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प्रधान संपादक की कलम सेः नीचे दिया गया पैराग्राफ पंजाब के एक कम्युनिस्ट ग्रुप की ओर से लिखा गया है। मामले का मर्म समझिए। जब तक ठेकेदारी प्रथा का अंत नहीं होगा, एक भी मांग पूरी नहीं होगी। जाहिर है यह काम तो स्टेट ही कर सकता है। जब पीस रेट पर काम करवाने का चलन बढ़ता जा रहा है तो दिहाड़ी बढ़ाने की माँग बेमानी हो जाती है। स्टेट कानून बनाकर पीस रेट पर काम करवाने पर रोक लगाए। बिहार के एक परजीवी कम्युनिस्ट का कहना है कि असंगठित-निर्माण श्रमिकों को मालिक से भी पैसा बढ़ाने की मांग करनी चाहिए। मुझे लगता है कि सारी मांगें स्टेट से की जानी चाहिए ताकि उसके पूँजीपरस्त होने को जनता के सामने बेनकाब किया जा सके। पूँजी का राज जब तक रहेगा, नीचे गिनाई गई एक भी मांग पूरी नहीं हो पाएगी क्योंकि राजकीय पूँजीवाद का दौर अब बीत चुका है। 

न्यूनतम मासिक वेतन 26000 रुपए तय किया जाए। पीसरेट/दिहाड़ी इसी हिसाब से तय हो। कमरतोड़ महँगाई पर रोक लगाई जाए। महिला मज़दूरों को बराबर काम के लिए पुरुष मज़दूरों के बराबर वेतन/पीस रेट/दिहाड़ी मिले, मज़दूरों का वेतन, ई.पी.एफ़. आदि के पैसे दबाने वाले मालिकों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की जाए, कारख़ानों में ई.एस.आई., ई.पी.एफ़., बोनस, पहचान-पत्र, पक्का हाजि़री कार्ड और रजिस्टर, वेतन पर्ची (पे-स्लिप) आदि सारे क़ानूनी श्रम अधिकार लागू किए जाएँ, कारख़ानों में पीने वाले साफ़ पानी, साफ़-सफ़ाई की पूरी व्यवस्था हो, मज़दूरों के क़ानूनी श्रम अधिकार लागू ना करने वाले मालिकों को सख़्त सज़ाएँ मिलें, ई.पी.एफ़. और ई.एस.आई. के वेतन की सीमा बढ़ाई जाए, कारख़ानों में हादसों से मज़दूरों की सुरक्षा की उचित व्यवस्था हो, हादसा होने पर इलाज और उचित मुआवज़े की गारंटी हो, सारे मज़दूरों को पक्के रोज़गार की गारंटी हो, मज़दूर विरोधी ठेकेदारी प्रथा को पूरी तरह ख़त्म किया जाए। बेरोज़गारी की हालत में बेरोज़गारी भत्ता मिले, मज़दूरों के रिहायशी इलाक़ों में सरकारी अस्पताल-डिस्पेंसरी, स्कूल उचित संख्या में खोले जाएँ, जो पहले से मौजूद हैं उनकी हालत सुधारी जाए, साफ़-सफ़ाई, बिजली, पानी आदि जैसी सुविधाओं की उचित व्यवस्था हो, मज़दूरों के राशन कार्ड, वोटर कार्ड आदि बनाए जाएँ, बुढ़ापा पेंशन लागू हो, मज़दूरों-मेहनतकशों के साथ आएदिन होने वाली छीना-छपटी की घटनाओं को रोकने के लिए सख़्त कार्रवाई की जाए, सारे मज़दूरों को रविवार की साप्ताहिक छुट्टी हो।

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