Total Views: 166

दृश्य संकाय में कला एवं साहित्य के तीन वृहद गतिविधियों का आयोजन

वाराणसीः दोपहर 12:30 पर दृश्य कला संकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय स्थित अहिवासी कला वीथिका में साहित्य एवं कला की तीन गतिविधियों – लोक संस्कृति एवं लोक चित्रकला पुस्तक का विमोचन, लेखिका डॉं. उत्तमा दीक्षित विभागाध्यक्ष एवं संकाय प्रमुख, मुग्धा पहाड़ी लघु चित्रकारी की 17 दिवसीय कार्यशाला एवं संकाय के पॉटरी सिरामिक अनुभाग के द्वारा आयोजित 10 दिवसीय कार्यशाला की प्रर्दशनी क्रिस्टल ग्लेज का समारोह आयोजित की गई ।

पद्मश्री विजय शर्मा, प्रख्यात कलाकार ने पिल्ग्रिम्स पब्लिशिंग, दुर्गाकुण्ड,  वाराणसी द्वारा प्रकाशित डॉं. उत्तमा दीक्षित, विभागाध्यक्ष एवं संकाय प्रमुख , दृश्य कला संकाय , काशी हिन्दू विश्वविद्याल द्वारा लिखित पुस्तक लोक संस्कृति एवं लोक चित्रकला का 15 फरवरी 2024 को, दृश्य कला संकाय के अहिवासी कला वीथिका में विमोचन के बाद अपने विशेष टिप्पणी में कहा कि पुस्तक में व्याख्यायित लोक चित्रों की परम्परा एवं लोक रूचियों को जीवित रखने के कार्य लोक चित्रकला शैली ही करती है। पुस्तक विमोचन समारोह में अपनी टिप्पणी करते हुए पुस्तक की लेखिका डॉं उत्तमा दीक्षित ने उल्लेख किया कि बनारस के जीवन रस में लोक-जीवन की विशेषता है। यहाँ के मंदिरों, मठों की समृद्ध लोक-संस्कृति से प्रभावित होकर पुस्तक के माध्यम से प्राचीन लोक कलाओं के मूल्यों को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने का प्रयास किया जा रहा है।

भोजपुरी अध्ययन केन्द्र के समन्वयक प्रो0 श्रीप्रकाश शुक्ल ने बताया कि संस्कृति और लोक चित्रकला आपस में सम्बद्ध है। उन्होंने कहा कि काशी के संरक्षक भगवान शिव है, जो इस संसार के सबसे बड़े कलाकार है। लोक कला में मौलिकता, नवीनता और गतिशीलता होती है इसलिए यह स्व-उन्नत होती है। सनातनी रामानन्द जी, पिल्ग्रिम्स पब्लिशिंग हाउस के प्रकाशक ने पुस्तकों की महत्ता बताते हुए कहा कि ऑनलाइन माध्यम में अध्ययन की अपेक्षा पुस्तकों की हार्डकापी से अध्ययन का अलग महत्व हैं। प्रो0 सदाशिव कुमार द्विवेदी, समन्वयक भारत अध्ययन केन्द्र ने बताया कि कला केवल रस अभिव्यंजना का प्रयास है, इसमें भावों को व्यक्त करने के केवल माध्यम बदलते है।

शास्त्रों में लोक कला से संबंधित 49 भावों का जिक्र है। साहित्य, गीत, संगीत, नृत्य, चित्रकला इत्यादि अनेक कलाओं के माध्यम से भावों को रूप प्रदान किया जाता है।  संगीत एवं मंच कला संकाय के संकाय प्रमुख प्रो0 शशि कुमार ने कहा कि हर कला में एक परम्परा होती है। पिता या गुरू से पुत्र या शिष्य में अभ्यास के द्वारा ही कलाएं हस्ताक्षरित होती हैं। मुख्य अतिथि पद्मश्री विजय शर्मा विख्यात कलाकार ने अपने उद्बोधन में कहा कि लोक कलाएं गुहा चित्रों का ही परिवर्तित एवं परिष्कृत रूप है। लोक संस्कृति स्वतः स्फूर्त है, उसे किसी व्यक्ति विशेष ने नहीं बनाया। प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार प्रो0 सदानन्द शाही ने कहा पुश एवं मनुष्य में मूल अन्तर तृण भोजन का होना और ना होना हैं। साहित्य, संगीत और कला से विहीन कोई भी मनुष्य पूंछ-विषाणहीन पुश ही हैं। अक्षर में रूप पाने वाली चीजें स्थायी हो जाती हैं, अक्षर क्षर नहीं होता और लोक कलाओं में जीवन का विस्तार है। 

पॉटरी सिरामिक कार्यशाला के दौरान सृजन कलाकृतियों के प्रदर्शनी एवं चित्रकला विभाग के कार्यशाला मुग्धा- पहाड़ी लघु चित्रकारी का उद्घाटन पद्मश्री विजय शर्मा द्वारा किया गया । पॉटरी सिरामिक कार्यशाला ‘‘क्रिस्टल ग्लेज’’ के दौरान सृजित कलाकृतियों की प्रदर्शनी एवं चित्रकला विभाग की कार्यशाला ‘‘मुग्धा- पहाड़ी लघु चित्रकारी’’ का उद्घाटन पद्मश्री विजय शर्मा द्वारा किया गया।

पॉटरी सिरामिक कार्यशाला के संजोयक डॉं. बह्म स्वरूप ने बताया कि कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य क्रिस्टलीय संरचनाओं के लिए प्रसिद्ध क्रिस्टल ग्लेज को वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए सटीक ज्ञान और कौशल की आवश्यकताओं पर छात्रों को उन्नत तकनीकों और प्रयोग और प्रभाव बारे में अवगत कराना है।  चित्रकला विभाग के अन्तर्गत कार्यशाला के संयोजक एवं विभागाध्यक्ष, संकाय प्रमुख डॉं. उत्तमा दीक्षित ने ‘‘मुग्धा- पहाड़ी लघु चित्रकारी’’ के आयोजन के बारे में बताया कि कार्यशाला  17 दिवसीय है, जिसमें प्रतिदिन 50 छात्र भाग लें सकेंगें।

Leave A Comment