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वाराणसीः मनबढ़ और अपराधी प्रकृति-प्रवृत्ति का वकील श्रीनाथ त्रिपाठी अपराध भी खुद ही तय कर देना चाहता है और सजा भी खुद ही सुनाना चाहता है। इसके लिए भारतीय संविधान और उसके द्वारा प्रदत्त अधिकार गये तेल लेने। जाहिलों-मूर्खों की भाषा बोलने वाला यह वकील मौका मिलते ही अपनी गुंडई दिखाने लगता है।
यह अनपढ़-कुपढ़ और धंधेबाज कह रहा है कि देश के अंदर देशद्रोहियों को लात, जूते, थप्पड़ और घूँसे मारे जाएं। यह नालायक खुद को संप्रभुतासंपन्न नेशन-स्टेट की जगह रखे हुए है और फैसला सुना रहा है कि कौन देशप्रेमी है और कौन देशद्रोही।
मंडी में जन्म लेने वाले राष्ट्रवाद का यह घृणित पैरोकार इसके अपने हिसाब से राष्ट्र-द्रोह की बात करने अथवा कृत्य करने वाले को मनमाने ढंग से दंडित करने की ख्वाहिश पाले हुए है और उसे सार्वजनिक रूप से प्रकट भी कर रहा है। इसकी अपनी समझ के हिसाब से विधिसंगत न्यायिक प्रक्रिया की कोई अहमियत नहीं, जबकि यह खुद वरिष्ठ अधिवक्ता है।
किसी भी लोकतांत्रिक देश में अपराध तय करने और दंड देने का अधिकार सिर्फ न्यायपालिका को होता है। कम्युनिस्ट विचारधारा को लेकर यह नामाकूल खौरियाया हुआ है और अनाप-शनाप बके जा रहा है। श्रीनाथ त्रिपाठी कम्युनिस्टों को इंसान ही नहीं समझता। आईटी सेल द्वारा हर दिन किए जा रहे विष-वमन माने नफरत को आहार बनाकर जीने वालों द्वारा उगले गए विचारों की जुगाली कर रहा श्रीनाथ त्रिपाठी यह जानता ही नहीं है कि आज की तारीख में चीन पूँजीवाद का हमराही बन चुका है और उसे समाजवाद या कम्युनिज्म के उदात्त आदर्शों से कोई लेना-देना नहीं।
इसकी ख्वाहिश है कि जेएनयू को जमींदोज कर दिया जाए क्योंकि वहां पर किंचित लोकतांत्रिक माहौल है। अपराधी प्रवृत्ति और दल्लागीरी के सहारे निचली अदालतों में धाकड़ वकील का रुतबा हासिल करने वालों से इसकी उम्मीद ही नहीं की जा सकती कि वे तर्क-विवेक और मानववाद को उसूली तौर पर अमल में लाएंगे।
बार काउंसिल को स्वतः संज्ञान लेकर श्रीनाथ त्रिपाठी के लाइसेंस को रद्द कर देना चाहिए। अपराधी मनोवृत्ति का श्रीनाथ त्रिपाठी न्याय और मनुष्यता के नाम पर बदनुमा दाग है।
इस देश में ऐसी कई कम्युनिस्ट पार्टियाँ हैं, जो भारतीय संविधान में विश्वास व्यक्त करते हुए चुनावों में भाग लेती हैं। CPI, CPM, CPI-ML (Liberation) से बेहिसाब कम्युनिस्ट कार्यकर्ता जुड़े हुए हैं और श्रीनाथ त्रिपाठी के हिसाब से उन सभी की मॉब-लिंचिंग की जानी चाहिए, माने पीट-पीटकर मार डालना चाहिए। कचहरी के वकीलों का कहना है कि श्रीनाथ त्रिपाठी का झुकाव कांग्रेस की ओर है, क्या जवाहर लाल नेहरू और आजादी के दिनों के नेता इसी आपराधिक भाषा में कहते-लिखते रहे हैं। इस तिलचट्टे के हिसाब से तो भगत सिंह को उस समय की भीड़ द्वारा दंडित किया जाना चाहिए था क्योंकि वह भी प्रतिबद्ध मार्क्सवादी थे और जिस दिन उन्हें फाँसी हुई, उस दिन व्लादीमिर इल्यीच लेनिन की किताब को पढ़ रहे थे।