चैती महोत्सव में बिखरे उपाशस्त्रीय गायन के विविध रंग
विदुषी सुचरिता गुप्ता, प्रो. संगीता पंडित का गायन और पं. विजय शंकर का वायलिन वादन रहा आकर्षण का केंद्र
वाराणसी,20 अप्रैल,शनिवार। चैत्र महीने में प्रकृति के नवीन स्वरूप की खिलखिलाहट और सूरज की तपिश के बढ़ते रुतबे के बीच उपशास्त्रीय संगीत की विधा चैती गायन ने श्रोताओं को आत्मिक शीतलता की अनुभूति कराई। प्रकृति के अनुपम उपहारों में से एक गुलाब के संग चैती का चोली दामन का साथ शनिवार के गंगा की धारा पर मचलते बजड़े पर मौजूद श्रोताओं ने महसूस किया। मौका था नगर की प्रतिष्ठित सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था काशी कला कस्तूरी की ओर से आयोजित चैती महोत्सव का।
काशी कला कस्तूरी की संस्थापिका अध्यक्ष डॉ. शबनम ने बताया कि सबसे पहले चैती उत्सव की शुरुआत रामनगर किले से हुई थी इसीलिए काशी कला कस्तूरी ने इस प्राचीन परंपरा का निर्वहन करते हुए चैती उत्सव की शुरुआत रामनगर से ही किया है।
चैती महोत्सव में गंगा की धारा पर गुलाब जल और गुलाब की पंखुड़ियों की वर्षा के बीच चैती गायन के रंग बिखरे। काशी के कलाकारों ने चैती गायन का अनूठा गुलदस्ता पेश कर समृद्ध परंपरा की अनुभूति कराई। रामनगर से चलकर बजड़ा जैसे जैसे राजघाट की ओर बढ़ता रहा वैसे वैसे गायन और वादन के माध्यम से उपशास्त्रीय गायन की समृद्ध परंपरा के दर्शन भी हुए। गुलाबजल की बूंदों और चैती गुलाब की भीनी-भीनी खुश्बू ने चैती महोत्सव में चार चांद के साथ चौरासी तारे भी जोड़ दिए। पद्मश्री डॉ. सोमा घोष के मुख्य आतिथ्य में हुए आयोजन की शुरुआत प्रो. संगीत पंडित के गायन से हुई। पारंपरिक चैती ‘चैत मासे चुनरी रंगइबे हो रामा’ के बाद उन्होंने दाररा ‘सौतन घर ना जा, ना जा मोरे सइयां’ सुना कर श्रोताओं को विभोर किया। चैती उत्सव का मुख्य आकर्षण विदुषी सुचरिता गुप्ता का गायन रहा। चैता गौरी की बानगी पेश करते हुए सुचरिता गुप्ता ने ‘सूतल सइयां के जगावे हो रामा’ के सुर लगाए तो श्रोता अपनी जगह से उठ कर गायिका पर गुलाब की पंखुड़ियां बरसाने लगे। इसके बाद उन्होंने चैती ‘रात हम देखली सपनवा हो रामा’ एवं ‘मृगनयनी तोरी अंखियां’ के बाद भैरवी चैती ‘महुआ मदन रस बरसे हो रामा’ का श्रवण करा के श्रोताओं को आनंदित किया। विदुषी सिद्धेश्वरी देवी की शिष्या सुचरिता गुप्ता ने चैती ठुमरी का गायन कर श्रोताओं को नवीनता का एहसास कराया। ‘सुगना बोले हमरी अंटरिया हो रामा’ वोल वाली यह चैती ठुमरी राग मिश्र बिलावल में निबद्ध थी। इसके बाद वायलिन वादन की बारी थी। श्रोताओं की मांग पर उन्होंने राग मिश्र काफी में निबद्ध होरी ठुमरी ‘उड़त अबीर गुलाल, लाली छाई है…’ के बाद ‘बरजोरी करो न मुझसे होली में…’ सुना कर श्रोताओं को होरी दादरा के अंदाज से परिचित कराया। इतना सब सुनने के बाद भी श्रोताओं का मन नहीं भरा। उन्होंने होरी और कजरी तक की फरमाइश कर डाली। श्रोताओं की अपेक्षाएं पूरी करते हुए सुचरिता गुप्ता ने चैती महोत्सव में शुद्ध होरी के रंग भी खूब जमाए। पहले श्याम की होरी ‘होरी में खेलूंगी श्याम से डट के’ सुनाने के बाद उन्होंने राधा की होरी ‘रंग डारूंगी नंद के लालन पे’ से श्रीराधाकृष्ण की होली के सांगीतिक चित्र श्रोताओं के मानस पटल पर उकेरे।
पं. विजय शंकर चौबे ने आरंभ में राग किरवानी की अवतारणा की। मध्यलय एवं द्रुत लय में वादन के बाद उन्होंने अति लोकप्रिय पारंपरिक चैती ‘एही ठइयां मोतिया हेरा गइलें रामा’ की धुन बजाने के दौरान विविध रागों का समावेश इसमें किया। वायलिन वादन की कर्णप्रियता श्रोताओं के मन में मधुरता के भाव घोलती रही। इन कलाकारों के बीच संगतकारों का प्रभाव भी कुछ कम नहीं था। तबला पर डा. स्मित भटनागर एवं श्रीकांत मिश्र, हारमोनियम पर डा. मनोहर कृष्ण श्रीवास्तव ने यादगार संगत की। संचालन डा. शबनम ने और डॉ. सुनीता चंद्र ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
इस अवसर पर उपस्थित विशिष्टजनों में मुख्य रूप से डॉ. सुनीता चंद्रा, डॉ. एन. के शाही, प्रो. सुनील चौधरी,
प्रो.अलका सिंह, डॉ. पूनम सिंह, डॉ. संजय सिंह,मिथिलेश चतुर्वेदी, प्रो.सुषमा गिल्ड्याल, डॉ, प्रभास झा,डॉ.इशरत जहां,डॉ. तेजबली,अमूल्य सिंहा, आदि गणमान्य लोगों की उपस्थिति रही।