोजन का समापन किया गया।
समारोह में कार्यशाला सचिव डॉ. उत्कर्ष कुमार त्रिपाठी ने मुर्गी पालन के फायदों और परिवार के आर्थिक संतुलन में कुक्कुट पालन के स्वरूप को समझाया। उन्होंने बताया कि जहां एक तरफ व्यावसायिक कुक्कुट पालन में हमें अति संवेदनशील आवास व्यवस्था, महंगे उपकरण, बाजार में मिलने वाले मुर्गी दाने के साथ इसको शुरू करना पड़ता है, वहीं इसके साथ ही हमें बहुत ज्यादा रखरखाव और ध्यान देने की आवश्यकता पड़ती है। वहीं पर बैकयार्ड कुक्कुट पालन बहुत ही कम लागत में, बहुत ही कम आवास सुविधाओं के साथ और घर की महिलाओं और बच्चों के द्वारा भी प्रबंधित किया जा सकने वाला एक अत्यंत ही सफल ग्रामीण उद्यम साबित हो सकता है। बैकयार्ड कुक्कुट पालन में हम भारतीय नस्लों को ज्यादा महत्व देते हैं क्योंकि उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता और हमारे वातावरण में अनुकूलन की विशेष क्षमता पहले से ही प्रकृति प्रदत्त होती है, जिससे उनका पालन करने में हमें अतिरिक्त व्यवस्थाओं पर व्यय नहीं करना पड़ता है। ये परिस्थितियां उन्हें रोगों से लड़ने हेतु एवं किसी भी वातावरण में अपने आप को सुलभ तरीके से उत्पादकता की ओर ले जाने में सक्षम और सफल बनाती हैं। बैकयार्ड कुक्कुट पालन से हमें अंडाऔर मांस सहज ही उपलब्ध हो सकता है, जिससे कि हम अपने परिवार की पोषण संबंधी आवश्यकता तो पूरी कर ही सकते हैं, साथ ही साथ अधिक पैदावार होने की दशा में इसको बाजार में भी बेच सकते हैं, जिससे परिवार की आय में वृद्धि हो सकती है। यह एक अतिरिक्त आय के रूप में गरीब परिवारों के लिए सहायक सिद्ध हो सकता है। और इसके कई लाभों की वजह से हमारे पास इसको व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए प्रेरणा भी मिल सकती है।