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प्रयागराजः अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर महिला अध्ययन केंद्र, इलाहाबाद विश्विद्यालय के द्वारा एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन, ईश्वर टोपा भवन में किया गया | गोष्ठी के उदघाटन सत्र का आरम्भ दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया गया |
इस क्रम में आयोजन की संयोजक महिला अध्ययन केंद्र की निदेशक प्रो. अनुराधा अग्रवाल ने माननीय कुलपति इलाहाबद विश्वविद्यालय, प्रो.संगीता श्रीवास्तव महोदया का स्वागत पुष्प गुच्छ और प्रतीक चिन्ह देकर किया साथ ही मुख्य वक्ता प्रो. सुभद्रा मित्रा चन्ना और सत्र अध्यक्ष प्रो. बेचन शर्मा का स्वागत किया | कार्यक्रम को आगे बढाते हुए गोष्ठी की विषय प्रस्तुति प्रो. अनुराधा अग्रवाल के द्वारा किया गया | जिसमें आप ने इस दिवस को महिला के उपलब्धियों के दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया |
सशक्त महिला और समृद्ध मानवता को स्पष्ट करते हुए विश्वविद्यालय की कुलपति के गतिशील योगदान को स्पष्ट किया जिसकी वजह से विश्वविद्यालय विकास और उपलब्धियों के नये आयाम को पहुँच रहा है | उन्होने कहा कि ने स्त्रियों को अधिक क्षमतावान बनाया है। इसी कारण से जब भी महिलाओं को मौका दिया जाता है वे श्रेष्ठता की प्रथम पंक्ति में अपनी जगह तेजी से बना लेती हैं।
आज हर प्रतियोगिता और परीक्षा में महिलाओं की प्रतिभागिता और नतीजों में उनका बेहतर प्रदर्शन इस बात की पुष्टि है। पालन और पोषण देने की नैसर्गिक क्षमता ने कुलपति के दायित्व पूरे करने में सहायक हुआ और विश्वविद्यालय को एक नई दिशा और दशा दी।
तत्क्रम में नासिरा शर्मा की पुस्तक ‘कुइयाँजान’ अनुवादित द्वारा प्रो. शबनम हामिद, उर्दू विभाग ,इ.वि.वि., का अनावरण माननीय कुलपति द्वारा किया |
मुख्य अतिथि माननीय कुलपति प्रो.संगीता श्रीवास्तव ने एतिहासिक परिप्रेक्ष्य में महिला की स्थिति को स्पष्ट किया जिसमें भारत और पाश्चात्य परम्परा में महिलाओं की स्थिति को तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया | साथ ही उस पक्ष को उजागर किया जिसमे केवल भारत में ही महिला देवियों की स्वीकारोक्ति है जो पुरूष देवताओं से अधिक शक्तिशाली भी हैं | अन्य सभी परम्पराओं में केवल पुरूष देवता ही पाए जाते है | इस प्रकार भारत में महिलाओं की गौरवशाली परम्परा और वर्तमान में महिलाओं की उपलब्धियों और समाज के विकास और राष्ट्र निर्माण में योगदान पर मार्गदर्शन किया है |
मुख्य वक्ता निवर्तमान प्रो. सुभद्रा मित्रा चन्ना ,मानवशास्त्र विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय, ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत में महिलाओं के लिए बदलाव पहली बार स्वतंत्रता आन्दोलन में दिखाई देता है जब आजादी की लड़ाई में वे भी घर की चहरदीवारी से बाहर आई | पाश्चात्य और भारतीय परम्परा में महिलाओं की स्थिति को तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करते हुए कहा की पश्चिमी जगत महिलाओं के लिए सदैव पूर्वाग्रही रहा है जबकि दक्षिण एशिया विशेषकर भारत में यह स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर रही है | साथ में समावेशी नारीत्व मूल्यों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर भी बल दिया और कहा कि वर्तमान पूजीवादी व्यवस्था पितृसत्तात्मक मूल्यों पर आधारित हैं जो स्वभाव से अधीनता और शोषण को बढ़ावा देते हैं |
सत्र के अध्यक्ष प्रो. बेचन शर्मा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में परिवार और समाज में महिला की स्थिति और उनके रचनात्मक योगदान को उजागर किया | इसी क्रम में महिला दिवस को प्रारम्भ किये जाने और उसके थीम महिला पर निवेश कर किस प्रकार से विकास की गति को बढ़ाया जा सकता है इस पर भी मार्गदर्शन करने का कार्य किया है तथा कहा कि स्वस्थ और समावेशी समाज के निर्माण के लिए महिला सशक्तिकरण पर बल दिया | साथ की उनके लिए मुख्य धारा के मार्ग प्रशस्त किये जाने की आवश्यकता को रेखांकित किया |
माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है इस परिप्रेक्ष्य में अपनी बात को रखते हुए प्राचीन भारतीय परम्परा में महिलाओं की स्थिति को स्पष्ट किया |
गोष्ठी के उदघाटन सत्र के अंतिम चरण में महिला अध्ययन केंद्र के सहायक प्राध्यापक डॉ. गुरपिंदर कुमार ने माननीय कुलपति महोदया के सहयोग और निरंतर प्रेरणा के लिए धन्यवाद किया साथ में मंचासीन गणमान्य का स्वागत करते हुए सभी प्रतिभागियों अन्य सहयोगियों का भी धन्यवाद किया | मंच संचालन राजनीति विज्ञान विभाग की सहायक अध्यापिका डॉ. ऋतंभरा मालवीय ने किया | इसमें राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. मोहम्मद शाहिद, प्रो. पंकज कुमार, प्रो. हर्ष कुमार, प्रो. अनामिका राय,प्रो. जया कपूर, प्रो. विजय कुमार राय , प्रो. अनुपमा राय कुल सचिव प्रो. एन. के शुक्ला, प्रो. आशीष सक्सेना, आदि उपस्थित रहे |

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