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क्या आप जानते हैं कि ऋषि विश्रवा ने रावण, कुंभकर्ण और सूर्पनखा को अपना कुलनाम क्यों नहीं दिया और ये राक्षस क्यों कहलाए?
प्राचीन ग्रंथों और इतिहास में ऐसे कई ठोस संकेत मिलते हैं जो बताते हैं कि रावण की माता और उसका माली-सुमाली कबीला भारतीय उपमहाद्वीप से नहीं था।
यह कबीला काकेशियन था। रावण की माता का नाम केकसी होना इसका पहला संकेत है। उस समय में आर्यावर्त में बहुओं को उनके मायके के नाम से पुकारने की परंपरा थी। कुलीनघरों की बहुओं को उनके नाम से नहीं पुकारा जाता था। इसलिए विश्रवा के परिवार की बहु बनने के बाद उसे काकेशियन होने की वजह से केकसी नाम मिला।
प्राचीन काल में काला सागर और केस्पियन सागर के बीच के इलाके को काकेशिया कहा जाता था। वहीं जहां काकेशस पर्वत शृंखला है। आज यह इलाका अज़रबैजान, आर्मेनिया, जॉर्जिया और दक्षिण रूस में बटा हुआ है।
माली कबिला काकेशस में भी कहां रहता था, इसके संकेत आज भी वहां मिलते हैं। ग्रेटर काकेशस पर्वत माला के दक्षिण हिस्से को माली कावकाज कहा जाता है। इससे यह संकेत भी मिलता है कि माली या उसका परिवार ही यहां राज करता होगा या उसके ही कबीले का यहां प्रभुत्व होगा। माली शब्द नाम न होकर वंश सूचक भी हो सकता है।
माली कावकाज में कावकाज का वही अर्थ है जो हिंदी में कामकाज का है। अतः हमारी भाषा में कामकाज शब्द इसी कबीले के साथ भारत आया और यह कावकाज अपभ्रंश होकर कामकाज बन गया। इस कबीले के आने से पहले हम सिर्फ कृत्य या कार्य, कर्म आदि शब्द का इस्तेमाल करते थे। कामकाज हमारी भाषा में बाद में जुड़ा। यह माली कबीले और भारतीय के बीच शुरू हुए संवाद के दौरान अडॉप्ट किया गया।
अब सवाल यह है कि अगर माली के परिवार की काकेशस के किसी हिस्से पर संप्रभुता थी तो यह अपना इलाका छोड़कर क्यों भागा? इतिहास में इसके पीछे की वजह मिलती है कोलचियनों के हमलो में। ये हमले मूसा से पहले के काल में शुरू हो गये थे। इतिहास के जनक हेरोडोट्स ईसा से पांच सदी पूर्व लिखते हैं कि कोलचियन काले रंग के मिस्रवासी थे।
अंत: संकेत हैं कि कोलचियनों से हारकर यह कबीला दक्षिण की ओर लंबी यात्रा कर और उसके बाद नौकाओं के जरिए भारत के किसी दक्षिणी तट पर पहुंचा। दक्षिण भारत में दिखे श्यामवर्ण के लोगों को भी उस कबीले ने कोलचियन कहकर पुकारा और इसी शब्द के अपभ्रंश रूप में हमारी भाषा में काला शब्द शामिल हुआ। अन्यथा हम तो श्याम, धूम्र वर्ण जैसे शब्द इस्तेमाल करते थे।
अब हम अपने मूल सवाल पर लौटते हैं कि रावण को राक्षस क्यों कहा जाता है?
इस बात के हमारे धर्मग्रंथों में पर्याप्त संकेत हैं कि आर्यावर्त में इस कबीले का सामना ऋषि अगस्त्य और उनके परिवार से हुआ। मैत्री प्रस्ताव के रूप में माली के कबीले ने अपने परिवार की उन महिलाओं, जिनके पति समुद्री या लंबे सफर के दौरान मर गये थे भेंट स्वरूप ऋषिकुल को प्रस्तुत किया।
इसपर ऋषि अगस्त्य ने ताड़का से विवाह के प्रस्ताव को तत्काल नकार दिया। वाल्मीकि रामायण के बालकांड में अगस्त्य द्वारा ताड़का का विवाह प्रस्ताव नकारने की कथा है।
मगर शादीशुदा और दो बच्चों नल और कुबेर के पिता विश्रवा सुमाली की पुत्री पर मोहित हो गए। उससे विवाह कर उसे केकसी नाम दिया। ‘श’ को ‘स’ उच्चारित करने की समस्या आज भी बहुत से भारतीयों में बनी हुई है। जिसे सुधारने में बॉलीवुड ने खास भूमिका निभाई – सावन का महीना पवन करे शोर! सोर नहीं बाबा शोर! (आपको भी याद होगा)
केकशी के तीन बच्चे रावण, कुंभकर्ण और सूर्पनखा पहले पति से थे। इसलिए विश्रवा ने उन्हें अपना कुलनाम देने से इंकार कर दिया। वे राक्षस कह लाए, जिन्हें रक्षार्थ एडॉप्ट किया गया। #सुधीर_राघव

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