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फिलिस्तीन एक जुटता दिवस

अमन के दुश्मनों के बीच गूंजे विश्व शांति के नारे

इंदौर। एक लंबे अर्से से फिलिस्तीन में नरसंहार जारी है। बच्चों, औरतों, निरीह नागरिकों पर बम बरसाए जा रहे हैं। उन्हें अमानवीय परिस्थितियों में यहां से वहां पलायन के लिए विवश किया जा रहा है। सारी दुनिया में फिलिस्तीन की पीड़ित जनता के पक्ष में एक जुटता और भाईचारे के लिए प्रदर्शन निकाले जा रहे हैं। इंदौर में भी अनेक संगठनों द्वारा 7 अक्टूबर को फिलिस्तीन पर इजरायली कब्जा समाप्त करने, युद्ध और नरसंहार बंद करने का आव्हान किया गया। इस हेतु महात्मा गांधी प्रतिमा स्थल रीगल चौराहे पर मानव श्रृंखला बनाई जानी थी। लेकिन अमन के दुश्मनों को अहिंसक आंदोलन रास नहीं आया। युद्ध विरोधी प्रदर्शन को रोकने के लिए रीगल चौराहे को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया। दिन पर पुलिस अधिकारियों द्वारा आयोजनकर्ता संगठनों के पदाधिकारियों को प्रदर्शन न करने के लिए धमकियां दी जाती रही। लेकिन जवाब यही मिला कि युद्ध के विरोध और शांति के पक्ष में आवाज तो उठाई जाएगी। पुलिस अपना काम करे हम अपना काम करेंगे।
आखिरकार शाम को मानव श्रृंखला के लिए निर्धारित समय पर पुलिस उपायुक्त ने प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन लेना स्वीकार किया। उपायुक्त कार्यालय के बाहर अनेक शांतिप्रिय नागरिक,महिलाएं, सामाजिक कार्यकर्ता एकत्र हुए वहां युद्ध विरोधी नारे तथा अमन के पक्ष में गीत गाए गए। पोस्टरों के माध्यम से फिलिस्तीन से इजरायली कब्जा समाप्त करने, विश्व में शांति, भाईचारा, बहनापा बनाए रखने की मांग को बुलंद किया गया।
पुलिस आयुक्त कार्यालय परिसर में वक्ताओं ने अपने संबोधन में कहा कि सरकार द्वारा अमन की मांग करना, पीड़ितों के प्रति एकजुटता व्यक्त करना अपराध बताया जा रहा है। जबकि भारत सरकार ने फिलीस्तीन राष्ट्र को मान्यता दी है। ऐसे में प्रदेश सरकार का शांति की मांग करने वालों के प्रति डराने- धमकाने का रवैया बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। देश के संविधान में अभिव्यक्त होने की आजादी है। लेकिन वर्तमान सरकार उस आजादी को कुचलने पर आमादा है।
मानव श्रंखला में कॉम विनीत तिवारी, जया मेहता,रामस्वरूप मंत्री, सफी शेख, रूद्रपाल यादव,प्रमोद नामदेव,कैलाश लिंबोदिया, सी एल सरावत, राहुल निहोरे , विजय दलाल, अजीत केतकर, विवेक मेहता,अरुण चौहान ने कार्यक्रम को संबोधित किया ।
उल्लेखनीय है कि श्रम संगठन एटक, सीटू, एआईयूटीवीसी, कर्मचारी कांग्रेस, समाजवादी समागम, सिटी ट्रेड यूनियन काउंसिल, प्रगतिशील लेखक संघ, इप्टा और एप्सो द्वारा फिलिस्तीन के पक्ष में मानव श्रृंखला बनाने का आह्वान किया था।


सरकार किसकी है? भाजपा की। भाजपा इज़राइल की तरफ है या फिलिस्तीन के? जाहिर है इज़राइल के। जनता के वोट से सरकार बनी है तो इसका मतलब शहर की जनता भी इज़राइल के साथ है। ऐसे में कुछ श्रमिक संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता अगर गांधी प्रतिमा पर युध्द विरोधी फिलिस्तीन एकजुटता दिवस मनाते तो शहर के लोगों की भावना को ठेस लगती। पुलिस का काम क्या लोगों की भावनाओं की रक्षा करना नहीं है? बिल्कुल है। सो पुलिस ने क्या गलत किया जो गांधी प्रतिमा पर युध्द विरोधी फिलिस्तीन एकजुटता दिवस नहीं मनाने दिया और इज़राइल के खिलाफ इन लोगों को नारे नहीं लगाने दिये। हालांकि भीड़ से अलग राय रखना और अपनी आवाज़ उठाना लोगों का लोकतांत्रिक अधिकार है, मगर यह शब्द आजकल बेमानी हो गया है।

कल श्रमिक संगठनों को गांधी प्रतिमा पर प्रदर्शन नहीं करने दिया गया। कहा गया कि मना करने के बावजूद आप प्रदर्शन करोगे तो गिरफ्तारी होगी। शहर में बिना मकसद धारा 144 लगाए रखने का मकसद यही तो है कि लोकतंत्र की चिड़िया ज्यादा फड़फड़ाए नहीं। श्रमिक संगठन के लोग कह रहे थे कि आप हमें गिरफ्तार कर लेना। मगर पुलिस गिरफ्तार भी करने के मूड में नहीं थी। खुद पुलिस ने ही बीच की राह यह सुझाई कि आप लोग पलासिया में जो पुलिस आयुक्त कार्यालय है वहीं पर आकर प्रदर्शन कर लीजिए। इन लोगों ने भी बात मान ली।

शाम 7 बजे तमाम लोग तख्तियां लेकर पहुंच गए थे। कुछ मीडिया वाले भी आए थे। मीडिया वाले यह उम्मीद लेकर आए थे कि फिलिस्तीन के पक्ष में प्रदर्शन होगा तो मुसलमान ही मुसलमान आएंगे। अच्छे विजुअल मिलेंगे, बाइट लेंगे। यह बताएंगे कि देखो शहर के मुसलमान फिलिस्तीन की तरफदारी कर रहे हैं। मगर भीड़ में एक भी दाढ़ी नहीं, एक भी टोपी नहीं। फिर जैसे किसी की दुआ कबूल हुई और एक दाढ़ी टोपी वाला भी आया। उसके साथ हिजाब पहने एक लड़की भी नमूदार हुई। मीडिया के कैमरे उनकी तरफ चले गए। वे सबसे महत्वपूर्ण हो उठे। उनके चेहरों पर लाइट डाली गई, वीडियो बनाई गई।

वैसे अच्छा हुआ कि गांधी प्रतिमा की बजाय यहां प्रदर्शन हुआ। बीस पच्चीस पुलिस वालों ने भाषण देने वालों की बात शांति से सुनी। सिर भी हिलाए। अगर गांधी प्रतिमा होती तो ये पुलिस वाले ट्राफिक ही संभालते रह जाते और कुछ भी सुन नहीं पाते। इंदौर की जनता भी भड़कती हुई निकलती कि इजराइल अच्छा भला आतंकवादियों को निबटा रहा है और ये हैं कि फिलिस्तीन का दामन पकड़ कर रो रहे हैं। यहां भाषण देने वालों ने इज़राइल को ही नहीं भाजपा और मोदी को भी खरी खरी सुनाई। वैसे यह प्रयोग बहुत अच्छा रहा। आइंदा भी लोग यहीं आकर प्रदर्शन कर सकते हैं। इस प्रयोग को आगे बढ़ाते हुए यह भी किया जा सकता है कि आइंदा प्रदर्शन जेल की चारदीवारी के अंदर कराया जाए। अगर पुलिस को लगे कि कोई खिलाफ बात कही गई है तो वक्ता को वहीं रोक कर कंबल बर्तन दे दिये जाएं, बाकी को रवाना कर दिया जाए। कैदियों का भी मनोरंजन होता रहेगा।

दीपक असीम

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