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वाराणसीः हिंदी अनुभाग, महिला महाविद्यालय (काशी हिंदू विश्वविद्यालय) द्वारा दिनांक 3 अप्रैल 2024 से 10 अप्रैल 2024 तक स्नातक स्तरीय पाठ्यक्रम आधारित सप्तदिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस आयोजन की संयोजिका डॉ. उर्वशी गहलौत रहीं।
कार्यशाला के प्रथम दिन डॉ. किंगसन पटेल ने स्त्री विमर्श से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्यों से छात्राओं को परिचित कराया। साथ ही छात्राओं की अकादमिक व व्यवहारिक जिज्ञासाओं के समाधान के लिए विभिन्न पुस्तकों एवं लेखक-लेखिकाओं के नाम सुझाए। द्वितीय दिवस आधुनिक काव्य के संदर्भ में कवि मुक्तिबोध और धूमिल को केंद्र में रखते हुए प्रो. चंद्रकला त्रिपाठी ने व्याख्यान दिया।
इस व्याख्यान में छायावाद, प्रगतिवाद, मार्क्सवाद, तारसप्तक, मध्यवर्ग, आधुनिक काव्य की भाषा, फैंटसी आदि मुख्य बिन्दुओं पर चर्चा करते हुए छात्राओं के प्रश्नों के उत्तर दिए गए। तृतीय दिवस प्रो. श्रीनिवास पांडेय ने भक्तिकाल को व्याख्यायित करते हुए कवि तुलसीदास (विशेष संदर्भ रामचरितमानस) पर विस्तृत चर्चा की।
भरत के चरित्र को केंद्र में रखते हुए रामचरितमानस की भाषा, वाल्मीकि रामायण एवं रामकथा के संदर्भ में अब तक चले आ रहे तमाम विवादित प्रसंगों को भी स्पष्ट किया गया। कार्यशाला के चतुर्थ दिवस प्रो. सदानंद शाही ने समकालीन कविता में कवि राजेश जोशी के महत्व को रेखांकित किया। छात्राओं को राजेश जोशी की कविताओं के कथ्य व शिल्प के विषय में बताते हुए केदारनाथ सिंह, मंगलेश डबराल, विजयदेवनारायण शाही एवं अन्य कवियों की कविताओं का भी उल्लेख किया। डॉ. विन्ध्याचल यादव ने कार्यशाला के पंचम दिवस पर व्याख्यान देते हुए हिंदी साहित्य के मध्यकाल पर विस्तृत चर्चा की।
मध्यकाल के विभाजन एवं प्रवृत्ति को स्पष्ट करते हुए पाश्चात्य इतिहासकारों की औपनिवेशिक दृष्टि को भी विवेचित किया गया। डॉ. प्रभात मिश्र ने षष्ठ दिवस पर काव्यशास्त्र पर अपने विचार प्रस्तुत किए। भारतीय काव्यशास्त्र (संस्कृत काव्यशास्त्र) में महाकाव्यों के महत्व को स्पष्ट करते हुए काव्यशास्त्र की शब्दावली, काव्यहेतु, काव्यलक्षण, काव्यप्रयोजन एवं रस की विवेचना की गई। कार्यशाला के अंतिम दिन प्रो. नीरज खरे ने हिंदी कथा साहित्य पर अपने विचार प्रस्तुत किए। स्नातक के पाठ्यक्रम को ध्यान में रखते हुए कहानी (गदल, उसने कहा था, पूस की रात, अमृतसर आ गया आदि) के कथ्य व शिल्प पर चर्चा की गई।
इस सप्तदिवसीय कार्यशाला के संयोजन में डॉ. हरीश कुमार एवं शोध छात्र-छात्राओं (श्वेता त्रिपाठी, श्वेता मौर्या, गोपी चंद चौरसिया, पूजा जिनागल व अन्य) ने भी अपनी सहभागिता दर्ज की।