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‘कानून का राज’ समाप्त, नए आपराधिक कानून से अब पुलिस राज की शुरुआत

✒️ सिद्धांत | ‘सर्वहारा’ #56 (1 अगस्त 2024)

Sarwahara सर्वहारा अखबार (telegram.org)

मोदी सरकार देश के 3 क्रिमिनल कानूनों (IPC, CrPC, साक्ष्य कानून) को हटा कर 3 नए कानून ले आई है, जो 1 जुलाई से लागू भी हो गए हैं। इन कानूनों में पुलिस को हद से ज्यादा ताकत दे दी गई है और जनता के अधिकारों को और भी कमजोर कर दिया गया है। यही नहीं, मजदूरों और आम जनता के संगठित होने और आंदोलन करने को भी अपराध बना दिया गया है और सभी हड़तालों-आंदोलनों को कुचलने की जमीन को कानूनी संरक्षण दे दिया गया है। इसकी जानकारी होना हम मेहनतकश लोगों के लिए बेहद जरूरी है।

पुलिस प्रक्रिया में बदलाव

CrPC के बदले आई ‘नागरिक सुरक्षा संहिता’ (BNSS) में कई खतरनाक प्रावधान जोड़े गए हैं। जैसे धारा 148 और 149 के तहत अब पुलिस (SHO या SI रैंक) किसी भी जुलूस प्रदर्शन, रैली, धरना को किसी भी वक्त भंग कर सकती है और प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए गैर-पुलिस ताकतों (जैसे गुंडों, लंपटों) से लेकर सीधे हथियारबंद ताकतों का इस्तेमाल कर सकती है। इसमें हुए जुल्म के खिलाफ किसी पुलिस या अधिकारी पर कोई कार्रवाई नहीं होगी। वहीं धारा 172 के तहत पुलिस को जुर्म रोकने के नाम पर मन मुताबिक कैसा भी कानूनी फरमान जारी करने का अधिकार है और वह इन फरमानों को नहीं मानने या नजरअंदाज करने वाले किसी भी व्यक्ति को हिरासत में ले सकती है।

पहले जहां पुलिस किसी आरोपी को पहले 15 दिनों तक ही हिरासत (लॉकअप) में रख सकती थी, अब धारा 187 में वह बढ़ कर 60 से 90 दिन हो गया है। हम सब जानते हैं कि पुलिस इसी हिरासत के दौरान आरोपी (जो अकसर मजदूर या गरीब लोग होते हैं) से जबरदस्ती दोष स्वीकारने या सादे कागज पर हस्ताक्षर करने के लिए मारपीट और टार्चर करती है। इसके लिए अब उसे और अधिक समय दे दिया गया है। पिछले कानून में आरोपी को जेल में अधिकतम 60 से 90 दिन तक ही रखने और उसके बाद बेल मिलने का जो अधिकार दर्ज था वो अब भी जारी है लेकिन यह प्रावधान तो पहले से ही नाममात्र के लिए था। सच्चाई यही है कि आज देश में कुल कैदियों में से 77% विचाराधीन कैदी हैं! यानी जिनका आरोप साबित नहीं हुआ है और वो मासूम भी हो सकते हैं, लेकिन फिर भी कोर्ट से कोई फैसला नहीं आने या बेल न मिलने के कारण सालों से जेल में बंद हैं।

धारा 173(3) के तहत 3-7 साल की सजा वाले अपराधों में पुलिस को FIR नहीं दर्ज करने की छूट दे दी गई है। कोई मामला आने पर SHO, DSP से अनुमति लेकर FIR दर्ज करने के बजाए मामले में 14 दिन तक “प्रारंभिक जांच” करवा सकता है और फिर FIR दर्ज करने से मना कर सकता है। कल तक जब FIR दर्ज करना अनिवार्य था तो भी कई मामलों में, खास कर जहां शिकायतकर्ता मजदूर या गरीब होते हैं और आरोपी ताकतवर तबके से होता है, पुलिस मनमानी कर FIR दर्ज नहीं करती थी। अब तो यह मनमानी ही कानून बन गई है।

धारा 43 के तहत पुलिस को गिरफ्तारी में हथकड़ियों का इस्तेमाल करने का अधिकार दिया गया है जो पहले नहीं था और जिसे अदालतों ने ही कई बार अमानवीय और इंसानों के साथ जानवरों जैसा व्यवहार करने के समरूप बताया है। धारा 356 के तहत अब बिना आरोपी की मौजूदगी के भी उसके खिलाफ केस चला कर सजा सुनाई जा सकती है।

नए अपराध जुड़े

अपराधों और सजा का उल्लेख करने वाली IPC के बदले आई ‘न्याय संहिता’ (BNS) में पुराने अपराधों के साथ अब और भी नए और कड़े अपराध जोड़ दिए गए हैं। जैसे ‘राजद्रोह’ (सेडिशन) के बदले अब धारा 152 में ‘देशद्रोह’ का अपराध है, जिसके तहत किसी भी विध्वंसक गतिविधि या भारत की संप्रभुता, एकता, अखंडता को खतरे में डालने वाली गतिविधि करने वाले को आजीवन कारावास की सजा मिलेगी। कौन सी गतिविधियां इन मानकों में फिट होंगी यह पुलिस, जज और सरकार तय करेंगे। यानी सरकार या व्यवस्था के खिलाफ बोलने, लिखने, आंदोलन करने वालों या उनका आर्थिक सहयोग भी करने वालों को देशद्रोही बता कर अब और आसानी से जेल में डाला जा सकेगा।

ऐसे ही धारा 113 में ऊपर के मानकों के साथ देश की आर्थिक सुरक्षा को भी नुकसान पहुंचाना “आतंकवादी गतिविधि” कहा गया है, यानी मजदूर अगर हड़ताल करेंगे तो उन्हें भी देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के लिए आतंकवादी बता कर आजीवन जेल में डाल दिया जा सकेगा। यही नहीं, किसी भी व्यक्ति को चोट पहुंचाने या संपत्ति को नुकसान पहुंचाने लायक क्रिया तक को भी “आतंकवादी गतिविधि” माना जा सकता है। इसका इस्तेमाल जनआंदोलनों को कुचलने और उसके नेतृत्व को आतंकवादी घोषित कर बंद करने के लिए किया जाएगा। यही नहीं, किसी संगठन को आतंकवादी घोषित कर देने पर उसके सारे सदस्यों को आजीवन जेल में डाला जा सकेगा। इसके अलावा धारा 226 में भूख हड़ताल करने को भी अपराध बना दिया गया है।

इसके अलावा मोदी सरकार 2 साल पहले ‘आपराधिक प्रक्रिया (पहचान) कानून’ भी ला चुकी है जिसके तहत पुलिस व जांच एजेंसियां किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर, बिना दोष साबित किए, उनकी बायोमेट्रिक व निजी जानकारी (जैसे फिंगरप्रिंट, रेटिना स्कैन, लिखावट, हस्ताक्षर व अन्य सैंपल) ले सकती है! इससे हमारे निजी डाटा का इस्तेमाल पुलिस कभी भी हमारे ही खिलाफ कर सकेगी।

निष्कर्ष

मजदूरों के शोषण पर टिकी यह पूंजीवादी व्यवस्था संकट में फंसी है, यानी पूंजीपतियों का मुनाफा संकट में है। इसी के कारण एक तरफ वे हमारा वेतन और अन्य अधिकार खत्म कर रहे हैं, महंगाई बढ़ा रहे हैं और दूसरी तरफ पूरी दुनिया को प्रदूषण और युद्ध से तबाह कर रहे हैं। इससे तंग आकर जनता बेहतर जीवन की चाहत में धीरे-धीरे ही सही लेकिन सड़कों पर उतर रही है और आरपार की लड़ाई के लिए कमर कस रही है। इस भावी जन-उभार के डर से ही बौखलाए पूंजीपति वर्ग ने ये नए कानून पूंजी की रक्षा करने और हमें दबाने के लिए लाए हैं। इनका डट कर विरोध करना होगा और इन्हें रद्द कराना होगा, नहीं तो जल्द ही देश एक पुलिस तंत्र बन जाएगा। लेकिन यह भी सच है कि दमन चाहे कितना भी बढ़ जाए, मेहनतकश जनता के एकजुट संघर्ष को कोई ताकत अंततः दबा नहीं सकती है। गरीबी, बेरोजगारी, मालिकों की गालियों और पुलिस की लाठियों से आजादी का एकमात्र यही रास्ता है कि ऐसे कानून बनाने वाली जनविरोधी व्यवस्था को उखाड़ फेंक कर एक बेहतर शोषणविहीन व्यवस्था के लिए आम मेहनतकश जनता आरपार की एकजुट लड़ाई के लिए सड़कों पर उतरे।

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