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प्रयागराजः इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी एवं आधुनिक यूरोपियन भाषा विभाग द्वारा ‘पोएमिंग द वर्ल्ड: जयंत महापात्राज कंट्रीब्यूशन टू इंडियन इंग्लिश पोएट्री’  विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्टीय सेमिनार का शुभारम्भ सरस्वती वंदना तथा विश्वविद्यालय कुलगीत के साथ हुआ| अंग्रेज़ी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एस. के. शर्मा ने  कहा कि भारतीय अंग्रेजी साहित्य का बृहद अध्ययन ही हमें ‘कोलोनियल हैंगओवर’ से बहार निकाल सकता है| इसके साथ ही प्रो0 शर्मा ने बताया कि इस सेमिनार के लिए 170 शोध-पत्र आये हैं जो कि सेमिनार की सफलता का परिचायक है|
विश्वविद्यालय के कलासंकायध्क्ष प्रो0 संजय सक्सेना ने जयन्त महापात्र के साथ बिताये पुराने पलों को याद किया| इसके बाद डा0 डेनियल हैनसन द्वारा लिखित पुस्तक  ‘साईटलाईन्स: व्यूप्वाइंट आन सुशील कुमार शर्माज़ द डोर इज हाफ़ ओपन’ का वर्चुअल लोकार्पण  किया| उद्घाटन समारोह के मुख्य वक्ता, ए0एम्0यू0 के प्रो0 आसिम सिद्दीकी ने अपने वक्तव्य के दौरान भारतीय अंग्रेजी लेखन के नामकरण पर प्रकाश डाला तथा पाठकों को सलाह देते हुए कहा कि किसी भी कविता के वास्तविक अर्थ को समझने के लिए उस कविता में आये प्रत्येक प्रकरण को विधिवत समझना चाहिए |
उन्होंने ‘अफेक्टिव स्टाईलिस्टिकस’ के बारे में भी चर्चा की| उन्होंने आगे कहा कि कविता हमें आत्म-मंथन का अद्भुत अवसर प्रदान करती है| इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो0 के0 जी0 श्रीवास्तव ने भरत मुनि के नाट्य-शास्त्र से अपनी बात आरम्भ करते हुए स्टीवन्स के कोंकड़ी में लिखे महाकाव्य का जिक्र किया| उन्होंने भाषा को सेतु बताया तथा ‘पोएमिंग’ शब्द की व्याख्या की| सभी श्रोता उनकी द्वारा शेक्सपियर की अनूदित रचना ‘करूँगा ग्रीष्म ऋतु से मैं कभी उपमित भला तुमको’ सुनकर मंत्रमुग्ध हो गए| ‘उर मेरा वेदना ग्रस्त है और चेतना पीड़ित भी …’ से उन्होंने अपनी बात समाप्त की|  डा0 देबाशीष पति ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया |

चाय के उपरान्त के प्रथम सत्र के दौरान अंग्रेजी विभाग के सेवानिवृत्त प्रो0 एस0 डी0 रॉय ने सत्र का सञ्चालन करते हुए अनुवाद एवं सृजन के मार्मिक भेद को स्पष्ट किया| तेजपुर से डा0 श्रावणी विश्वास ने “जयंत महापात्र: अ पोयट आफ अवांत गरदे एस्थेटिक्स एंड एलियनेशन’’  विषय पर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया| डा0 श्रावणी विश्वास ने महापात्र को एक पारंपरिक के साथ-साथ आधुनिक कवि के रुप में  श्रद्धांजलि अर्पित की| उन्होंने भारतीय पाठ्यक्रमो में निर्धारित तीन भारतीय महाकवियो एज़िकील, रामानुजन और महापात्र को एक ही श्रेणी में खड़ा पाया| बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से प्रो0 कृष्ण मोहन पाण्डेय ने “बायनिरिज्म एट इट्स बेस्ट: द पोयट्री आफ जयंत महापात्र” विषय पर एक विस्तृत व्याखायन दिया| उन्होंने एक पाँव जमीन पर और एक पाँव आकाश में के रूपक का प्रयोग करते हुए  कहा की संसार के सभी द्विचर एक दूसरे के विलोम नहीं बल्कि पूरक हैं| उन्होंने इसके कुछ उदाहरण भी दिए  जैसे इंतजार ओर मिलन, स्थूल और सूक्ष्म तथा उत्तर-पक्ष एवं पूर्व-पक्ष के  विभिन्न पहलुओ पर अपने विचार प्रस्तुत किये|

लखनऊ विश्वविद्यालय की प्रोफेसर रानू उनियाल ने युवा काव्य प्रतिभा को पोषित और प्रोत्साहित करने वाले व्यक्ति के रूप में महापात्रा के साथ अपनी बातचीत के बारे में बात की। प्रो उनियाल ने कहा की उनकी कविता अपनी भूमि के प्रति उनकी  प्रतिक्रिया के असंख्य अन्वेषणों की अभिव्यक्ति एवं ईमानदार गहन आत्मनिरीक्षण है।

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