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1 अक्टूबर! वह भी मंगलवार का ही दिन था। राहुल गांधी सोनीपत में थे। उन्होंने चार विधानसभा क्षेत्रों खरखोदा, सोनीपत, गन्नौर और गोहाना में 70 किलोमीटर का रोड शो किया‌। यहीं गोहाना में जनसभा के दौरान उन्होंने मंच से यहां की प्रसिद्ध मिठाई मातुराम की जलेब और जलेबी की फैक्टरी की चर्चा की।

भाजपा और उसके आईटी सेल ने तत्काल ‘जलेबी की फैक्टरी’ को लपक लिया और उसे एक अव्यवहारिक यूटोपिया के रूप में पूरे देश के मीडिया और सोशल मीडिया में ट्रेंड कर दिया।

आज मंगलवार को हरियाणा चुनाव के नतीजे आ गये हैं और कांग्रेस सोनीपत जिले की उपरोक्त्त चारों सीटें हार गई है, जहां राहुल ने रोड-शो किया था।

सोनीपत को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ माना जाता है। जैसे कि रोहतक और झज्जर को माना जाता है। गोहाना, जहां से जलेबी की बात उठी, वहां तीन बार से जीत रहे कांग्रेस के जगबीर मलिक भाजपा के पूर्व सांसद अरविंद शर्मा से 10429 वोटों के अंतर से हार गए। इन्हीं अरविंद शर्मा को रोहतक से लोकसभा चुनाव में दीपेंद्र हुड्डा ने हराया था। ये अरविंद शर्मा कभी हुड्डा के ही खास हुआ करते थे। जब हुड्डा मुख्यमंत्री थे और अरविंद शर्मा असंध से कांग्रेस के लिए जीतते थे।

जाहिर है जलेबी की फैक्टरी की बात राहुल ने अपनी मर्जी से मंच पर नहीं उठाई होगी। यह स्थानीय नेताओं द्वारा उन्हें दी गई स्क्रिप्ट का ही हिस्सा होगी। जलेबी का वह डिब्बा इस बात का गवाह है कि यह प्लानिंग का हिस्सा थी। (मातु राम परिवार की जलेब की दैनिक मांग इतनी तो है ही कि वह स्वयं ही उसे बनाने के लिए मशीन डिजाइन करा रहे हों।)

राहुल गांधी ने हरियाणा में रैली की शुरुआत असंध और करनाल से की थी। यहां शेलजा की पसंद के उम्मीदवार का प्रचार करने आए थे। राहुल की इस रैली में सुरजेवाला नहीं आए थे। यह मीडिया के लिए मसाला था। यहीं पर राहुल ने हुड्डा और सैलजा में मीडिया कथित सुलह कराई थी। आज नतीजे बता रहे हैं कि करनाल की पांचों सीटों से कांग्रेस हार गई है।

नतीजे पर्याप्त संकेत देते हैं कि हरियाणा में कांग्रेस की हार स्क्रिप्टेड है। इसका निशाना निसंदेह राहुल गांधी थे और इस स्क्रिप्ट को बनाने में भाजपा के रणनीतिकारों के इशारे पर उनके कुछ अपने लोग भी नाच रहे थे।

वजह साफ है। अगर भाजपा हरियाणा हार जाती तो संसद में उसके लिए शीतकालीन सत्र काटना मुश्किल हो जाता।

हरियाणा में भाजपा अपनी पुरानी 13 सीटें हारी है। वह हारेगी यह हर कोई जान रहा था मगर उसने 21 नई सीटें जीत लीं। यह चमत्कार कैसे हुआ? इसे कोई नही समझ पा रहा। सबके पास शिगूफे हैं।

मगर इस जीत का सारा गणित राम रहीम के साथ भाजपा की सौदेबाजी और संत रामपाल तथा उनके अनुयायियों का हुड्डा से पुराने हिसाब किताब में छुपा है। रामपाल और राम-रहीम के अनुयायियों ने जीटीबैल्ट में भाजपा के पांव नहीं उखड़ने दिये और सोनीपत, भिवानी, कैथल, जींद के कुछ हिस्सों में भी कांग्रेस की उम्मीदों पर जमकर पानी उड़ेला।

चरखी दादरी से उस जेल अधीक्षक को भाजपा ने वीआरएस दिलाकर टिकट दिया जिनके रहते राम रहीम को छह बार पैरोल पर बाहर आने का मौका मिला। वह सांगवान साहब भी बाबा की कृपा से चुनाव जीत गए हैं और कृपा ऐसे ही बरसती रही तो जल्द मंत्री पद की शपथ लेते नजर आ सकते हैं।

राम-रहीम को सजा भाजपा के कार्यकाल में ही हुई थी। अगर कांग्रेस राम-रहीम को मैनेज करने की कोशिश करती तो मीडिया उसके पीछे पड़ जाता। कांग्रेस अपनी इस हिचक का कोई तोड़ नहीं ढूंढ पाई और भाजपा ने पूरी निर्लज्जता से यह खेल खेला, क्योंकि उसे मीडिया की कोई चिंता नहीं थी।

तराइन की अंतिम लड़ाई पृथ्वीराज की हार मानी जाती है, उसे भारत की हार नहीं माना जाता। पानीपत की तीसरी जंग मराठों की हार मानी जाती है, उसे देश की हार नहीं माना जाता। इसी तरह हरियाणा की हार को भी मीडिया जाटों की हार और दलितों की जीत घोषित कर देगा… क्योंकि उन्हें ऐसा ही बताने के निर्देश हैं! जीत दिलाने वाले मोहरों के नाम छुपा कर रखे जाते हैं।
हां! खरबूजा जब कटता है तो बांटते वक्त उनका ध्यान रखा जाता है। संतों की सिफारिश से टिकट पाने वालों का मंत्री पद मिलना तय है और मुख्यमंत्री पद भी।सुधीर राघव

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