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लखनऊः लखनऊ मेडिकल कॉलेज की स्त्रीरोग व प्रसूतितंत्र की विभागाध्यक्ष प्रो. एसपी जायसवार ने उत्तर प्रदेश के मऊ जिले की एक ऐसी स्त्री की नार्मल डिलेवरी करवाई, जिसका पिछले साल नवंबर में बच्चेदानी के ट्यूमर यानि कि फाइब्रॉइड को निकालने के लिए बेहद जटिल और दुर्लभ ऑपरेशन किया जा चुका था। जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ हैं।
प्रो. जायसवार ने फोन पर हमारा मोर्चा को बताया कि सामान्य रूप से बच्चेदानी गर्भधारण करने के लिए होती है लेकिन आजकल देर से विवाह, कम बच्चों की चाहत और एस्ट्रोजेन नामक होर्मोन के अधिक स्राव की दशा के कारण बच्चेदानी की मांसपेशियों का आकार बढ़ जाता है। इस स्थिति को एस्ट्रोजेन निर्भर ट्यूमर बोलते हैं। और इसके साथ ही बहुत सारी बीमारियाँ भी बन जाती हैं। जिस स्त्री में एस्ट्रोजेन अधिक बनता है, उसमें इस बीमारी के होने के चांस अधिक होते हैं।
उन्होंने बताया कि इस स्त्री में बड़ा सा ट्यूमर भी था और साथ में गर्भावस्था भी थी। अक्सर होता यह है कि ट्यूमर के साथ बच्चा अगर पेट में आ जाता है तो या तो बच्चा गिर जाता है अथवा समय से पहले प्रसव हो जाता है। पेट में पड़े-पड़े बच्चा खत्म भी हो जाता है। डॉक्टर के अनुसार Miscarriage शब्द उस समय के लिए उपयोग किया जाता है जब बच्चा पेट में खराब हो जाता है।
उन्होंने बताया कि जब बच्चा ट्यूमर के साथ पेट में आ जाता है तो लोग कहते हैं कि सफाई करवा दो, यह बच्चा बचेगा नहीं।
उन्होंने बताया कि स्त्री जब रायबरेली से होते हुए हमारे यहाँ आईं तो उनकी गर्भावस्था शुरुआती दौर में थी। दो-अढ़ाई महीने की प्रेगनेंसी थी। उसके साथ बहुत ही बड़ा सा ट्यूमर था। इनके बच्चेदानी की साइज छह महीने की गर्भावस्था के बराबर थी। माने बच्चे के विकसित होने के लिए पेट में जगह ही नहीं थी। डॉक्टर ने गर्भ जारी रखने को कहा और सलाह दी कि 16-18 हफ्ते की गर्भावस्था के बाद ट्यूमर को ऑपरेशन करके निकाला जाएगा। सर्जरी गर्भावस्था के पहले 12 हफ्तों में नहीं की जाती। क्योंकि इस दौरान एनेस्थेसिया के ड्रग सेफ नहीं होते। 14-16 हफ्ते से ऊपर और 28 हफ्ते से नीचे सर्जरी करना सेफ माना जाता है। तो इस स्त्री को भी 20 हफ्ते पर बुलाया गया था। 18-20 हफ्ते की अवधि के दौरान अल्ट्रा-साउंड करके देखा जा सकता है कि बच्चे में कोई जन्मजात विकार तो नहीं हैं। जन्मजात बीमारियों वाले बच्चे को टर्मिनेट कर दिया जाता है और यह सब कराने के बाद ही ट्यूमर निकाला जाता है। जो ट्यूमर निकाला गया वह लगभग तीन किलो का था। बच्चेदानी को रिपेयर करके ठीक कर दिया गया और उसके बाद उसकी प्रेगनेंसी जारी रही।
डॉक्टर के अनुसार समय-समय पर यह महिला गर्भावस्था की जाँच कराने आती रही, जैसे नार्मल महिलाएं आती हैं। हीमोग्लोबिन वगैरह की जाँच करवाते रहने के लिए, जैसा कि माताओं में देखा जाता है।
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KGMU से आए प्रेस नोट के अनुसारः गर्भावस्था के दौरान फाइब्रॉएड को हटाने का निर्णय (एंटीनेटल मायोमेक्टॉमी) आमतौर पर फाइब्रॉएड के आकार, संख्या और स्थान, गंभीर दर्द और फाइब्रॉएड के आकार में तेजी से वृद्धि से तय होता है। भारत में प्रसवपूर्व मायोमेक्टोमी कोई सामान्य कार्यविधि नहीं है। वैश्विक स्तर पर भी इसके बहुत ही कम मामले सामने आए हैं। सितंबर 2023 में, मऊ, उत्तर प्रदेश से 30 वर्षीय मरीज को 9 सप्ताह की गर्भावस्था में बहुत बड़े फाइब्रॉएड के साथ रेफर किया गया था। फाइब्रॉएड इतना बड़ा था कि ढाई महीने की गर्भावस्था में प्रति पेट 6 महीने की गर्भावस्था लगती थी।
नवंबर 2023 में मरीज के लिए एंटीनेटल मायोमेक्टॉमी की गई थी। ऑपरेशन डॉ. एस.पी. जैसवार, डॉ. की टीम द्वारा किया गया था। इस टीम में डॉ. सीमा मेहरोत्रा, डॉ. पुष्प लता संखवार एवं डॉ. मंजू लता वर्मा के साथ एनेस्थेटिस्ट डॉ. राजेश रमन एवं सिस्टर इंचार्ज ममता यादव शामिल थीं।

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