“चिली में गुप्तवास “
गैब्रियल गार्सिया मार्खेज द्वारा
फिल्म निर्देशक मिगेल लितिन के कारनामों की दास्तान
गैब्रियल मार्खेज को उनकी जादुई यथार्थ लेखन शैली के लिए कौन नहीं जानता ? गार्गी प्रकाशन द्वारा दिसंबर ,2024 में मार्खेज द्वारा लिखित और उषा नौटियाल द्वारा अनूदित , एक बेहद सनसनीखेज और उत्सुकता जगाने वाली किताब ‘ चिली में गुप्तवास ‘ को प्रकाशित किया गया है . यह किताब चिली के मशहूर फिल्म निर्देशक मिगेल लितिन द्वारा अपने ही देश से उनकी निर्वासन अवधि के दौरान 1985 में एक धनाड्य व्यवसायी का वेश बना कर गुप्त रूप से चिली में प्रवेश करने और वहां चिली के नागरिकों द्वारा उनकी स्वतन्त्रता पर वहां के सैन्य शासन द्वारा किये जा रहे दमन के विरुद्ध चलाये जा रहे प्रतिरोध अभियान को , चिली के तत्कालीन यथार्थ को कैमरों में बंद करके फिल्म –निर्माण करने की साहसिक दास्तान है . मार्खेज ने मिगेल लितिन से किये गए साक्षात्कार में ,उनके द्वारा चिली में फिल्म निर्माण के दौरान हर कदम पर गिरफ्तार कर लिए जाने के रोमांचक अनुभवों को अपनी पैनी नज़र से नोट किया और उन्हें एक रिपोर्ताज की शक्ल दी है .
अपनी फिल्म निर्माण –योजना में मिगेल लितिन अकेले नहीं थे .उनके साथ एक पूरी फिल्म निर्माण टीम थी और इस विशाल प्रोजेक्ट को रूपायित करने के लिए इटली , डच और फ्रांस से बुलाये गए सहयोगी फिल्म निर्माता क्रू भी थे , जो गुप्त रूप से फिल्म –निर्माण में शामिल थे . ये क्रू कभी आपस में मिल जाते किन्तु अधिकतर अलग अलग रहते हुए अपने प्रोजेक्ट को पूरा करते रहे . छद्म पासपोर्टों और नामों के आधार पर हवाई जहाज , पानी के जहाज , ट्रेनों , बसों और कारों में यात्रा करते हुए , काम करने और फिल्म की शूटिंग करते समय , होटलों और अन्य स्थानों पर रुकते समय मिगेल सहित इन सभी क्रू- सदस्यों के सर पर सेना –पुलिस और गुप्तचर विभाग द्वारा गिरफ्तार कर लिए जाने का खतरा चौबीसों घंटे मंडराता रहता था .यह काम कितना जोखिम भरा था , इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब क्रू के सदस्य अपने आवास की ओर लौट रहे होते थे , उस समय सड़कों पर सेना के गश्ती दल कवायद कर रहे होते थे .शहरों में रोजाना कर्फ्यू लगाया जाना और सरकार के विरुद्ध प्रतिरोध आन्दोलन चलाये जाने वाले कार्यकर्ताओं पर मशीनगनों से गोलियां चलाया जाना रूटीन बना हुआ था . नोट करने योग्य यह बात भी है कि पिनोशे की सैन्य सरकार के विरुद्ध जनतंत्र स्थापित करने के खुले और गुप्त कार्यवाहियों में शामिल कार्यकर्ता इस फिल्म –प्रोजेक्ट के निर्माण और फिल्म निर्माण में शामिल बाहर से आये क्रू के सभी सदस्यों की गिरफ्तारी से सुरक्षा और उन्हें हर संभव सहयोग के लिए मुस्तैद रहते थे .चिली के उन जनतंत्र प्रेमियों और वामपंथी कार्यकर्ताओं में सभी वर्गों के नागरिक थे , यहाँ तक कि धनाड्य वर्ग की वे महिलाएं भी जो अपनी कीमती विदेशी कारों में मिगेल और उनके साथियों को बैठा कर उन महंगे होटलों में भी ले जाती थीं , जहां उन पर संदेह की गुंजाइश कम होती थी . मिगेल कि मुलाक़ात कुछ वरिष्ठ मिलिट्री के उच्च अधिकारीयों से भी कराई गयी , जिन्हें पिनोशे के शासन ने राष्ट्रपति अलेंदे के वफादार होने के संदेह में सेवा-मुक्त कर दिया था .
मैं समझता हूँ कि इस पुस्तक में गैब्रियल मार्खेज द्वारा दर्ज किये गए फिल्म निर्माता मिगेल लेतिन के संस्मरणों की दास्तान को पढ़ते हुए हमें लैटिन अमेरिका के देश चिली के नागरिकों के उस संघर्ष की जानकारी भी होनी चाहिए जिसे उन्होंने अमरीकी साम्राज्यवाद के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष राजनीतिक दखल और अमरीकी कंपनियों द्वारा की गयी संसाधनों की लूट और अमरीका परस्त राजनीतिज्ञों और सैन्य शासन के भ्रष्टाचार के विरुद्ध चलाया और जो आज भी जारी है . यद्यपि इस पुस्तक की भूमिका , परिचय और मिगेल के संस्मरणों में इस संघर्ष के बहुत से सन्दर्भ हैं , किन्तु मुझे लगता है कि उन लोगों के अलावा जो चिली के गत आधी सदी में घटित इतिहास और वर्तमान संघर्ष से परिचित हैं , उनके अलावा भी इस किताब के बहुत से ऐसे पाठक हो सकते हैं , जिन्हें यह सब जान कर पुस्तक में वर्णित ब्यौरों में दिलचस्पी अधिक बढ़ सकती है .
यदि संक्षेप में कहा जाये तो वह यह है कि लैटिन अमरीकी देश क्यूबा में फिदेल कास्त्रो औरचे ग्वारा के नेतृत्व में सन 1959 में गुरिल्ला युद्ध द्वारा वहां के क्रूर सैनिक शासन का तख्ता पलट देने औरक्यूबा में समाजवादी व्यवस्था स्थापित कर देने के बाद चिली सहित अन्य लेटिन अमरीकी देशों में , जिनमें से अधिकाँश पर अमरीका का आर्थिक , राजनीतिक और सैनिक प्रभुत्व कायम था , उनमें अमरीकी लूट , दमन और हस्तक्षेप के विरुद्ध राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गईं . चिली में अमरीकी प्रभुत्व के विरुद्ध वामपंथी –समाजवाद समर्थक ताकतों की सक्रियता ने लामबंद होकर जनता के दिलों में जो स्थाई जगह बनाई और संसदीय चुनावों में अपनी जीत दर्ज की , उससे बौखला कर अमेरिका के शीर्ष राजनेता , कोर्पोरेट कंपनियों के मालिक, नौकरशाह और अमरीकी गुप्तचर –तंत्र के अधिकारी एक बार हिल गए . चिली के नागरिकों की इस दास्तान को उन्हें तो समझना ही चाहिए ,जो अमरीकी साम्राज्यवाद द्वारा समूची दुनिया के प्राकृतिक साधनों को बर्बर युद्ध छेड़ कर लुटे जाने से क्षुब्ध हैं , उन्हें भी जानना चाहिए , जिनकी निगाहों में अमरीका की छवि आज भी दुनिया के एक बड़े जनतंत्र और उद्धारक देश के रूप में बनी हुई है .
यह सन 1960 था , जब चिली के छात्र आन्दोलन में साल्वाडोर अलेंदे एक ऐसे नेता के रूप में उभर कर आये , जिन्होंने अमरीकी कंपनियों द्वारा संचालित तांबा –उद्योग के राष्ट्रीयकरण की आवाज़ उठाई . इन कंपनियों द्वारा चिली के संसाधनों की अबाध लूट द्वारा भारी मुनाफ़ा कमाया जा रहा था . राष्ट्रीय करण की इस मांग का सीधा सम्बन्ध चिली के मजदूरों और आम नागरिकों की आय के स्रोतों का बढ़ना था .शीघ्र ही इस मांग ने एक जन –आन्दोलन का रूप ग्रहण कर लिया . आन्दोलन के इस फैलाव को देख कर 1961 में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपपति जॉन ऍफ़ कनेडी ने कहा – ‘समाजवाद के प्रसार को रोको ‘ और वहां की दक्षिण पंथी क्रिस्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी कि सहायता राशि बढ़ा दी.1964 में इस राशि को 20 मिलियन डॉलर कर दिया गया . इसके बाबजूद एलेंदे के नेतृत्व में गठित पोपुलर यूनिटी वामपंथी गठबंधन कि लोकप्रियता बढ़ती गयी .1970 के राष्ट्रीय चुनाव में अलेंदे की पार्टी जीत गयी और अलेंदे को चिली का राष्ट्रपति चुन लिया गया . अलेंदे ने सरकार गठित होने के तुरंत बाद अमरीकी कंपनियों के साथ साथ कपड़ा उद्योग , औटोमोबाइल तथा डाक तार ,का राष्ट्रीयकरण कर दिया .भूमिसुधारों की घोषणा कर के 10 मिलियन एकड़ जमीन भूमिहीनों को वितरित कर दी .किसानों के निःशुल्क इलाज की योजना तथा बच्चों को आधा लीटर दूध बांटना शुरू कर दिया . चिली के मेहनतकशों की आय में दो साल के अन्दर 40% वृद्धि नोट की गयी . तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति निक्सन ,उनके सलाहकार किसिंजर और से.आई.ए. के निदेशक रिचर्ड हेल्म्स की आपात बैठक में अलेंदे कि वामपंथी सरकार को गिराने की योजना तैयार कि गयी . अन्य देशों से चिली के व्यापार पर रोक लगा दी गयी .सेना के कमांडर इन चीफ रेन श्राइडर की ह्त्या करवा कर अलेंदे –सरकार पर ह्त्या के आरोप को प्रचारित किया गया . इसके बाबजूद नागरिकों का बड़ा हिस्सा अलेंदे के साथ खड़ा रहा .अमरीका द्वारा लाखों डॉलर की मदद से देश के उद्योगपतियों , व्यापार संघों और विरोधी दलों ने षड्यंत्र करके अंततः 1973 में बहुमत से निर्वाचित अलेंदे की वामपंथी सरकार को गिरा कर सेना के जनरल पिनोशे को राष्ट्रपति घोषित कर दिया गया .साल्वाडोर अलेंदे कि ह्त्या कर दी गयी .पिनोशे की सरकार द्वारा 1973 से 1990 के बीच में 3000 से अधिक लोग मार डाले गए .
मार्खेज द्वारा लिखी गयी यह किताब ,हमें एक फिल्म निर्माता की उस जिज्ञासा से रू-ब-रू कराती है कि जिस देश से उन्हें निर्वासित होना पड़ा उस की हालत आज क्या है ? वहां के गली , मोहल्लों और पार्कों में वह चहल पहल है कि नहीं ,जिनमें उन्होंने अपनी ज़िन्दगी के ख़ुशी और गम भरे दिन बिताये थे ? फिल्म निर्माता मिगेल के लिए यह एक अजीब अनुभव था कि वे फिल्म का निर्माण करते हुए अपनी पुरानी स्मृतियों में लौट रहे थे –“ यहाँ मेरे अतीत की चाबियाँ थीं . पास में एक पुराना टेलीविजन स्टेशन और दृश्य –श्रव्य विभाग था ,जहां से मैंने अपना फ़िल्मी कैरियर शुरू किया था .और वह ड्रामा स्कूल जहां मैं सत्रह साल कि उम्र में अपने गृह नगर में प्रवेश देने आया था , जिसने मेरे जीवन के काम को तय किया था .यहीं पर 1970 में सल्वाडोर अलेंदे के लिए एकता प्रदर्शन आयोजित किये जाते थे , जहां मैंने अपने अहम् और मुश्किल दिन बिताये थे . मैं उस मूवी थियेटर से गुज़रा जहां मैंने पहली बार मास्टरपीस सिनेमा देखे थे . हिरोशिमा , माँ अमीर उनमें सबसे यादगार थीं .तभी कोई वहां से पाब्लो मिलानेस का गीत गाते हुए गुज़रा –“ मैं फिर से उन सड़कों पर चलूँगा , जो कभी खूनी सांतियागो थीं “ मैं अपने गुप्त हालात को भूल गया और एक पल के लिए खुद में लौट आया . मेरे अन्दर खुद को पहचानने , अपना नाम चिल्लाने , दुनिया को यह बताने का एक अतार्किक आवेग था कि घर पर रहना मेरा अधिकार है “ मिगेल उन भीषण दिनों को याद करता है जब –“ बारह साल पहले की बात है , जब एक सुबह सेना के एक हवलदार ने मशीन गन से ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं थीं , जो मेरे सर के ऊपर से गुज़ार गईं थीं . मुझे कैदियों के समूह के साथ जाने का आदेश दिया गया , जन्हें चिली फिल्म्स बिल्डिंग की ओर ले जाया जा रहा था , जहां मैं काम करता था . ……अगर हमने कुछ देर पहले सड़क पर लाशें नहीं देखी होतीं ,तो शायद कोइ भी यह सोच सकता था किसब काल्पनिक है .खून से लथपथ एक घायल आदमी फुटपाठ पर बिना किसी चिकित्सा सहायता कि उम्मीद के मर रहा था , सिविल कपड़ों में आदमियों के गिरोह राष्ट्रपति अलेंदे के समर्थकों को मौत के घाट उतार रहे थे . “ इसके विपरीत अलेंदे का असर सेना के उन जवानों के बीच भी मौजूद था , जो दिखावे के लिए तो अलेंदे समर्थकों पर बंदूकें ताने हुए थे , किन्तु चुपचाप यह भी कह रहे थे –“हम तटस्थ हैं “ उन्हीं में से एक सार्जेंट जो मिगेल लितिन को पहचानता था , सेना के लेफ्टिनेंट से कहा कि यह आदमी इसमें शामिल नहीं था , लेफ्टिनेंट ने घृणा की दृष्टि से मेरी तरफ देखा …” और मिगेल सेना कि तलाशी से और अपनी मौत से , बचता बचाता भागता रहाऔर अंततः बच्चों के साथ निर्वासन की सुरंग से बाहर निकलने में कामयाब रहा .
यह राष्ट्रपति अलेंदे के समाजवादी विचारों , अपने देश चिली और उसके बाशिंदों के प्रति मिगेल की गहरी निष्ठा थी ,कि एक बार पिनोशे की फौजी तानाशाही से बच कर निकल जाने के बाबजूद , वह पुनः अपनी जान को जोखिम में डाल कर चिली के उसी फौजी शासन की नज़रों को धोखा देते हुए चिली के तत्कालीन यथार्थ का फिल्मांकन करने की जिद में अपना वेश बदल कर घूम रहा था . अपने अनुभवों को रेखांकित करते हुए मिगेल ने कहा –“ हमने सांतियागो में पांच दिन और फिल्मांकन किया जो सिस्टम को परखने के लिए पर्याप्त था .इस दौरान मैंने उत्तर में फ़्रांसीसी क्रू और दक्षिण में डच क्रू के साथ सम्बन्ध बनाये रखा .एलेना के साथ संपर्क बहुत सही था और धीरे धीरे मैं भूमिगत लोगों के साथ –साथ कुछ उन राजनीतिक हस्तियों के साथ भी साक्षात्कार कर रहा था , जो खुले में काम कर रहे थे . “ मिगेल ने इस दौरान चिली में अमरीका से आई ऊपरी चमक दमक की तहों में झाँक कर देखा तो पाया कि वहां गहरा अन्धेरा था – “ समृद्धि का तत्काल और प्रभावशाली आभास देने के लिए ,’सैन्य जुंटा’ने अलेंदे द्वारा राष्ट्रीयकृत कि गयी हर चीज का विराष्ट्रीयकरण कर दिया और लगभग हर कीमती चीज को निजी पूंजी और बहुराष्ट्रीय निगमों को बेच दिया .इसका परिणाम यह हुआ कि आकर्षक विलासिता कि वस्तुओं और सजावटी सार्वजनिक कार्यों का विस्फोट हुआ , जिसने शानदार समृद्धि और आर्थिक स्थिरता का भ्रम पैदा किया ……पिछले दो सौ सालोंसे कहीं ज्यादा वस्तुओं का आयात किया गया .अमेरिका ने अंतर्राष्ट्रीय क्रेडिट एजेंसियों के साथ मिलीभगत करके बाकी काम किया . लेकिन जब भुगतान करने का समय आया तो भ्रम दूर हो गया .छःसाल के आर्थिक दिवास्वप्न एक ही बार में गायब होगये ,चिली का बाहरी ऋण बढ़ कर 23 बिलियन दुलार हो गया , जो अलेंदे प्रशासन के ऋण से लगभग छः गुना अधिक है .आर्थिक चमत्कार ने कुछ अमीरों को और अमीर तथा चिली के बाकी समाज को औरगरीब बना दिया . “
अपने गुप्त चिली प्रवास के दौरान मिगेल अपने गाँव भी जाते हैं , उन्हें आश्चर्य होता है कि घर की जीर्ण-शीर्ण हालत के बाबजूद ,उनकी किताबें और पसंद कि चीजें उनकी मां ने सजा कर करीने से रखी हुई थीं , इस उम्मीद के साथ कि एक दिन उनका बेटा अपने देश में अवश्य लौटेगा .वे उस शहर वालपाराइसो में भी गए जो एक बंदरगाह है ,जहां अलेंदे का जन्म हुआ , जहां उन्होंने अपनी पहली राजनीतिक पुस्तक एक विद्रोही मोची के घर में पढ़ी, जहां उनके दादा रेमन अलेंदे ने ली में पहले धर्मनिरपेक्ष स्कूल की बुनियाद रखी ; जहां उनकी सबसे शुरूआती राजनीतिक गतिविधि “बारह समाजवादी दिनों “ के दौरान हुई और यही वह शहर था जिसे पिनोशे के फौजी शासन ने अलेंदे की ह्त्या के बाद , उनकी लाश को बिना किसी को सूचित किये ,केवल उनकी पत्नी और बहिन की उपस्थिति में एक चर्च में दफना दिया गया . मिगेल ने वहां जा कर लोगों से बातचीत की तो वे आश्वस्त हुए कि भले ही अलेंदे के शरीर को दफना दिया गया हो , उनके विचार और काम अभी भी चिलीवासियों के दिमाग में ज़िंदा थे . वे अपने क्रू के साथ पाब्लो नेरूदा के पूर्वी समंदर के किनारे बसे घर इस्ला नगर यानी काला द्वीप भी पहुंचते हैंजहां महा कवि की स्मृतियाँ बसी हैं ,लेकिन जिसे पुलिस ने सील कर दिया गया है और वहां जाने कि मनाही है . तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि चिली में अलेंदे और नेरूदा दो ऐसे मृतक हैं जो मरे नहीं हैं और जनगण के मानस में जीवित हैं . चिली में पिनोशे के यातनादायक शासन को पलट देने और समाजवाद स्थापित करने की चाहत मरी नहीं है .युवा पीढ़ी , जिसने नेरूदा को देखा नहीं ,उनके बीच नेरूदा का कल्ट भी पनप रहा है .
एक कलाकार होने के नाते मिगेल कला और संस्कृति के केन्द्रों में भी जाते हैं . उन्हें दुःख होता है कि पिनोशे के शासन में क्लबों में नग्न –संस्कृति पनप रही है ,लेकिन भले ही पाबंदियां लगी हों , जन संस्कृति कर्मियों कि गुप्त और खुली गतिविधियाँ रुकी नहीं थीं. मिगेल और उनके साथ चिली में गुप्त रूप से घुसे तीनों क्रू के सदस्यों के वहां होने और कई स्थानीय प्रशासनों से उनके द्वारा फिल्म निर्माण की अनुमति ले लिए जाने के बाबजूद ,उनकी गिरफ्तारी का खतरा निरंतर बढ़ता जा रहा था . कुछ सदस्य गिरफ्तार भी कर लिए जाते थे , लेकिन प्रशासन को उनके गुप्त –प्रोजेक्ट का अहसास हो , तब तक अपनी योजना के अनुसार क्रू के सदस्य अपने भारी भरकम उपकरणों के साथ चिली के बाहर निकलते जा रहे थे . अपने दो माह के कार्यकाल में उन्होंने एक लाख पांच हज़ार फुट फिल्म बना ली थी और चिली से निकलने से पहले ही फिल्म के रोलों का बड़ा हिस्सा वहां से बाहर भेजा जा चुका था . किताब के लेखक मार्खेज के अनुसार यह फिल्म के पीछे फिल्म का एक स्कैच है जो मूल फिल्म प्रोजेक्ट से कहीं ज्यादा एक व्यक्तिगत कहानी है .
“चिली में गुप्तवास “ के बाद…….
गैब्रियल मार्खेज द्वारा फिल्म निर्देशक मिगेल लितिन से लिए गए साक्षात्कार से गुज़रते हुए ,हम पाते हैं कि यद्यपि तानाशाह पिनोशे के सैन्य शासन का आतंक और जनता पर दमन बरकरार था , लेकिन वह सिर्फ एक ऊपरी सतह की तरह था , जिसके अन्दर गहरे सूराख और अंतर्द्वंद्व पैदा हो गए थे .वरना यह आसान नहीं था कि मिगेल के फिल्म निर्माण प्रोजेक्ट के अंतर्गत तीन अन्य फिल्म निर्माता क्रू ,चिली के अन्दर अपने साजो सामान के साथ घुसें और चिली की सुरक्षा व्यवस्था को भेदते हुए दो माह तक फिल्म का निर्माण कार्य करें और वापस सुरक्षित लौट कर आ जाएँ .
इस पुस्तक की सबसे बड़ी खूबी है कि इसमें चिली के अन्दर बह रही उस अंतर्धारा को पहचान कर पाठकों के सामने रखा है , जो सैनिक शासन से मुक्ति के लिए उन आदर्शों के साथ सक्रिय थी , जिसके बीज साल्वाडोर अलेंदे और नेरुदा जैसे मुक्तिकामियों ने बोए थे .वह सन 1986 था जब इस यह साक्षात्कार चिलीवासियों और दुनिया के सामने आया . हम देखते हैं कि चिली में इसके बाद जन संघर्षों और जनतंत्र की वापसी के आन्दोलन तेज हुए ,2019-20 में सैनिक शासन के भ्रष्टाचार के विरुद्ध हुए आन्दोलन में ‘चिली बैंड’ के गायकों की भूमिका को अवश्य याद किया जाना चाहिए , जिन पर रबर की गोलियां चलाने से सैकड़ों की संख्या में वे युवा गायक आधे या पूरी तरह अंधे हो गए , इसके बाबजूद उन्होंने सड़कों और गलियों में–“ जीत के लिए आगे बढ़ो “ जैसे गीतों को गाना बंद नहीं किया .उस आन्दोलन में करीब 300 नागरिक शहीद हुए .किन्तु इसके परिणाम स्वरुप सैनिक शासन चुनाव कराने के लिए बाध्य हुआ.
2021के चुनावों में चिली में 40 साल बाद अलेंदे के समर्थकों की भारी बहुमत से चुनावी वापसी हुई . 16 मई ,2021 को घोषित किये गए केन्द्रीय असेम्बली के चुनावों में कम्युनिस्ट पार्टी के गठबंधन को 117 सीट मिली , जबकि सत्ताधारी दक्षिण पंथी दल मात्र 37 सीटों में ही सिमट गया ..चुने गए सदस्यों में महिलाओं का प्रतिशत 50 % और विजेताओं की औसत आयु 45 वर्ष थी जो युवा बहुमत की सूचक है . महाकवि पाब्लो नेरूदा की भविष्य वाणी एक बार पुनः चरितार्थ हुई – “एकजुट लोगों को कोई ताकत नहीं हरा सकती .
# महेन्द्र नेह
:चिली में गुप्तवास (1986)- लेखक गैब्रियल मार्खेज ,अनुवाद –उषा नौडियाल
गार्गी प्रकाशन द्वारा दिसंबर ;2024 में प्रकाशित संपर्क :1/4649/45 बी, गली नं 4
न्यू मॉडर्न शाहदरा , दिल्ली -110032 /E-mail- gargiprakashan15@gmail.com