वाराणसी: रस शास्त्र विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी “ब्रिजिंग क्लासिकल एंड कंटेम्पररी आस्पेक्ट ऑफ़ आयुर्वेदिक फार्मास्युटिक्स” में आयुर्वेद की महत्ता पर मंथन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. के. के. त्रिपाठी सहित अनेक विद्वानों ने अपने विचार रखे।

राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान, जयपुर से आए गेस्ट ऑफ ऑनर प्रो. एल. के. द्विवेदी ने कहा कि आज पूरा विश्व आयुर्वेद की ओर देख रहा है। आयुर्वेद की महत्वपूर्ण विधा रस शास्त्र की औषधियों को मानकों के आधार पर बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने देसी गाय के उत्पादों के प्रयोग को भी रोगों से बचाव के लिए महत्वपूर्ण बताया।

पूर्व संकाय प्रमुख, आयुर्वेद संकाय, प्रो. सी. बी. झा ने कहा कि रस शास्त्र विधा की महत्ता आज स्पष्ट रूप से देखी जा रही है। उन्होंने गर्व व्यक्त किया कि बहुत कम आयुर्वेदिक विश्वविद्यालयों में भी रस शास्त्र विभाग के दो विद्वान – प्रो. के. आर. सी. रेड्डी एवं प्रो. पी. के. प्रजापति – कुलपति के रूप में सुशोभित कर रहे हैं।

संगोष्ठी से छात्रों को होगा लाभ
पूर्व संकाय प्रमुख, आयुर्वेद संकाय, प्रो. के. एन. द्विवेदी ने कहा कि यह संगोष्ठी छात्रों एवं जनता के लिए अत्यंत लाभकारी होगी। जब कंपनियाँ औषधियों को सही मानकों के अनुसार बनाएँगी, तो ये औषधियाँ जनता के लिए अत्यंत प्रभावी सिद्ध होंगी। उन्होंने कहा कि समाज में पारा को लेकर जो भ्रम फैला हुआ है, वह उच्च गुणवत्ता वाले निर्माण से समाप्त हो सकता है।

आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा का समन्वय
मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रो. के. के. त्रिपाठी ने कहा कि महामना जी द्वारा इंटीग्रेटेड चिकित्सा व्यवस्था का आरंभ किया गया था, जिसमें आधुनिक चिकित्सा एवं आयुर्वेद चिकित्सा को सम्मिलित कर शोध को बढ़ावा दिया गया है। ऐसा संगम विश्व में कहीं और नहीं है। आयुर्वेद एवं आधुनिक चिकित्सा के समन्वय से ही समाज को समुचित स्वास्थ्य लाभ प्रदान किया जा सकता है।

वैश्विक स्तर पर शोध की आवश्यकता
आयुष विश्वविद्यालय, गोरखपुर के कुलपति एवं गेस्ट ऑफ ऑनर प्रो. के. आर. सी. रेड्डी ने छात्रों को आयुर्वेद के क्षेत्र में विश्व स्तरीय शोध कार्य करने के लिए प्रेरित किया। साथ ही रस शास्त्र विभाग द्वारा इस प्रकार के जनहितकारी कार्यों की सराहना की।

पंचकर्म चिकित्सा का महत्व
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. गोपालनाथ, डीन, रिसर्च चिकित्सा विज्ञान संस्थान ने बताया कि सैकड़ों बैक्टीरिया एवं वायरस शरीर में रहते हैं। उनकी सफाई के लिए पंचकर्म चिकित्सा का प्रावधान आयुर्वेद में किया गया है, जिससे नेगेटिव गट माइक्रोबायोटा की सफाई हो जाती है और रोगों से बचाव में मदद मिलती है। उन्होंने तीनों संकायों को मिलकर शोध के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया।

विद्वानों ने किया भ्रम दूर
आयोजन सचिव प्रो. नम्रता जोशी ने कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य जनता के बीच फैले भ्रम को दूर करना है। रस शास्त्रीय आयुर्वेद औषधियों के बारे में जो भ्रांतियाँ हैं, उन्हें दूर करने के लिए इस संगोष्ठी में रस शास्त्र के विशिष्ट विद्वानों को आमंत्रित किया गया था। विद्वानों ने स्पष्ट किया कि औषधियों का निर्माण सही तरीके से होने पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है।

पैनल डिस्कशन में छात्रों के सवालों का समाधान
पैनल डिस्कशन के दौरान प्रो. एल. बी. सिंह, प्रो. सी. बी. झा, प्रो. एल. एल. द्विवेदी, प्रो. पी. एस. ब्यादगी, डॉ. शशिरेखा और वैद्य सुशील कुमार दूबे ने छात्रों के सभी प्रश्नों का समुचित समाधान किया। मंच संचालन डॉ. रम्या एवं डॉ. आदित्य सरोज ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. पी. एस. पांडेय ने प्रस्तुत किया।

व्याख्यान और विशेषज्ञों की उपस्थिति
इस अवसर पर प्रो. सी. बी. झा, प्रो. के. एन. द्विवेदी, डॉ. लक्ष्मीकांत, प्रो. एल. बी. सिंह के व्याख्यान हुए। कार्यक्रम में प्रो. संगीता गहलोत, प्रो. सी. एस. पांडे, प्रो. जे. एस. त्रिपाठी, प्रो. पी. ब्यादगी, प्रो. सुनीता, प्रो. पालीवाल, डॉ. शशिरेखा, डॉ. शिखा, डॉ. सतत, डॉ. मृदुल, डॉ. देवानंद, डॉ. गुरुप्रसाद, डॉ. रोहित शर्मा उपस्थित थे। मंच संचालन डॉ. रम्या एवं डॉ. आदित्य ने किया।