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आजाद हिंदुस्तान का सबसे बड़ा सपना स्वराज का था।’स्वराज’ मतलब अपना राज। स्वराज की धुन में ही लाखों लाख लोग जो कि अलग-अलग समुदाय से अलग-अलग समाज से अलग-अलग विचारों से ,हजार विभिन्नताओं से भरे इस हिंदुस्तान की जनता आजादी के आंदोलन में कूद चुकी थी। सबकी आंखों में एक ही सपना था अपना शासन अपनी नीतियां अपनी आजादी लेकिन उन्हें मिला क्या आयातित शासन प्रणाली और उधर की शासन व्यवस्था। शुरुआत के दिनों में भले ही कुछ काम किए गए लेकिन आज हम जब 75 साल पीछे देखते हैं तो लगता है की स्थिति बहुत भयानक है। सबसे बड़ी क्षति जो हुई है वह “लोगों की चेतना का स्तर में गिरावट में दिखती है”. सत्ता ने लगातार जनता की तार्किक चेतन को और उनके सवालों को दबाने के लिए नई-नई शिक्षा नीतियां लागू की और यह प्रयास और प्रचार किया की, “जो अधिकारी वर्ग है वही नियम बना सकता है और वही देश चला सकता है”। यह प्रयास लगातार होता रहा की सट्टा का केंद्रीकरण किया जाए और उसके लिए जरूरी था आम जनता की आवाज को,आम जनता के उठते हुए सवालों को दबाना। वर्तमान शासन व्यवस्था नौकरशाही पर टिकी हुई है और यह नौकरशाही हर रोज नए-नए तरीके इजात करती है कि कैसे जनता को भ्रम में डालें? कोई भी योजना बनती है उसमें जनता की राय नहीं ली जाती>
इससे साफ जाहिर है कि लोक नीति का कोई स्थान नहीं है इस व्यवस्था में और जितने भी लिखा पड़ी होती है वह या अंग्रेजी में होती है या तो हिंदी के कठिन शब्दों में किया जाता है। यही हाल है न्याय व्यवस्था में, जो भी न्यायिक फैसले होते हैं ज्यादातर लोगों को यह तक नहीं पता होता कि उनके मुकदमे में हो क्या रहा है? निश्चित तौर पर यहां देश किसान ,कारीगर आदिवासियों और छोटी पूंजी के लोगों का है। लेकिन जो सत्ता है उसे पूंजीवाद बहुत पसंद है,वह पूंजी पतियों के लिए योजनाएं बनाने का एक जरिया बनती है।
सरकार का सर विभाग पूंजीपतियों के हित में योजनाएं बनाने के लिए लगा रहता है,इन पूंजीपतियों के राह में जो भी बाधाएं आती हैं उस पर सारा का सारा महकमा तैनात रहता है। सत्ता को कोई फर्क नही पड़ता कि देश का किसान,कारीगर,महिला,आदिवासी, नौजवान किस हालत में, किसके साथ कौन से उत्पीड़ित का दर्द जुड़ा है?कौन कितना शोषित है? सत्ता को कोई फर्क नहीं पड़ता,हर हालत में सत्ता में बने रहना ही इनका एकमात्र उद्देश्य है।
*मैं जब यह बात कर रहा हूं आजादी के76 वर्ष हो चुके हैं और आज भी अतिपिछड़े समाज के लोग इस हैसियत में नहीं आ सके हैं कि अकेले किसी थाने पर जाकर अपनी रिपोर्ट दर्ज करा सकें।*
हरिश्चंद्र केवट
(तस्वीर बनारस के एक गांव की है )
9555744251
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