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वाराणसीः समकालीन हिंदी कविता के महत्वपूर्ण कवि श्रीप्रकाश शुक्ल के कवि कर्म पर प्रतिष्ठित आलोचक कमलेश वर्मा तथा सुचिता वर्मा द्वारा संपादित पुस्तक ‘असहमतियों के वैभव के कवि : श्रीप्रकाश शुक्ल’ का लोकार्पण 12 मार्च को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के आचार्य रामचंद्र शुक्ल सभागार में किया गया। पुस्तक में श्रीप्रकाश शुक्ल के बृहद कवि व्यक्तित्व पर विभिन्न आलोचकों के गंभीर आलोचनात्मक लेखों को रखा गया है जिसे सेतु प्रकाशन समूह के वाग्देवी प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कथालोचक प्रो.सूरज पालीवाल ने की तथा मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ कवि ज्ञानेन्द्रपति जी उपस्थित रहे।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो.सूरज पालीवाल ने कहा कि पुस्तक में सभी आलोचकों ने विवेकपूर्ण ढंग से अपनी बातों को रखा है तथा श्रीप्रकाश शुक्ल का एक मुकम्मल मूल्यांकन प्रस्तुत करने की कोशिश की है। प्रो.पालीवाल ने सम्पादकों को बधाई देते हुए कहा कि बेहद ही विचारपूर्ण ढंग से सम्पादक द्वय ने लेखों का चयन और संयोजन किया है। यह पुस्तक बेहद ही पठनीय और विचारवान आलोचनात्मक लेखों के संग्रह के रूप में है जो कि रचनात्मकता की ऊर्जा से भरे हैं।
मुख्य वक्ता वरिष्ठ कवि ज्ञानेन्द्रपति ने कहा कि इस सम्पादित पुस्तक में श्रीप्रकाश शुक्ल की काव्ययात्रा में विभिन्न पड़ावों को ध्यान में रखते हुए कवि कर्म का मूल्याकंन किया गया है। श्रीप्रकाश शुक्ल के कवि कर्म का विकास उनके आलोचना कर्म की सहवर्तिता में हुआ है तथा इस दृष्टि को ध्यान में रखते हुए यह पुस्तक काफी महत्वपूर्ण प्रयास करती हुई दिखाई देती है।उन्होंने प्रतिरोध को जीवित रखने वाले कवि के रूप में प्रो शुक्ल को रेखांकित किया।
विशिष्ट वक्ता  के रूप में बोलते हुए वरिष्ठ आलोचक अजय तिवारी ने कहा कि पुस्तक में श्रीप्रकाश शुक्ल की कविताओं का मर्म गंभीरता से उद्घाटित करने का प्रयत्न किया गया है, सहज क्रम में ढेर सारी गम्भीर बातें पुस्तक में की गई हैं जिनका बेहद ही कलात्मक संयोजन सम्पादक द्वय द्वारा किया गया है।
लेखक श्रीप्रकाश शुक्ल ने अपने आत्मवक्तव्य में कहा कि कविता अपने समय और अपने सामाजिक गति की माप भी है और ताप भी है। प्रो.शुक्ल ने कहा कि स्वीकार्यता और निरंतरता सभी में होनी चाहिए, बिना इन दोनों तत्वों के न लेखक और न ही सम्पादक बड़ा हो सकता है।
महत्वपूर्ण आलोचक कृष्णमोहन ने कहा कि इस किताब में कुछ ऐसे महत्वपूर्ण संदर्भ सूत्र हैं जो कवि के कर्म को समझने में काफी महत्वपूर्ण है। प्रो.कृष्णमोहन ने कहा कि श्रीप्रकाश शुक्ल के कविताओं की मुख्य शक्ति उनके सक्षम व्यंजक वाक्यों में देखने को मिलती है तथा कविताओं की अर्थवत्ता को तलाशते हुए श्रीप्रकाश शुक्ल के सम्पूर्ण कवि कर्म का एक सार्थक मूल्यांकन करने का प्रयास इस पुस्तक में किया गया है।
युवा आलोचक प्रभात मिश्र ने कहा कि श्रीप्रकाश शुक्ल की कविताओं में जो विरोध के तत्व हैं वे महत्वपूर्ण हैं तथा उन्हीं विरोध के तत्वों तथा तनावों को रेखांकित करने का महत्वपूर्ण कार्य इस पुस्तक में किया गया है। श्रीप्रकाश शुक्ल की कविता में व्याप्त सूक्ष्मताओं की ओर लेखों में संकेत किया गया है, पुस्तक में एक कवि के रूप में श्रीप्रकाश शुक्ल की आत्मसजगता की ओर आलोचकों ने महत्वपूर्ण ध्यान दिलाया है।
युवा कवि निशांत ने कहा कि विकट समय में सृजनशीलता का सम्मान करना आवश्यक है तथा इस पुस्तक ऐसा ही कार्य सम्पादकों ने करने की कोशिश की है। पुस्तक में यह कोशिश किया गया है कि श्रीप्रकाश शुक्ल के कवि कर्म और उनकी रचना प्रक्रिया पर समग्रता से विचार किया गया है।
युवा कवि एवं सम्पादक अनिल पाण्डेय ने कहा कि इस पुस्तक में किसी प्रकार के दावों से हटकर मुख्य रूप से श्रीप्रकाश शुक्ल के कविकर्म को केंद्र में रखकर कार्य किया गया है। यह एक महत्वपूर्ण कार्य है जिसमें कवि पर विभिन्न दृष्टियों से विचार किया गया है जो कई कोणों से नवाचारी प्रयास हैं । विभिन्न लेखों को कई शीर्षकों के अंतर्गत समायोजित करके प्रस्तुत करना सम्पादक की प्रयोगशीलता का प्रमाण है।
आधार वक्तव्य देते हुए सुचिता वर्मा ने पुस्तक की सम्पूर्ण रचना प्रक्रिया के बारे में बताते हुए कि पुस्तक में श्रीप्रकाश शुक्ल के कवि व्यक्तित्व को कई दृष्टियों से देखने की कोशिश की गई है। डॉ. सुचिता ने कहा कि श्रीप्रकाश शुक्ल के काव्य व्यक्तित्व को समझने के लिए उनके गद्य को भी ध्यान में रखा गया है।
सम्पादकीय वक्तव्य में कमलेश वर्मा ने कहा कि इस से रचनाकार को अपने-अपने ढंग से देखने की कोशिश की गई है जोकि अतिंम या एकमात्र होने का दावा नहीं करती। वरिष्ठ पीढ़ी से लेकर कनिष्ठतम आलोचकों के मतों को इस पुस्तक में शामिल करके इसका आयाम बृहद करने की कोशिश की गई है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. विंध्याचल यादव ने किया तथा स्वागत वक्तव्य डॉ. महेंद्र प्रसाद कुशवाहा ने दिया। कार्यक्रम में कुलगीत की प्रस्तुति अलका कुमारी और सानंदा ने की। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. प्रीति त्रिपाठी ने किया। कार्यक्रम में हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो.वशिष्ठ अनूप, प्रो.बलराज पाण्डेय, डॉ. नरेंद्र मिश्र, डॉ. दीनबंधु तिवारी, डॉ. सूर्यप्रकाश मिश्र, प्रो.नीरज खरे, प्रो.प्रभाकर सिंह, डॉ. विवेक सिंह, डॉ. अमरजीत राम, डॉ. धीरेन्द्रनाथ चौबे, डॉ. शैलेंद्र सिंह, डॉ. धीरेंद्र नाथ चौबे, डॉ. अशोक ज्योति, डॉ. लहरीराम मीणा, डॉ. रचना शर्मा, डॉ. प्रियंका सोनकर तथा भारी संख्या में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति रही।

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