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वाराणसीः “समग्र मानवतावाद की वैश्विक अनुगूंज” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन पंडित दीनदयाल उपाध्याय पीठ, सामाजिक विज्ञान संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी द्वारा रिसर्च एंड इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग कंट्रीज (RIS), नई दिल्ली के सहयोग से किया गया। यह सम्मेलन 29.11.2024 से 30.11.2024 तक वैदिक विज्ञान केंद्र, बीएचयू के कॉन्फ्रेंस हॉल में आयोजित किया गया।
सम्मेलन के दूसरे दिन, विभिन्न प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के शोधार्थियों ने समग्र मानवतावाद के वैश्विक आयामों पर अपने विचार साझा किए। समग्र मानवतावाद का विचार आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक पक्षों को समाहित करते हुए समग्र विकास पर बल देता है। सम्मेलन की शुरुआत प्रस्तुतकर्ताओं के समानांतर सत्रों से हुई, जो दो समूहों में विभाजित थे। इन सत्रों की अध्यक्षता क्रमशः प्रोफेसर राधानाथ त्रिपाठी (दिल्ली विश्वविद्यालय), डॉ. प्रदीप कुमार सिंह (बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ) और डॉ. रवि रमेशचंद्र शुक्ल (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) ने की। इस सत्र में अनेक शोधार्थियों ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के समग्र मानवतावाद के दर्शन पर आधारित अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। सभी शोधार्थियों ने ‘वसुधैव कुटुंबकम’ , ‘चिति की अवधारणा’ और ‘एकात्म मानववाद’ के मूल मंत्र को स्मरण करते हुए उसे अपने जीवन में आत्मसात करने का आग्रह किया।
समानांतर सत्रों के बाद तकनीकी सत्र आयोजन किया गया। तकनीकि सत्र की अध्यक्षता प्रोफेसर रुसीराम महानंदा (पंडित दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय) ने की, जिन्होंने समग्र मानवतावाद के दर्शन पर अपने मूल्यवान विचार प्रस्तुत किए। डॉ. प्रणव कुमार, केंद्रीय विश्वविद्यालय दक्षिण बिहार, ने भारत के वैश्विक शक्ति बनने की आकांक्षा में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के महत्व को रेखांकित किया। प्रोफेसर प्रवीन कुमार, सीयूएसबी, ने वैश्विक नेतृत्व में नैतिकता और आचार नीति के महत्व पर प्रकाश डाला। डाॅक्टर महेन्द्र कुमार सिंह, डीडीयूजीयू, ने भारत के ‘विश्वमित्र चरित्र’ पर चर्चा की और कोविड जैसी महामारी के दौरान भारत के द्वारा विश्व के जरूरतमंद देशों में ‘वैक्सीन मैत्री’ अभियान की सराहना की। डॉ. अविनाश प्रताप सिंह ने कहा कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचार केवल बौद्धिक विमर्श तक सीमित न रहकर जमीनी स्तर पर क्रियान्वित होने चाहिए। डॉ. शिखा चौहान, लखनऊ विश्वविद्यालय, ने भारत की ‘आयुष्मान भारत नीति’ को देश के स्वास्थ्य ढांचे में परिवर्तनकारी मील का पत्थर बताया। अजय प्रताप सिंह, जेएनयू, ने इतिहास के यूरोकेंद्री दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए कहा कि पश्चिम के “चयनात्मक इतिहासलेखन” ने वैश्विक दक्षिण की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत को उपेक्षित दृष्टि से देखा है।
सम्मेलन का सफल समापन वैलिडिक्टरी सत्र के साथ हुआ। समारोह का शुभारंभ दीप प्रज्वलन और महामना मदन मोहन मालवीय जी एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को पुष्पांजलि अर्पित करके किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता सामाजिक विज्ञान संकाय, बीएचयू की अधिष्ठाता प्रोफेसर बिंदा डी. परांजपे ने की। सत्र की शुरुआत उपस्थित विद्वानों और छात्रों के स्वागत ज्ञापन से हुई। प्रोफेसर तेज प्रताप सिंह, पंडित दीनदयाल उपाध्याय पीठ, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के समन्वयक ने पुष्प गुच्छ देकर अतिथियों का स्वागत किया।
इसके पश्चात जेएनयू, नई दिल्ली के सामाजिक विज्ञान स्कूल के अधिष्ठाता और प्रोफेसर हीरामन तिवारी ने मुख्य वक्तव्य दिया। उन्होंने पंडित दीनदयाल उपाध्याय द्वारा लिखित मूल्यवान ग्रंथ जगद्गुरु शंकराचार्य में प्रस्तुत गहन विचारों पर चिंतन किया, जो भारत के महान दार्शनिक और उनके कालजयी ज्ञान की विरासत की ओर इंगित करता है। उन्होंने रामायण, महाभारत और उपनिषदों में निहित प्राचीन भारतीय दर्शन के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि ये ग्रंथ कर्तव्य, करुणा और नैतिकता जैसे मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान करते हैं, जो नेतृत्व, शासन और कल्याण से संबंधित आधुनिक चुनौतियों का समाधान करते हैं।
सम्मेलन के अंत में धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया गया। सम्मेलन का समापन पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के आदर्शों और दर्शन को आत्मसात करने के संकल्प के साथ हुआ। उनके विचार, जो न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए मूल्यवान शिक्षाएं प्रदान करते हैं, समापन संबोधन के दौरान प्रमुख रूप से रेखांकित किए गए।