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वाराणसीः हिंदी अनुभाग, महिला महाविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के तत्वावधान एवं डॉ. हरीश कुमार के संयोजकत्व में ‘मध्यकालीन हिंदी साहित्य : सामाजिक स्वरुप एवं लोकरंग’ विषय पर दिनांक 17/10/2024 से लेकर 19/10/2024 तक तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन प्रेक्षागृह, महिला महाविद्यालय में आयोजित किया जा रहा है। आज दिनांक 17/10/2024 को संगोष्ठी का पहला दिन था। जिसमें उद्घाटन सत्र के साथ ही सांस्कृतिक संध्या का आयोजन भी किया गया।

महिला महाविद्यालय की सहायक आचार्या डॉ. उर्वशी गहलौत ने स्वागत वक्तव्य में कहा कि भक्ति और लोक चेतना का अद्भुत सामंजस्य मध्यकालीन साहित्य में देखने को मिलता है। मध्यकाल का भक्तिकाल लोक में गहन आस्था का काल है।
इस संगोष्ठी का विषय प्रवर्तन हिंदी के विख्यात विद्वान प्रो. अवधेश प्रधान ने किया। यूरोपीय नवजागरण से बहुत पहले भक्तिकाल में आधुनिक मूल्य विकसित दिखाई देते हैं। मध्यकालीन भक्तिकाल से मानववाद की उदात्त वाणी निकलकर आती है और यह यूरोप का मानववाद नहीं है, भक्तिकाल का मानववाद डिवाइन ह्यूमन की तरफ़ संकेत करता है।
उद्घाटन की अध्यक्षता कर रहीं महिला महाविद्यालय की प्राचार्या प्रो. रीता सिंह ने कहा कि हिंदी दिल की भाषा है और इसी दिल के रास्ते से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने स्वरूप को निरंतर विकसित कर रही है। उन्होंने कहा मध्यकाल स्त्री सशक्तिकरण का काल है।
बुल्गारिया देश से पधारी मुख्य अतिथि प्रो. गैलिना योवत्वचेवा रूसेसेवा-सोकोलोवा ने कहा कि हिंदी साहित्य दुनिया के साहित्य का एक भाग है। उन्होंने बताया कि हिंदी साहित्य का अध्ययन-अध्यापन जितना हिंदी भाषा में महत्त्वपूर्ण और उपयोगी है उतना ही विश्व की दूसरी भाषाओं में भी।
इस कार्यक्रम में शिरकत कर रहें कनाडा देश से बतौर सारस्वत अतिथि डॉ. स्नेह ठाकुर ने अपने उपन्यास ‘लोकनायक राम’ के माध्यम से भक्तिकालीन मूल्यों को स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि श्रीराम का संपूर्ण जीवनकाल एक वटवृक्ष की भांति था; जो स्वयं तो धूप सहते रहें लेकिन मनुष्यों को सदैव छाँव प्रदान किया।
इंग्लैंड देश से आईं सारस्वत अतिथि डॉ. जय वर्मा ने हिंदी साहित्य के इतिहास में मध्यकालीन साहित्य के धारात्मक स्वरूपों को स्पष्ट करते हुए सगुण एवं निर्गुण धारा के परिप्रेक्ष्य में अपनी बात रखी। इन्होंने बताया कि संत कवियों ने समाज में क्रांतिकारी जागरूकता लाने का काम किया।
बतौर विशिष्ट अतिथि हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो वशिष्ठ ‘अनूप’ द्विवेदी ने बताया कि आज के इतिहासकारों अयोध्या सिंह, इरफान हबीब का कहना है कि यदि वास्तविक और जीवंत इतिहास लिखना हो तो तत्कालीन लिखित कविताओं, से होकर साहित्य से होकर गुजरना पड़ेगा। इन्होंने कवितावली से एक पंक्ति उद्धृत कर इसे स्पष्ट किया।
‘काल कराल नृपाल कृपाल न, राज समाज बड़ोई छली है।’
इस सत्र का संयोजन डॉ. मनीष कुमार और संचालन डॉ. विवेकानंद उपाध्याय कर रहे थे। इस संगोष्ठी के संयोजक डॉ. हरीश कुमार ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
शाम 5 बजे सांस्कृतिक संध्या सत्र का आयोजन किया गया।
प्रो. ऋचा कुमार ,प्रो. ललित कुमार और साथी साबिर सैफ़ चिश्ती ब्रदर्स ने प्रस्तुति की।
सांस्कृतिक संध्या सत्र का संयोजन डॉ. विंध्याचल यादव ने किया।
कार्यक्रम में प्रो. वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी, प्रो. सुमन जैन, प्रो. अखिलेश कुमार दुबे, प्रो.आनंदवर्धन शर्मा, प्रो. सत्यपाल शर्मा ,डॉ. प्रभात कुमार मिश्र, डॉ. धीरेंद्र चौबे, डॉ. किंगसन पटेल, श्रीलंका से आई विद्यार्थी सुगंधी, पोलैंड, इंग्लैंड और बुल्गारिया से आए विद्यार्थी, रोशनी(धीरा) भी मौजूद थे।

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