अपने उपेंद्रनाथ अश्क के लौंडे नीलाभ अश्क ने चंदाखोरों, इतिहास में अमर होने की चाहत रखने वाले तिलचट्टों (साहित्यकारों) को लेकर क्या ही गज़ब की बात कही है। हरामखोरों, जाँगर डोलाओ-सेठों और बनियों के लिए काम करो, जैसे बाकी मजदूर करते हैं फिर बाकी बचे समय में रचो और मजूरों को सुनाओ। ठर्रा पियो-शैम्पेन नहीं वर्ना तुम्हारे रचे पर हमारा चीकू भी नहीं मूतेगा।
▭ नीलाभ
॥ वजीफाखोरों का गीत ॥
हमको दे दो एक वजीफी हमको दे दो एक इनाम
हम हैं दीन-हीन बेचारे, तुम हो माता-पिता हमारे
अब तो छूटे सभी सहारे, कैसे चले हमारा काम
हमको दे दो एक वजीफी हमको दे दो एक इनाम
पहले राजा थे बुलवाते, हम भी उनके गुण थे गाते
भर-भर दान दक्षिणा पाते, अब हम किसको करें सलाम
हमको दे दो एक वजीफी हमको दे दो एक इनाम
अब तो सेठों का है राज, जिनके भरे हैं छप्पर-छाज
नताशीर हो कर लेखक आज, जपते सेठों का ही नाम
हमको दे दो एक वजीफी हमको दे दो एक इनाम
अपनी जनता के बल जीना, इसमें लगता खून-पसीना
ऐसी कड़वाहट को पीना, नहीं है अपने बस का ही काम
हमको दे दो एक वजीफी हमको दे दो एक इनाम