Total Views: 110
वाराणसी: आज सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला मलेरिया-रोधी उपचार, आर्टीमिसिनिन-आधारित संयोजन चिकित्सा (एसीटी), आर्टेमिसिनिन एनुआ पौधे से निकाले गए शुद्ध आर्टीमिसिनिन यौगिक का उपयोग करके उत्पादित किया जाता है। लगभग सभी पेड़ पौधों में कोई न कोई औषधीय महत्व विद्यमान होता है। ऐसा ही एक औषधीय पौधा है अर्टीमिसिया अनुआ।
अर्टीमिसिया की लगभग 100 प्रजातियां ज्ञात हैं, जिसमें अनुआ विशेषतः महत्वपूर्ण है। अर्टिमिसिनिन, एक शक्तिशाली प्राकृतिक खरपतवारनाशी के रूप में व्यापक रूप से उपयोग में लाया जाता है। इसके अलावा, अर्ध संश्लेषित औषधियाँ जैसे आरटीमीथर और आरटीसुनेट मलेरिया रोधी एजेंट के रूप में व्यापक चलन में हैं। इस पौधे का तना वैकल्पिक शाखाओं में बँटा होता है। पत्तियाँ सुगन्धित एवं बहु विभाजित होती हैं। इनकी लम्बाई लगभग 2 से 5 सेमी तक होती है।
ये चमकीली और गहरी हरी होती हैं। पत्तियों का शीर्ष नुकीला और पतला होता है, जो प्रायः मोर पंखी जैसा दिखता है। इसके पुष्प पीले रंग के एवं कोमल होते हैं। यह फूल हल्के पीले या हरे रंग के पराग युक्त फ्लोरेट्र्रस से घिरे होते हैं। इनमें परागण कीट एवं हवा के माध्यम से होता है जो प्रायः ‘‘एस्टरेसी’’ में नहीं देखा जाता। फूल द्विलिंगी होते हैं। अर्टिमिसिनिन एक द्व्रितीयक उपापचयक पदार्थ है जो सेस्क्वीटरपीन लेक्टोन के नाम से जाना जाता है।
यह अर्टीमिसिया के अनुआ  प्रजाति में ही पाया जाता है। परंतु  यह बहुत कम मात्रा में पाया जाता है। इसकी संश्लेषित प्रक्रिया और विनियमन प्रक्रिया भी अज्ञात है। यह मूलतः ग्रन्थिल रोमों में पाया जाता है। यह मुख्यतः न्यूक्लिक अम्ल को बनने से रोक देता है, आक्सीजन की कमी कर के प्लाजमोडियम परजीवी के प्रजनन को रोक देता है। अंततः लाल रक्त कोशिकायें मृत हो जाती है और परजीवी के प्रजनन चक्र को खत्म कर देता है। ऐसा पाया गया है कि अन्य मलेरियारोधी दवाइयाँ जैसे मैफ्लोक्वीन और प्रीमाक्वीन आरटी क्लोरोक्वीन आदि औषघियों जिन प्लाजमोडियम स्टेन पर प्रभाव शून्य होती है उन पर आर्टीेमिसिनिन औषघि प्रभावी है। आर्टीेमिसिनिन पानी और तेल में घुलनशील नहीं है। अतः इसे सोडियम आरटीसुनेट और आर्टीनिलिक एसिड के माध्यम से रोगियों की नसों में इंजेक्शन द्वारा दिया जाता है। अतः आर्टीेमिसिनिन के विभिन्न गुणों को देखते हुए समस्त विश्व में इसके उत्पादन की वृद्धि हेतु सार्थक प्रयास हो रहे हैं।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय के वनस्पति विज्ञान विभाग में पादप ऊतक संवर्घन एवं संरचना विकास प्रयोगशाला में भी इस पौघे की नयी उच्च किस्में जिनसे आर्टीेमिसिनिन का उत्पादन ज्यादा हो सके, विकसित करने की दिशा में प्रयास किया जा रहा हैं। ताकि विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थतियों एवं वातावरण में इस पौघे को उगाया जा सके। प्रो. शशि पांडे पर्यावरण समन्वयक वनस्पति विज्ञान विभाग ने बताया की 2006 से वनस्पति विज्ञान विभाग में इस पौधे पर कार्य किया जा रहा है तथा 24 से अधिक शोध पत्र इंटरनेशनल जर्नल्स में प्रकाशित किए जा चुके हैं। आज आवश्यकता है कि इस पौधे को हम संरक्षित करें एवं उन तमाम पहलुओं का अध्ययन करें, जिससे इस प्रभावशाली औषधि के उत्पादन में वृद्धि हो सके और हम जनकल्याण एवं स्वस्थ समाज की स्थापना में योगदान कर सकें।

Leave A Comment