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वर्ष 2001 में #सावरकर दर्शन प्रतिष्ठान के प्रमुख सुधीर फड़के ने फिल्म बनवाई थी ‘वीर सावरकर’। वैद ऋषि इसके निर्देशक थे और सितारों में हेमंत बिरजे, शैलेन्द्र गौड़, पंकज बैरी, टॉम अल्टर और रोहिताश गौड़ थे। 16 नवम्बर 2001 को इस फिल्म का दिल्ली – मुम्बई – नागपुर सहित 9 शहरों में प्रीमियर हुआ।
मगर यह टोटका ऐसा रहा कि सॉफ्ट हिंदुत्व पर बनी केंद्र की अटल बिहारी सरकार, जो सफलतापूर्वक 5 साल पूरे कर चुकी थी, फिल्म के प्रीमियर के कुछ महीने बाद ही चुनाव हारकर सत्ता से बेदखल हो गई। फिल्म सिर्फ एक डीवीडी वर्जन बनकर रह गई।
अब कल ही ‘स्वतंत्र्य वीर सावरकर’ फिल्म रिलीज हुई है और पहले ही दिन फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सिर्फ एक करोड़ की ‘बम्पर ओपनिंग’ की है।
…जब आपका उद्देश्य फिल्म बनना नहीं, बल्कि सत्ता का एजैंडा और झूठ परोसना हो तो नतीजा ऐसा ही होता है। इस फिल्म को ‘ग्रेट ग्रांड मस्ती’ जैसी द्विअर्थी फिल्म परोसने वाले आनंद पंडित मोशन पिक्चर्स ने ही बनाया है।
फिल्म का निर्देशन पहले महेश मांजरेकर करने वाले थे, लेकिन शायद इतिहास के नाम पर झूठ परोसना उस कलाकार को गवारा न हुआ और उन्होंने फिल्म छोड़ दी। तब रणदीप हुड्डा को ही इस फिल्म का डायरेक्टर बना दिया गया। इतना ही नहीं फिल्म के लेखक भी रणदीप हुड्डा ही हो गये और सारा सह लेखन उत्कर्ष नैथानी ने किया। सितारों में भी रणदीप हुड्डा, अंकिता लोखंडे और अमित सियाल हैं।
फिल्म एक टोटके की तरह एजैंडा पेश करती। इसका उद्देश्य स्वयं को खुद ही वीर लिखने वाले सावरकर को परमवीर साबित कर कथित हिंदुत्ववादी जनता को आत्मगौरव से अभिभूत कर देना है। मगर निर्माता निर्देशक भूल गए कि वह अपना एजेंडा उस जनता के सामने परोस रहे हैं, जिसने सावरकर के साक्षात अनुरोध को लात मारकर अंग्रेजों का विरोध किया था।
8 अगस्त 1942 को जब गांधी जी ने ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ आंदोलन शुरू किया तो सावरकर हिंदू महासभा के अध्यक्ष थे। गांधी जी के आह्वान पर जब बड़ी संख्या में भारतीय अंग्रेजों की नौकरी छोड़ने लगे तो घबराए सावरकर ने हिंदू महासभा के सदस्यों को अनुरोध लिखा कि स्टिक योअर पोस्ट। अंग्रेजों की गुलामी के अपने पदों से चिपके रहो और कोई भी त्यागपत्र न दे। इतना ही नहीं उन्होंने आजाद हिंद फौज के गठन का विरोध करते हुए हिंदू महासभा को संबोधन में बड़ी संख्या में अंग्रेजों से जुड़ने का अनुरोध भी किया। जनता ने तो सावरकर की बात नहीं मानी उल्टा सावरकर को ही हिंदू महासभा के अध्यक्ष पद से हाथ धोना पड़ा और 1943 में अमृतसर अधिवेशन में श्याम प्रसाद मुखर्जी को हिंदू महासभा का अध्यक्ष बना दिया गया।
यह वह समय था जब ब्रिटेन का जिंगो विस्टन चर्चिल जर्मनी के तानाशाह हिटलर से विश्वयुद्ध में उलझा था। दोनों ही राष्ट्रवाद के नाम पर अन्य नस्लों से नफ़रत करने वाले थे। चर्चिल पूरे यूरोप में गांधी और उनके विचार से नफ़रत के लिए मशहूर था। इसकी वजह यह थी कि पूरे यूरोप में शांति वादियों की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ रही थी। ये सभी गांधी के अहिंसा और सत्य के विचार से प्रभावित थे और इनका नेतृत्व क्लिमेंट एटली कर रहे थे। एटली तब तक चर्चिल की कुर्सी के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुके थे। ऐसे में चर्चिल भारत में गुप्तचर एजेंसी के जरिए अंग्रेजों के वफादारों को संगठित करने के लिए काफी धन भेज रहा था। उसके निशाने पर सबसे बड़ा दुश्मन गांधी था, जिसे वह न सीधे खत्म कर सकता था और न ही उसे (चर्चिल को) बर्बाद करने के लिए लंबे समय तक जिंदा छोड़ सकता था।
1945 में चर्चिल ब्रिटेन में चुनाव हार गया और चुनाव प्रचार में भारत को आजादी देने का वायदा करने वाले एटली प्रधानमंत्री बन गये । मगर भारत में कुछ गुलाम अब भी चर्चिल के मंसूबे को सफल बनाने में जुटे थे। उन्हें यकीन था कि उनका चर्चिल लौटेगा और भारत को फिर गुलाम बनाएगा।
आखिरकार भारत में गांधी जी की हत्या कर दी गई और यूरोप में भी शांति वादियों का आंदोलन शिथिल पड़ गया। जिंगो चर्चिल ने भारत के बंटवारे में हुई हत्याओं का कलंक भी ब्रिटेन के शांतिवादियों पर थोपा और शान से सत्ता में वापसी की।
सुधीर राघव

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