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मेरी पूरी सहानुभूति यहूदियों के साथ है। मैं उन्हें दक्षिण अफ्रीका में बहुत क़रीब से जानता हूँ। उनमें से कुछ तो मेरे आजीवन के साथी बन गए हैं। इन मित्रों के माध्यम से मुझे उनके सदियों पुराने उत्पीड़न के बारे में बहुत कुछ पता चला। ईसाइयों द्वारा उनके साथ किए गए व्यवहार और हिंदुओं द्वारा अछूतों के साथ किए गए व्यवहार के बीच बहुत समानता है। दोनों मामलों में किए गए अमानवीय व्यवहार को उचित ठहराने के लिए धार्मिक स्वीकृति का सहारा लिया गया है।

इसलिए, मित्रता के अलावा, यहूदियों के प्रति मेरी सहानुभूति का एक और सामान्य सार्वभौमिक कारण है। लेकिन मेरी यह सहानुभूति मुझे न्याय की उपेक्षा की इजाज़त नहीं देती। उन्हें, पृथ्वी के अन्य लोगों की तरह, उस देश को अपना घर क्यों नहीं बनाना चाहिए जहाँ वे पैदा हुए हैं और जहाँ वे अपनी आजीविका कमाते हैं? फ़िलिस्तीन अरबों का है उसी तरह जैसे इंग्लैंड अंग्रेजों का है या फ्रांस फ्रांसीसियों का। यहूदियों को अरबों पर थोपना ग़लत और अमानवीय है। आज फ़िलिस्तीन में जो कुछ हो रहा है, उसे किसी भी नैतिक आचार संहिता द्वारा उचित नहीं ठहराया जा सकता। बेहतर तरीका यह होगा कि यहूदियों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार पर जोर दिया जाए, चाहे वे कहीं भी पैदा हुए हों या पले-बढ़े हों। फ्रांस में पैदा हुए यहूदी ठीक उसी तरह फ्रांसीसी हैं जैसे फ्रांस में पैदा हुए ईसाई फ्रांसीसी हैं।….. पृथक राष्ट्र के लिए यह क्रंदन यहूदियों के जर्मनी से निष्कासन को औचित्य प्रदान करता है।
अगर मैं यहूदी होता और जर्मनी में पैदा होता और वहीं अपनी आजीविका कमाता, तो मैं जर्मनी को अपना घर मानता, जैसा कि गैर-यहूदी जर्मन कह सकता है, और उसे चुनौती देता कि वह मुझे गोली मार दे या मुझे काल-कोठरी में डाल दे; मैं निष्कासित होने या भेदभावपूर्ण व्यवहार के आगे झुकने से इनकार कर देता। और ऐसा करने के लिए मुझे साथी यहूदियों के नागरिक प्रतिरोध में शामिल होने का इंतज़ार नहीं करना चाहिए, बल्कि मुझे विश्वास होना चाहिए कि अंत में बाकी लोग मेरा अनुसरण करने के लिए बाध्य होंगे…..
मुझे कोई संदेह नहीं है कि फ़िलिस्तीन में रहने वाले यहूदी ग़लत तरीके से आगे बढ़ रहे हैं। बाइबिल की अवधारणा का फ़िलिस्तीन एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं है। यह उनके दिलों में है। लेकिन अगर उन्हें भूगोल के फ़िलिस्तीन को अपना राष्ट्रीय घर मानना है, तो ब्रिटिश बंदूक की छाया में उसमें प्रवेश करना गलत है। संगीन या बम की सहायता से कोई धार्मिक कार्य नहीं किया जा सकता। वे अरबों की सद्भावना से ही फ़िलिस्तीन में बस सकते हैं। उन्हें अरबों के दिलों को बदलने की कोशिश करनी चाहिए। अरबों के दिलों पर वही ईश्वर राज करता है जो यहूदियों के दिलों पर राज करता है… मैं अरबों की ज्यादतियों का बचाव नहीं कर रहा हूँ। मेरे विचार में, अपने देश पर एक अनुचित अतिक्रमण का विरोध करने के लिए उनने अहिंसा का रास्ता चुनना था। लेकिन सही और गलत के स्वीकृत सिद्धांतों के अनुसार, विकट स्थितियों के मद्देनज़र अरब प्रतिरोध को ग़लत भी नहीं कहा जा सकता है।
यहूदियों को, जो विशिष्ठ नस्ल का होने का दावा करते हैं, अहिंसा का रास्ता चुनकर इस बात को साबित करना चाहिए। हर देश उनका घर है, जिसमें फ़िलिस्तीन भी शामिल है, आक्रामकता से नहीं बल्कि प्रेम से। एक यहूदी मित्र ने मुझे सेसिल रोथ द्वारा लिखित द ज्यूइश कंट्रीब्यूशन टू सिविलाइजेशन नामक पुस्तक भेजी है। इसमें यहूदियों द्वारा दुनिया के साहित्य, कला, संगीत, नाटक, विज्ञान, चिकित्सा, कृषि आदि को समृद्ध करने के लिए किए गए कार्यों का विवरण है। इच्छाशक्ति होने पर, यहूदी पश्चिम के बहिष्कृत माने जाने, तिरस्कृत होने या संरक्षण प्राप्त करने से इनकार कर सकते हैं। वे अपने अनेक योगदानों के साथ अहिंसक कार्रवाई का उत्कृष्ट योगदान भी जोड़ सकते हैं।
(‘ईसाइयत के अछूत’, संपादकीय – हरिजन 26.11.1938)
 
मैं मानता हूँ कि संसार ने यहूदियों के साथ बहुत जुल्म किया है। उनके साथ जैसा क्रूर बर्ताव हुआ, वह नहीं हुआ होता तो इनके फिलिस्तीन के इलाके में लौटने का कोई सवाल ही कभी पैदा नहीं होता। अपनी विशिष्ट प्रतिभा और देन के कारण सारी दुनिया ही उनका घर होती। उनकी विश्व नागरिकता उनको संसार के किसी भी देश का सम्मानित नागरिक बना सकती थी। प्रतिकूल परिस्थितियाँ हमें शांति का पाठ भी तो पढ़ाती हैं! जहाँ उनका सहज स्वागत नहीं है वैसी जगह जाने और वहाँ के लोगों पर खुद को अमरीकी दौलत व ब्रिटिश हथियारों के बल पर थोप देने की ज़रूरत ही क्या थी? फ़िलिस्तीन धरती पर अपनी जबरन उपस्थिति को मजबूत बनाने के लिए आतंकवादी उपायों का भी सहारा लेना यहूदियों को कैसे सुहाया?”
(‘यहूदी और फ़िलिस्तीन’, संपादकीय-हरिजन 14.07.1946)
 
गांधी और धर्मनिरपेक्ष भारत
“धर्म राष्ट्रीयता की कसौटी नहीं है, बल्कि यह मनुष्य और उसके ईश्वर के बीच का निजी मामला है। राष्ट्रीयता की इस भावना में वे पहले और अंत में केवल भारतीय हैं, चाहे वे किसी भी धर्म को मानते हों।”
(हरिजन, 29 जून 1947)
 
धर्म एक निजी मामला है
“धर्म प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तिगत मामला है। इसे राजनीति या राष्ट्रीय मामलों के साथ नहीं मिलाया जाना चाहिए”। “कोई हिंदू, कोई पारसी, कोई ईसाई या कोई जैन न हो। हमें यह समझना चाहिए कि हम केवल भारतीय हैं और धर्म एक निजी मामला है।”
(हरिजन, 7 दिसंबर 1947)
 
किसी भी सांप्रदायिक संस्थान को संरक्षण नहीं मिलना चाहिए
 
“हर एक व्यक्ति बिना किसी बाधा के अपने धर्म का पालन करने के लिए स्वतंत्र होगा, जब तक कि वह आम कानून का उल्लंघन न करे। ‘अल्पसंख्यकों की सुरक्षा’ का सवाल अच्छा नहीं है; यह एक ही राज्य के नागरिकों के बीच धार्मिक समूहों को मान्यता देता है। मैं चाहता हूँ कि भारत हर एक व्यक्ति को धार्मिक पेशे की स्वतंत्रता सुनिश्चित करे। तभी भारत महान हो सकता है, क्योंकि यह शायद प्राचीन दुनिया का एकमात्र राष्ट्र था जिसने सांस्कृतिक लोकतंत्र को मान्यता दी थी, जिसके अनुसार यह माना जाता है कि ईश्वर तक पहुँचने के रास्ते कई हैं, लेकिन लक्ष्य एक है, क्योंकि ईश्वर एक ही है। वास्तव में दुनिया में जितने व्यक्ति हैं, रास्ते उतने ही हैं।”……” राज्य पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष होने के लिए बाध्य है। मैं यहाँ तक कहता हूँ कि इसमें किसी भी सांप्रदायिक शैक्षणिक संस्थान को संरक्षण नहीं मिलना चाहिए।
(हरिजन 31 अगस्त, 1947)
 
राज्य आपके या मेरे धर्म का का ख्याल नहीं रखेगा
“मैं इसके (धर्म के) लिए मर भी सकता हूँ। लेकिन यह मेरा निजी मामला है। राज्य का इससे कोई लेना-देना नहीं है। राज्य आपके धर्मनिरपेक्ष कल्याण, स्वास्थ्य, संचार, विदेशी संबंधों, मुद्रा आदि का ख्याल रखेगा, लेकिन आपके या मेरे धर्म का नहीं। यह हर किसी की निजी चिंता है!”
(सम्पूर्ण गांधी वाङ्‌मय खंड 17)
 
अखिल भारतीय शांति और एकजुटता संगठन
मसला चाहे उग्र हिंदुत्व के बरअक्स भारत की धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करने की चुनौती का हो या इज़राइल द्वारा साम्राज्यवादी दौलत और हथियारों के बल पर आतंकवादी तरीके से फ़िलिस्तीन की धरती पर जबरन क़ब्ज़े का, गांधी की दृष्टि और दर्शन हमें रास्ता दिखाते हैं। भारत की धर्मनिरपेक्षता को क़ायम रखने और आज़ाद फ़िलिस्तीन के गांधी के सपने के लिए गांधी के बताए तरीके से ही जनसंघर्षों की जरूरत है।
अखिल भारतीय शांति और एकजुटता संगठन वर्ल्ड पीस कौंसिल के बैनर तले जारी इन संघर्षों में आपका बहुमूल्य साथ और सहयोग चाहता है।
 
अरविंद पोरवाल,
महासचिव,
अखिल भारतीय शांति और एकजुटता संगठन 
मध्य प्रदेश राज्य इकाई
9425324405

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