संपादकीय टिप्पणीः इनका नाम कशिश नेगी है। फेसबुक पर लंबे समय से वॉच कर रहा हूँ। भारत जैसे बंद समाज वाले देश में इनके द्वार प्रस्तुत किए जाने वाले बोल्ड कांटेंट के कारण इनकी वॉल पर बहस तो खूब होती है पर वह कोई दिशा नहीं ले पाती। कारण साफ और सीधा है। पूँजी बनाम श्रम की लड़ाई में स्त्रियों को जोड़ा कैसे जाए, जब तक इसका जुगाड़ नहीं निकाला जाता है, स्त्रियों के आर्गज्म से जुड़ा मसला भी हल होने से रहा। सबसे पहले प्रधान अंतरविरोध ही हल होगा। स्त्रियाँ पितृसत्ता की गुलामी झेल रही हैं और गुलामों का अमानवीकरण भी होता है, इस नुक्ते की ओर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। लेफ्ट से जुड़े लोगों को इनकी ओर ध्यान देना चाहिए, इन्हें न्यूनतम हमदर्द तो बनाया ही जा सकता है.
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कई बार हम मृगतृष्णा से विचलित हो घूमते रहते हैं, लेकिन सुगंध है कि हमारे पास ही है और हम प्यासों के समान रेगिस्तान में मरीचिका के पीछे भाग रहे हैं। रिलेशनशिप/दोस्ती वही होती है जो एक दूसरे को ग्रो करने में साथ दे। अब बहुत समझदार हो गई, बुक्स पढ़ और रिलेटेड मूवीज देख–देख कर। एक मूवी “प्लेयर्स“ में नायिका ऐसे ही मरीचिका के पीछे भागती है और पा भी लेती है, परंतु अंत में उसे समझ आता है कि जिस रिलेशनशिप में वो है उसके पार्टनर को तो उसके पसंद–नापसंद और परेशानियों के बारे में कुछ पता ही नहीं बस एक फेक रिलेशनशिप में सब अच्छा ही होता है, बातें, प्यार का इजहार सब सकारात्मक बातें लेकिन अधिकार और जिम्मेदारी नहीं होती। असली रिलेशनशिप/दोस्ती वही होती है जो एक दूसरे की परेशानी समझे, उसका हल निकालने की कोशिश करे। मैंने अपने दोस्त बताया कि आजकल काम का बहुत प्रेशर है, एक्सेल में और मैं टेक्नोलॉजी और ये फालतू की चीजों में वीक हूं, बस आजीविका के लिए कर रही हूं। एक्सेल से रिलेटेड समस्याएं बताई जिससे टाइम बहुत लग रहा था। दूसरे दिन देखा मेरे व्हाट्सएप पर कुछ वीडियो थी मेरी समस्याओं से रिलेटेड, उन वीडियो से मेरा काम इतना सरल हो गया कि पूछो मत। ये बातें कोई लिखने वाली नहीं है बस भावुक हूं, भावुकता में ये पोस्ट उसे समर्पित कर रही हूं जो हमेशा मेरे साथ खड़ा रहता है। सबकुछ किसी के लिए कोई नहीं कर सकता, लेकिन उतना तो कर ही सकते हैं जितना कर सकते हैं, जितना बस में हो।
सेम एक और वाकया है मेरी दोस्त का, जो ब्लाइंड है। मेरा माउस ऐन वक्त पर खराब हो गया, समझ नहीं आ रहा था क्या करूं? उसका ख्याल आया, उसने आ के मुझे बिन माउस के सारी की बताई और अब सिखा रही है, हालांकि मुझे इंट्रेस्ट नहीं। मैं खुद को ब्लेस्ड फील करती हूं, ऐसे दोस्तों के बीच पा कर।
अपने पति की बात याद आती है। जो प्यार तुझे अपनों से मिलना चाहिए था वो तुझे बाहर से मिल जाता है, लेकिन हां!!!! मिल जाता है। मेरी एक दोस्त भी कहती थी तुझे कैसे प्यार मिल जाता है??? और मैं एक्सेप्ट करती हूं कि मुझे इस जीवन में बहुत प्यार मिला, मैं कभी रूखी नहीं रही। मेरा जीवन प्रेम से गुलजार रहा।