संपादकीय टिप्पणीः आजादी के तुरंत बाद युद्ध-स्तर पर नव-निर्माण का काम शुरू हुआ। जनता के पैसे से आधारभूत उद्योग खड़े किए गए, जिसे पब्लिक सेक्टर कहा गया। कम औकात के पूँजीपतियों को उपभोक्ता माल बनाने का काम मिला।
पब्लिक सेक्टर विशालकाय था तो जाहिर है टेक्नोक्रेट-ब्यूरोक्रेट संख्या और असर में काफी बड़े रहे होंगे। समय के साथ आजादी के आंदोलन की गर्मी से उपजे जीवन-मूल्य छीजन लगे और सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार में आकंठ डूब गया।
फिर निजी पूँजीपति जब क्रमशः ताकतवर होते गए और उनके पास इतना पूँजी संचय हो गया कि वे आधारभूत उद्योगों को चला सकें तो 1990 के दशक में बही उदारीकरण की बयार के उपरांत धरा बेच देंगे-गगन बेच देंगे, ये इंदिरा के बेटे जवाहर के नाती, एक दिन दिन ये सारा चमन बेच देंगे।
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नेहरू का समाजवाद फर्जी समाजवाद था क्योंकि आजादी जनांदोलनों के साथ-साथ समझौते के द्वारा भी मिली थी। नौकरशाही के नेतृत्व में अर्थव्यवस्था का संचालन समाजवाद की ओर नहीं ले जाता, उसके लिए जनता की रचनात्मक शक्ति को निर्बंध करना होता है और वह काम नेहरू नहीं कर पाए क्योंकि थे तो वह भी कैपिटलिस्ट क्लास के ही।
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विधि की विडंबना देखिए, आज के दौरे के बिजूके की तुलना में नेहरू देवदूत नजर आते हैं।
पंडित नेहरू के द्वारा आधुनिक भारत के निर्माण में जो योगदान हुआ, वह आज सबके सामने परिलाक्षित हो रहा है. वैसे अपने दुराग्रहो के चलते एक तबका बेबजह निंदा करता रहता है. लेकिन उनके शब्द जो नेहरू की आलोचना में थे, आज वही उन्हें चिढ़ा रहे है. नेहरू किसी के व्यक्तिगत आलोचना से दूर रहे. वह आधुनिक भारत के निर्माण के लिए चल रहे स्वतंत्रता संग्राम के गर्भ से निकले वैचारिक अमृत को ही आत्मसात किए. उनका वैचारिक अमृत था – इतिहास की वैज्ञानिकता, लोकतंत्र की मजबूती, धर्मनिरपेक्षता, समाज में बराबरी, शांति पूर्ण सह अस्तित्व और आम जन के पक्ष में विकास की धारा को मोड़ना. यह एक तथ्य है कि चीन से युद्ध के समय तमाम लोग युधोन्माद से लबरेज थे, तब नेहरू आम लोगों के जीवन से जुड़े मुद्दों पर ठोस कार्यनीति को लागू करने की पहल कर रहे थे. गांधीवादी से लेकर समाजवादी सबसे राय मसवीरा कर योजना आयोग को देश में जनपक्षीय नीतियों को लागू करने के लिए मजबूती प्रदान कर रहे थे. और इसी का नतीजा रहा की जब देश हैजा, तापेदिक, चेचक और कुपोषण से जूझ रहा था तो नेहरू के दूरगामी नीतियों के चलते विमारियों पर निर्णायक कदम उठाये गए. सरकार द्वारा प्राथमिक स्वाथ्य केंद्र, बीमारियों के उन्मूलन के लिए योजना, निःशुल्क टीका और दवाइयों को लोगो को उपलब्ध कराने का सफल प्रयास हुआ.
ट्रॉपीकल विमारियों के रोकथाम के लिए वैक्सीन बनाने के लिए शोध संस्थान और निर्माण हेतु उचित संसाधन नेहरू के दूरगामी सोच के चलते ही सामने आया. कोविड के इस दौर में नेहरू प्रश्नगिक हो गए है. टीकाकरण पर सरकार का रवैया और निजी अस्पतालों की लूट ने साबित कर दिया कि नेहरू आज भी प्रश्नगिक है आम लोगों के बीच! गाली देने वाले देते रहे. सूरज पर कोई थूकेगा तो वह सूरज पर नहीं बल्कि थूकने वाले के उपर ही गिरेगा. हां, एक बात और योजना आयोग को कोई और नहीं, अपितु नेहरू के नाम पर कसमें खाने वाले बेज़ुबान कांग्रेसियों ने ही जमींदोज किया. आज उन्हें याद करने का नहीं: उनके बताए रास्ते पर चलने का है. अपनी गलतियो को सुधारने का वक्त है.और यही लोगों के दिलों पर राज करायेगा.आज जब इतिहास के बहाने मध्ययुगीन सोच को स्थापित करने की कोशिश की जा रही है तो हमें सतर्क रहने की जरूरत है. हमें अपने मध्ययुगीन इतिहास के काले पक्ष को भी याद करना चाहिए. नेहरू अपने भारत की खोज में बखूबी इसे पहचाना, परखा और आधुनिक देश के निर्माण प्रक्रिया में सर्व धर्म संभाव को अपनाया. यह नेहरू ही थे जिन्होने आजादी के संघर्षो में अपने दौर के साथियो से समझा की धर्मनिरपेक्षता अखंड भारत की आत्मा है. धर्मनिरपेक्षता ही वह तत्व है जो भारत के अखंड और आधुनिक होने की गारंटी करता है.