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नई किताब प्रकाशन समूह के तत्वावधान में हिंदी उत्सव पुस्तक लोकार्पण एवं परिचर्चा क्रम के तहत प्रसिद्ध ग़ज़लकार प्रो. वशिष्ठ अनूप के भोजपुरी ग़ज़ल संग्रह ‘सुन्दर बिहान होई’ पुस्तक पर परिचर्चा का आयोजन दिनांक 25/11/2024 को आचार्य रामचंद्र शुक्ल सभागार, हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रकाशक आदित्य माहेश्वरी एवं वरुण भारती जी के संयोजकत्व में सम्पन्न हुआ। हिंदी ग़ज़ल की दुनियां में अपना परचम लहराने वाले जनवादी ग़ज़लकार एवं सुधी आलोचक अनूप जी भोजपुरी ग़ज़ल के आँगन में भी पदार्पण कर चुके हैं। इस ग़ज़ल संग्रह का शीर्षक ‘सुंदर बिहान होई’ ग़ज़लकार के उस आशान्वित दृष्टि का प्रतीक है जिसके माध्यम से अपने मातृभाषात्मक क्षेत्र में वो नित नवीन ऊँचाई की ओर अग्रसर होते रहेंगे और भोजपुरी ग़ज़ल के शिखर पर विराजमान होंगे। जब मैं इसमें संकलित ग़ज़लों को पढ़ रही थी तब भाषा से जो अपनत्व का एहसास हैं , भीतर से आवाज़ आई, इसकी भाषा है ‘सौम्य भोजपुरिया’। विश्वविद्यालय के परंपरानुसार कुलगीत ‘मधुर मनोहर अतीव सुंदर यह सर्वविद्या की राजधानी’ का गायन शोध छात्राएं दिव्या शुक्ला, रुक्मणि राय और स्मिता पांडेय ने किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहें विद्याश्री न्यास के सचिव डॉ. दयानिधि मिश्र जो ललित निबंध के सम्राट पण्डित विद्यानिवास मिश्र जी के भ्राता हैं; कहा कि ‘सुंदर बिहान होई’ का मूल तत्व गेयता है। इन ग़ज़लों में जन-जन की संवेदना मौजूद है। इसमें ग़ज़ल के आंतरिक तत्वों का रेशा-रेशा मौजूद है। वशिष्ठ अनूप स्वयं में ग़ज़ल के एक स्कूल हैं, संस्था हैं। रूप, रंग, बोली-बानी से यह साफ़ ज़ाहिर है उनका लेखन तो है ही।
विशिष्ट वक्ता श्री हीरालाल मिश्र ‘मधुकर’ ने बताया कि भोजपुरी साहित्य का इतिहास 7 वीं सदी से शुरू होता है और हिंदी साहित्य की शुरुआत 9 वीं सदी से प्रारंभ होता है। हम देख सकते हैं कि भोजपुरी लोककंठ में पहले से ही विद्यमान है। भोजपुरी ग़ज़ल सबसे पहले तेग अली तेग की ‘बदनाम दर्पण’ में भोजपुरी की मात्र 35 ग़ज़लें शामिल थी, पहली बार इतनी तादाद में भोजपुरी ग़ज़ल इस संग्रह में समाहित है। वशिष्ठ अनूप राष्ट्रीय स्तर के गज़लकार हैं। इनके ग़ज़लों में मनुष्य के संरक्षण की प्रतिबद्धता है। भोजपुरी में यह ग़ज़ल संग्रह छांदस विधान पर खरा उतरा है जैसे भिखारी ठाकुर की बिदेसिया। इसमें ‘बिहान’ शब्द का सात बार प्रयोग है, ऐसे कवि की हम आशावादी ही कह सकते हैं। इसमें मानवीय मूल्यों को बनाए रखने की उत्कंठा है। इसका विषय पक्ष एवं अभिव्यक्ति पक्ष दोनों ही सुदृढ़ और सुगठित है।‘सुंदर बिहान होई’ भोजपुरी ग़ज़ल की दुनियाँ में कालजयी कृति साबित होगी। वशिष्ठ अनूप दुष्यंत कुमार की परम्परा के ग़ज़लकार हैं।
इनके व्यक्तित्व पर इन्होंने कहा;
“झुलसती बूँद को पानी मिला है, हमें बादल सरीखा महादानी मिला है।”
कवि वक्तव्य के तहत हिंदी विभागाध्यक्ष ‘सुंदर बिहान होई’ भोजपुरी ग़ज़ल संग्रह के प्रणेता प्रो. वशिष्ठ अनूप द्विवेदी ने मंचस्थ समस्त विद्वानों का स्वागत करते बताया कि जब से मैं हिंदी में लिख रहा हूं तभी से भोजपुरी में भी लिखता रहा हूं। ‘इसलिए’ नाम से छपे गीत संग्रह में भोजपुरी के ग़ज़ल शामिल थे। इस ग़ज़ल संग्रह में कुल 119 ग़ज़ल शामिल है। ग़ज़ल का मिज़ाज हिंदी से भोजपुरी में भी बदला है। इस ग़ज़ल संग्रह में प्रेम तत्व की रागात्मक चेतना मौजूद है। इन्होंने कई ग़ज़लों का पाठ किया;
न राजा क किस्सा, न रानी क किस्सा
लिखल जात बा हक़बयानी क किस्सा
बहुत हो गइल फूल, भंवरा आ तितली
लिखऽ तमतमाइल जवानी क किस्सा।
बतौर विशिष्ट वक्ता प्रो. बलिराज पाण्डेय ने बताया कि अपने किताब में अनूप जी ने स्वीकार किया है कि आज भोजपुरी के विस्तार की ज़रूरत है; माने भोजपुरी भाषा को हिन्दी, उर्दू,संस्कृत, अंग्रेजी भाषा के शब्दों को अपनाने में गुरेज नहीं करना चाहिए। अनूप जी ने छंद के क्रम को बिठाने हेतु किसान की जगह कृषक शब्द का प्रयोग किया है। गाँव की स्थिति पर ख़ासकर वर्तमान स्थिति पर ग़ज़लकार की गहरी नज़र है।
‘गाँव क हाल-चाल मत पूछऽ, सबकऽ बिगड़ल बा ताल मत पूछऽ’ शैतानी संस्कृति के खिलाफ़ आवाज़ उठानी होगी।
‘तम से हरदम भिड़े के पड़ेला, बनि के दीपक जरे के पड़ेला।
हक न मँगले से कब्बो मिलेला, एकरे खातिर लड़े के पड़ेला।’
कविता सच्चाई की पक्षधर होती है ऐसा हार्वर्ड फास्ट ने कहा था और केदारनाथ सिंह जी ने कहा था कि कविता में जो अनुपस्थित हो उसकी शिनाख्त करे।
डॉ. रामसुधार सिंह ने कहा कि वशिष्ठ जी गीत और नवगीत के मानक हैं। ‘गरम रोटी के ऊपर नमक तेल था’ जैसा शीर्षक वो शख़्स ही दे सकता है जो गाँव की मिट्टी के अनुभव में रमा हो। भवानी भाई ने कहा था कि
“ हम जिस तरह बोलते हैं उस तरह तू लिख,
उसके बाद सबसे बड़ा तू दिख।” उन्होंने इस संग्रह से उपमा का एक उदाहरण प्रस्तुत किया; ‘बंटत-बंटत ई खेत हो गईल बा अँगना जस’ वशिष्ठ अनूप सहज सौंदर्य एवं रूप के कवि हैं। भोजपुरी त जनम भोजपुर (बिहार) में भईल लेकिन अंगड़ाई त बलिया में ही लेलस।
भोजपुरी की कहानीकार एवं कवयित्री डॉ. सुमन सिंह ने बताया कि भोजपुरी भाषा गंगा जैसी पवित्र और निर्मल भाषा है। यह भाषा किसी भी विधा में ढले वो अपनी सहजता के साथ ही आती है। ‘सुंदर बिहान होई’ शीर्षक हृदय के जुड़ावे वाला शीर्षक बा। भोजपुरी ग़ज़ल के दुनियां में इस ग़ज़ल संग्रह मील क पत्थर साबित होई।
डॉ. उदय पाल ने ग़ज़ल भोजपुरी ग़ज़ल के इतिहास पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए बताया कि भारतेंदु मंडल में तेग अली तेग का ‘बदनाम दर्पण’ नाम से भोजपुरी ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हुआ था। इस ग़ज़ल संग्रह की भाषा तत्समयुक्त लोक अनुस्यूत भोजपुरिया है।
‘काल के गाल प कुछ हँसी, कुछ रुदन,बूँद आँसू के जइसन तरल बा ग़ज़ल।’ यह संग्रह इस विसंगति भरे दुनिया में उम्मीद की दीपक की भांति है। ‘सुंदर बिहान होई’ में प्रकृति की नेचुरैलिटी है। ‘गाँव और ग़रीब’ की प्रतीकात्मक प्रस्तुति की गई है। यह दृश्य ‘बताईं के तरह केतना परेसानी में बा निठुरी।’
संगोष्ठी का संचालन हिंदी विभाग के सहायक आचार्य डॉ. अशोक कुमार ज्योति एवं धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग के आचार्य डॉ. सत्यप्रकाश पाल ने किया। संचालनकर्ता डॉ. अशोक कुमार ज्योति कहते हैं कि भोजपुरी को संविधान के अष्टम अनुसूची में शामिल किया जाना चाहिए। ‘सुंदर बिहान होई’ ग़ज़ल संग्रह भोजपुरी भाषा में रची-बसी उदात्तता को ज़ाहिर करता है।
‘फूल जईसन बदन से लपटिया उठे आगि ई कहियो आखिर बुताई कि ना, रोज हुंकार एकर बढ़ल जात बा, ई दहेजवा क दानव मराई कि ना।
देव-दानव सबै एक जईसन लगे, राम-रावण क पहचान मुश्किल भइल, रोज घर-घर में सीता क होता दहन कहियो सचहू में रावण फुंकाई कि ना।’ ग़ज़ल को गीत रूप में ढालकर दिव्या शुक्ला ने सुमधुर प्रस्तुति की।
हिंदी के विद्यार्थी विक्की मद्धेशिया ने
‘नीक लागे चिरइया जब बोले, भोर में पुरवइया जब बोले।
माँ के अँचरा से नेहिया क झरना झरे, देखि बछड़ा के गइया जब बोले।’ ग़ज़ल गीत की प्रस्तुति की।
शोध छात्राएं दिव्या शुक्ला, शिखा यादव, रुक्मिणी राय और स्मिता पांडेय ने
‘तु हरे अँखियाँ से गहरा समुंदर न बा, रूप से चंद्रमा तुहरे सुंदर न बा।’ की लयबद्ध झनकार युक्त प्रस्तुति की। प्रस्तुत किए गए समस्त ग़ज़ल ‘सुंदर बिहान होई’ भोजपुरी ग़ज़ल संग्रह में संकलित है।
आयोजन में प्रो. अवधेश प्रधान, प्रो. श्री प्रकाश शुक्ल, प्रो. नीरज खरे, प्रो.नसीम, डॉ. महेंद्र प्रसाद कुशवाहा, डॉ. प्रभात कुमार मिश्र, डॉ. सत्यप्रकाश सिंह, डॉ. प्रीति जायसवाल, डॉ. राजकुमार मीणा (काशी विद्यापीठ), डॉ. क़ासिम अंसारी (उर्दू विभाग), डॉ. उर्वशी गहलौत, डॉ. हरीश कुमार सहित विभाग के तमाम शिक्षकगण मौजूद थे।
संगोष्ठी के अंत में 19 से 20 नवंबर 2024 को डॉ. सत्यप्रकाश पाल के संयोजकत्व में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘हिंदी राष्ट्रवादी कवियों की साहित्यक-सामाजिक विरासत : सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विशेष संदर्भ में’ के तहत NET/JRF उत्तीर्ण विद्यार्थियों सहित संगोष्ठी कार्यकताओं को सम्मानित किया गया। चूंकि विगत 20 नवम्बर को हमारे कुलाधिपति जी पंचतत्व में विलीन हो गए इसीलिए इस सत्र का आयोजन आज किया गया।
प्रतिवेदन कु रोशनी (धीरा), हिंदी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय।