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वाराणसीः युवा कवि अनिल पाण्डेय के सम्पादकत्व में निकलने वाली पत्रिका ‘रचनावली’ के श्रीप्रकाश शुक्ल विशेषांक का लोकार्पण श्रीप्रकाश शुक्ल के 59वें जन्मदिन के अवसर पर हिंदी विभाग के आचार्य रामचंद्र शुक्ल सभागार में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो.वशिष्ठ द्विवेदी ने की तथा मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध आलोचक प्रो.शंभुनाथ जी उपस्थित रहे। प्रतिष्ठित आलोचक माधव हाड़ा कार्यक्रम के मुख्य वक्ता रहे।
मुख्य अतिथि प्रो.शंभुनाथ जी ने कहा समाज में साहित्यकारों के प्रति सम्मान की भावना न हो तो यह स्थिति भौतिक समृद्धि के साथ बौद्धिक रिक्तता की ओर संकेत करती है तथा इसी बौद्धिक रिक्तता का परिणाम है कि साहित्यिक क्षेत्र में आलोचना के प्रति उपेक्षा बढ़ी है। श्रीप्रकाश आत्मबिद्ध व्यक्ति हैं, उनका स्थान और काल उनकी कविताओं एक बड़े रूप में उपस्थित होता है,।उनका आत्म बेहद ही विस्तृत है जिसमें साहित्यकार का एक उज्ज्वल पक्ष सम्मिलित है।
अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो.वशिष्ठ द्विवेदी ने कहा श्रीप्रकाश शुक्ल जितने अच्छे कवि हैं उतने ही अच्छे और विश्वसनीय इंसान भी हैं जो साहित्यिक दुनिया से आगे बढ़ते हुए जीवन में मजबूती के साथ अपने प्रिय लोगों से जुड़े रहते हैं । रचनावली पत्रिका में श्रीप्रकाश शुक्ल के इसी व्यक्तित्व को समग्र रूप से देखने की एक सफल और सार्थक कोशिश की गई है।श्रीप्रकाश शुक्ल को उन्होंने गारहस्तिक जीवन का कवि बताया।
मुख्य वक्ता प्रो.माधव हाड़ा ने कहा कि बड़ा और अच्छा कवि हमेशा अपने लिखे हुए से आगे बढ़ता है, मतलब कि वह पुनर्नवता में विश्वास करते है। श्रीप्रकाश शुक्ल ऐसे ही कवि हैं जो अपनी ही कविता में मुहावरे,भाषा और उसके सरोकारों के स्तर पर अपनी अगली कविता में बदलाव लाते हैं जिससे उनकी कविता में हमेशा ताजगी बनी रहती है। अपने समय के कवियों को वर्तमान के प्रचलित मुहावरों में सीमित नहीं करना चाहिए। प्रो.हाड़ा ने कहा कि श्रीप्रकाश शुक्ल उम्मीद और भरोसे के कवि हैं, उनकी कविताओं में सुंदरता की अनुपस्थिति की चिंता दिखाई देती है।
आत्मवक्तव्य देते हुए प्रतिष्ठित कवि  प्रो.श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि रचनावली पत्रिका का यह प्रयास कोई एकमात्र या अंतिम प्रयास नहीं है। बयालीस रचनाकारों ने इस पत्रिका में विभिन्न दृष्टिकोणों से लिखा है जिनमें ढेर सारे ऐसे समीक्षक हैं जिन्होंने पहली बार लिखा है लेकिन व्यवस्थित लिखा है। मेरा यह मानना है कि किसी भी लेखक या रचनाकार को अपने ही परिसर का विस्तार ही नहीं करना चाहिए बल्कि अपने परिसर पर भी रचनात्मक दबाव बनाना चाहिए।स्वीकारात्मक भावना व सकारात्मक सोच को उन्होंने महत्व दिया।
विशिष्ट अतिथि प्रो.विजयनाथ मिश्र ने कहा कि काशी की समृद्ध साहित्यिक परम्परा में श्रीप्रकाश शुक्ल महत्वपूर्ण हैं तथा काशी का समृद्ध समाज उन्हें पढ़ेगा और लिखेगा भी। काशी हिंदू विश्वविद्यालय और हिंदी विभाग के लिए महत्वपूर्ण है कि यह वर्तमान ही आगे इतिहास बनेगा।
विशिष्ट वक्ता प्रो.कमलेश वर्मा ने कहा श्रीप्रकाश शुक्ल की व्यवहारिक गतिविधियों की एक व्यवस्थित और साहित्यिक रूप में लिपिबद्ध किया गया है। उनकी रचनात्मकता और उनकी गतिशीलता संक्रामक हैं जो अपने परिवेश में उपस्थित साहित्यिक दुनिया से इतर लोगों को भी बहुत गहरे से प्रभावित करते हैं तथा वह सारे प्रमाण इस पत्रिका में संकलित किये गए हैं।
डॉ. विवेक सिंह ने कहा कि पत्रिका में संकलित श्रीप्रकाश शुक्ल का लेख उनके साहित्यिक व्यक्तित्व के मूल्यांकन का महत्वपूर्ण सूत्र देते हैं। मेरा भी मानना है कि श्रीप्रकाश शुक्ल के साहित्यिक व्यक्तित्व में आत्मकथात्मकता और एक अलग तरह की ताजगी है। श्रीप्रकाश शुक्ल अपनी कविताओं में रेंज बहुत ज्यादा है जो उन्हें अज्ञेय और नागार्जुन जैसे कवियों की समृद्ध परंपरा में ले जाकर खड़ा कर दिया है।
डॉ.अमरजीत राम ने कहा कि श्रीप्रकाश के समूचे साहित्य कर्म में बेशुमार विविधता है जिसपर रचनावली पत्रिका में महत्वपूर्ण कार्य किया गया है। काशी की लोकसंस्कृति और उसकी परम्पराएँ श्रीप्रकाश शुक्ल के साहित्य कर्म में निहित हैं।
डॉ. प्रीति त्रिपाठी ने कहा कि रचनावली पत्रिका में संकलित सुनीता शुक्ल का लेख अकादमिक दुनिया के प्रति समर्पित एक व्यक्ति को उसके घर में कैसे देखा जाता है इसका उद्घाटन होता है। इससे यह पता चलता है कि कैसे श्रीप्रकाश शुक्ल अपने इर्द-गिर्द एक समृद्ध साहित्यिक परिवेश को कैसे निर्मित करते हैं और लोगों से जुड़ते हैं।
सम्पादकीय वक्तव्य देते हुए रचनावली पत्रिका के सम्पादक अनिल कुमार पांडेय ने कहा कि रचनावली का श्रीप्रकाश शुक्ल विशेषांक श्रीप्रकाश शुक्ल के बृहद साहित्यकार व्यक्तित्व का परिणाम है, श्रीप्रकाश शुक्ल की रचनाधर्मिता का केंद्र में रखकर यह एक महत्वपूर्ण कार्य है। इस विशेषांक में वरिष्ठ जनों के आशीर्वाद के साथ युवाओं का अभूतपूर्व स्नेह शामिल है।
कार्यक्रम के आरंभ में श्रेया पाण्डेय और अलका कुमारी ने कुलगीत की प्रस्तुति दी।
कार्यक्रम में राधाकृष्ण गणेशन ने वैदिक मंत्रों का पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ.विंध्याचल यादव ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ.रविशंकर सोनकर ने दिया। कार्यक्रम में स्वागत वक्तव्य डॉ. महेंद्र प्रसाद कुशवाहा ने दिया। कार्यक्रम में सुनीता शुक्ल,डॉ शालिनी सिंह, मनीष खत्री,प्रो.दीनबंधु तिवारी, , प्रो.कृष्णमोहन, प्रो.प्रभाकर सिंह, प्रो.अखिलेश कुमार, प्रो.नीरज खरे, प्रो.सुचिता वर्मा, डॉ.प्रभात मिश्र, डॉ. अशोक ज्योति, डॉ. प्रियंका सोनकर, डॉ. राजकुमार मीणा तथा भारी संख्या में छात्र-छात्राओं की उपस्थिति रही।

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