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नरेंद्र कुमार
हमारे ड्राइवर साथियों में अधिकांश ड्राइवर मालिकों के यहां मजदूरी पर काम करते हैं। बहुत कम ड्राइवर होंगे जिन्हें 8 घंटे प्रतिदिन की ड्यूटी मिलती है। रविवार की भी छुट्टी नहीं होती है। ड्राइवर का वेतन 10 से 15 हजार के आसपास है। यह वेतन या मजदूरी पूरे देश के औसत वेतन से भी बहुत नीचे है। औसत वेतन का मतलब यह हुआ जिसमें किसी तरह से परिवार का काम चल जाता है और मजदूर या ड्राइवर खा पी के दूसरे दिन काम करने की स्थिति में आ जाता है।
लेकिन आज के वेतन में उनका परिवार सही ढंग से खाप पी नहीं पता है।, बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ नहीं पाते हैं। बीमार पड़ने पर उनका सही ढंग से इलाज नहीं हो पता है। बुढ़ापे में जीवन यापन करने के लिए उनके पास कोई पेंशन ग्रेच्युटी जैसी राशि नहीं है।

ड्राइवर तथा मजदूर साथियों को जानना चाहिए कि रूस जैसे पूंजीवादी देश में भी ऐसा ही हाल था। तब आज से 100 साल पहले 25 अक्टूबर 1917 को मजदूरों ने सत्ता और सरकार से पूंजीपतियों को हटाकर खुद अपने हाथ में शासन ले लिया। इस शासन को चलाने में रेलवे ड्राइवर की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस शासन व्यवस्था को “समाजवाद” कहा गया जिओ पूंजीवाद को बदलकर बनाया जा रहा था।
रेलवे के ड्राइवर तो अपने को पूरी तौर पर मजदूर समझते हैं। उन्होंने लड़ाई लड़कर यूनियन तथा 8 घंटे के काम और दूसरी सुविधाएं भी सरकार से ली है। अब रेलवे के निजीकरण के बाद उन्हें भी 12 घंटे से ज्यादा ड्यूटी करवाया जा रहा है जिसके कारण लगातार दुर्घटनाएं हो रही है। लेकिन कार टैक्सी चलाने वाले कुछ ड्राइवर साथी को लगता है कि वह मजदूर नहीं है। उनका तर्क होता है कि हम अपने मांग के लिए लड़ेंगे हम पूंजीवाद का विरोध नहीं करेंगे। उनको समझना चाहिए कि उनकी सारी समस्या पूंजीवाद के ही कारण है। पूंजीवाद में पूंजीपति तथा सरकार ने मिलकर ऐसे ऐसे काले कानून बनाए हैं जिसके रहते आप अपनी मंगू के लिए जुलूस प्रदर्शन भी नहीं कर सकते हैं। हिट एंड रन कानून भी मालिकों के पक्ष में ही सरकार ने बनाई है।

जैसे-जैसे देश में और दुनिया में पूंजीवाद मजबूत होता गया स्थाई नौकरी को कारखाने से लेकर सरकारी विभागों तक में खत्म कर दिया गया।
अमेरिका, इंग्लैंड ,जापान, जर्मनी ,फ्रांस जैसे देशों ने मिलकर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक का निर्माण किया है ये गरीब देश की सरकारों को कर्ज में फंसने पर कर्ज देते हैं । अपने यहां मजदूरों के अधिकार को खत्म कर, स्थाई नौकरी को खत्म कर पूंजी के मालिकों को पूरी तरह से छूट देने के लिए बाध्य कर देते हैं। अमेरिका इंग्लैंड, जापान की तरह भारत में भी पूंजीपतियों के पक्ष में सभी कानून बनाए जा रहे हैं। पूंजीपति अपनी पूंजी एक जगह से दूसरे जगह लेकर तुरंत जा सकता है। लेकिन मजदूर या ड्राइवर को एक जगह से दूसरे जगह जाने में 10 पाबंदियां हैं। पूंजीपति सरकार पर दबाव बनाती है कि हमको कम से कम मजदूरी देने की छूट दो, नहीं तो हम अपनी पूंजी लेकर दूसरे जगह चले जाएंगे। वह सरकार चलाने वाली पार्टियों को चुनाव लड़ने के लिए करोड़ों रुपया चंदा देता है। अभी आपने सुना ही होगा कि इलेक्ट्रोल बांड के माध्यम से भाजपा तथा नरेंद्र मोदी की सरकार को बड़े पैमाने पर चुनाव में चंदा दिया गया जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी गलत कहा है। लेकिन सरकार ने पूंजीपतियों और पार्टियों पर कोई कार्रवाई नहीं की। क्योंकि सबों के बीच में गठजोड़ है। इसलिए अगर ड्राइवर और मजदूर एकजुट होगा पूंजीपति और सरकार से नहीं लड़ेंगे, स्थाई नौकरी की मांग नहीं करेंगे, तो पूंजीपति 10/ 15हजार से अधिक वेतन नहीं देंगे। अगर पूंजीवाद को खत्म नहीं करेंगे, तो सभी चीजों का निजीकरण कर दिया जाएगा।
हम सभी लोग सरकारी स्कूल में पढ़े हैं। डॉक्टर, इंजीनियर, पत्रकार प्रोफेसर बने हैं। लेकिन अब सरकारी स्कूलों को जान करके तबाह किया जा रहा है, ताकि गरीबों के बच्चे भी अपनी गाढ़ी कमाई खर्च करके प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने के लिए जाएं या फिर नहीं पढ़ें । गरीब मजदूर तथा ड्राइवर के बच्चे अगर नहीं पड़ेंगे, तो सरकार के ऊपर नौकरी देने का दबाव नहीं रहेगा। ज्यादा बेरोजगार रहेंगे तो पूंजीपति कम मजदूरी पर जब बुलाएगी एक के जगह 10 दौड़ कर जाएंगे। पूंजीपति जनता की जरूरत के लिए कोई भी चीज नहीं पैदा करता है। वह हर चीज अपने मुनाफे के लिए बनाता है। अगर मुनाफा नहीं होगा, तो बड़ा-बड़ा फार्मर किसान अनाज भी नहीं उगाएगा, कपड़ा कारखाने का मालिक कपड़ा नहीं बनाएगा ,दवाई भी नहीं बनाएगा। स्कूल भी बंद कर देगा। हॉस्पिटल भी बंद कर देगा। इसी कारण गोदाम में अनाज पड़े रहने पर भी बहुत सारे देश में लोग भूखे मर जाते हैं। बड़े-बड़े शहरों में बहुत सारे फ्लैट खाली हैं। लेकिन मकान बनाने वाले और दूसरे मजदूर झुंगी झोपड़ियों में रहते हैं।
आप सब लोग देख ही रहे हैं कि मोदी सरकार लगातार बंदे भारत जैसे अमीरों के चढ़ने वाली रेल गाड़ियां चला रही है। लेकिन हजारों लाखों मजदूर और ड्राइवर काम खोजने के लिए इस शहर से उस शहर जनरल डब्बे में जानवर की तरह कोंचा कर जा रहे हैं। जनरल डब्बे को पहले से भी और काम कर दिया गया। प्लेटफॉर्म तथा गाड़ियां पूंजीपतियों को बेच दिया गया। पूंजीपति मुनाफा बढ़ाने के लिए कर्मचारी मजदूर की छंटनी कर रहे हैं। ऐसा इसलिए किया गया है कि रेलवे से उनका मुनाफा बढ़े।।
इन सभी चीजों में तभी सुधार किया जा सकता है, जब पूंजीवाद को खत्म किया जाएगा और पूंजीवाद को सिर्फ मजदूर ड्राइवर और किसान लोग मिलकर के ही खत्म कर सकते हैं। इसीलिए जरूरी है इस नारे को लगाना कि “पूंजीवाद मुर्दाबाद”-+ समाजवाद जिंदावाद”

अब मैं साथियों से कहना चाहूंगा कि हमें सामंती संस्कृति का विरोध करना चाहिए। हमें जाति धर्म तथा इलाके के नाम पर किसी को बेइज्जत किए जाने के खिलाफ मजबूती से लड़ना चाहिए।
अक्सर मजदूर तथा ड्राइवर साथी हमें बताते हैं कि मालिक ने उन्हें गाली दे दिया या उनसे बुरा व्यवहार किया। कई घरों में हम देखे हैं कि ड्राइवर उनकी कुर्सी पर या उनकी चौकी पर नहीं बैठ सकता है। ठेकेदार, राजनेता और माफिया तो कभी-कभी जाति धर्म या इलाके के नाम पर भी गाली दे देते हैं। जैसे भारत वर्ष के दूसरे कोने में बिहार के किसी मजदूर तथा ड्राइवर को बिहार करके अपमानित किया जाता है। इसी तरह से कभी-कभी जाति से जोड़कर के भी अपमानित कर दिया जाता है। हमें इस बात का मजबूती से विरोध करना चाहिए। जब बहुत पहले जमींदार और सामंत लोग हुआ करते थे, तो किसान लोग बेगारी करते थे और मालिक लोग उन्हें जब चाहे पीट देता था। किसान तथा बंधुआ मजदूर उनके कर्ज में डूबे होते थे। जमींदारी तो चला गया, लेकिन कुछ लोग आज भी इस संस्कृति और आदत के साथ मजदूर तथा ड्राइवर के साथ व्यवहार करते हैं। ऐसा वह अपने दिमाग में बैठे सामंती संस्कृति के प्रभाव में करते हैं। इसलिए मजदूर तथा ड्राइवर को सामंती संस्कृति का जमकर विरोध करना चाहिए और मालिकों से बराबरी के आधार पर इज्जत के साथ पेश आने की मांग को मजबूती के साथ रखना चाहिए। हम सबों को जनवादी तथा बराबरी की संस्कृति के लिए संघर्ष करना चाहिए। साबों को बोलने का अधिकार होना चाहिए। हमें सामूहिक नेतृत्व को विकसित करना चाहिए। यूनियन मजदूर और ड्राइवर का स्कूल होता है। यहां आप लिखने पढ़ने तथा बोलने के लिए सीखेंगे। तो हमें यह भी सीखना है कि हम दूसरों से कैसे बात करें और हमसे अन्य लोग कैसे बात करें। किसी भी स्थिति में किसी भी तरह के उत्पीड़न को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।
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यह लेख हम मजदूर तथा ड्राइवर साथियों के बीच में वैचारिक बहस के लिए पेश कर रहे हैं। जो भी साथी हमसे असहमत हैं वह इसके खिलाफड्राइवर तथा यूनियनों को पूंजीवाद तथा सामंती संस्कृति के खिलाफ क्यों लड़ना चाहिए?
हमारे ड्राइवर साथियों में अधिकांश ड्राइवर मालिकों के यहां मजदूरी पर काम करते हैं। बहुत कम ड्राइवर होंगे जिन्हें 8 घंटे प्रतिदिन की ड्यूटी मिलती है। रविवार की भी छुट्टी नहीं होती है। ड्राइवर का वेतन 10 से 15 हजार के आसपास है। यह वेतन या मजदूरी पूरे देश के औसत वेतन से भी बहुत नीचे है। औसत वेतन का मतलब यह हुआ जिसमें किसी तरह से परिवार का काम चल जाता है और मजदूर या ड्राइवर खा पी के दूसरे दिन काम करने की स्थिति में आ जाता है।
लेकिन आज के वेतन में उनका परिवार सही ढंग से खाप पी नहीं पता है।, बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ नहीं पाते हैं। बीमार पड़ने पर उनका सही ढंग से इलाज नहीं हो पता है। बुढ़ापे में जीवन यापन करने के लिए उनके पास कोई पेंशन ग्रेच्युटी जैसी राशि नहीं है।

ड्राइवर तथा मजदूर साथियों को जानना चाहिए कि रूस जैसे पूंजीवादी देश में भी ऐसा ही हाल था। तब आज से 100 साल पहले 25 अक्टूबर 1917 को मजदूरों ने सत्ता और सरकार से पूंजीपतियों को हटाकर खुद अपने हाथ में शासन ले लिया। इस शासन को चलाने में रेलवे ड्राइवर की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस शासन व्यवस्था को “समाजवाद” कहा गया जिओ पूंजीवाद को बदलकर बनाया जा रहा था।
रेलवे के ड्राइवर तो अपने को पूरी तौर पर मजदूर समझते हैं। उन्होंने लड़ाई लड़कर यूनियन तथा 8 घंटे के काम और दूसरी सुविधाएं भी सरकार से ली है। अब रेलवे के निजीकरण के बाद उन्हें भी 12 घंटे से ज्यादा ड्यूटी करवाया जा रहा है जिसके कारण लगातार दुर्घटनाएं हो रही है। लेकिन कार टैक्सी चलाने वाले कुछ ड्राइवर साथी को लगता है कि वह मजदूर नहीं है। उनका तर्क होता है कि हम अपने मांग के लिए लड़ेंगे हम पूंजीवाद का विरोध नहीं करेंगे। उनको समझना चाहिए कि उनकी सारी समस्या पूंजीवाद के ही कारण है। पूंजीवाद में पूंजीपति तथा सरकार ने मिलकर ऐसे ऐसे काले कानून बनाए हैं जिसके रहते आप अपनी मंगू के लिए जुलूस प्रदर्शन भी नहीं कर सकते हैं। हिट एंड रन कानून भी मालिकों के पक्ष में ही सरकार ने बनाई है।

जैसे-जैसे देश में और दुनिया में पूंजीवाद मजबूत होता गया स्थाई नौकरी को कारखाने से लेकर सरकारी विभागों तक में खत्म कर दिया गया।
अमेरिका, इंग्लैंड ,जापान, जर्मनी ,फ्रांस जैसे देशों ने मिलकर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक का निर्माण किया है ये गरीब देश की सरकारों को कर्ज में फंसने पर कर्ज देते हैं । अपने यहां मजदूरों के अधिकार को खत्म कर, स्थाई नौकरी को खत्म कर पूंजी के मालिकों को पूरी तरह से छूट देने के लिए बाध्य कर देते हैं। अमेरिका इंग्लैंड, जापान की तरह भारत में भी पूंजीपतियों के पक्ष में सभी कानून बनाए जा रहे हैं। पूंजीपति अपनी पूंजी एक जगह से दूसरे जगह लेकर तुरंत जा सकता है। लेकिन मजदूर या ड्राइवर को एक जगह से दूसरे जगह जाने में 10 पाबंदियां हैं। पूंजीपति सरकार पर दबाव बनाती है कि हमको कम से कम मजदूरी देने की छूट दो, नहीं तो हम अपनी पूंजी लेकर दूसरे जगह चले जाएंगे। वह सरकार चलाने वाली पार्टियों को चुनाव लड़ने के लिए करोड़ों रुपया चंदा देता है। अभी आपने सुना ही होगा कि इलेक्ट्रोल बांड के माध्यम से भाजपा तथा नरेंद्र मोदी की सरकार को बड़े पैमाने पर चुनाव में चंदा दिया गया जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी गलत कहा है। लेकिन सरकार ने पूंजीपतियों और पार्टियों पर कोई कार्रवाई नहीं की। क्योंकि सबों के बीच में गठजोड़ है। इसलिए अगर ड्राइवर और मजदूर एकजुट होगा पूंजीपति और सरकार से नहीं लड़ेंगे, स्थाई नौकरी की मांग नहीं करेंगे, तो पूंजीपति 10/ 15हजार से अधिक वेतन नहीं देंगे। अगर पूंजीवाद को खत्म नहीं करेंगे, तो सभी चीजों का निजीकरण कर दिया जाएगा।
हम सभी लोग सरकारी स्कूल में पढ़े हैं। डॉक्टर, इंजीनियर, पत्रकार प्रोफेसर बने हैं। लेकिन अब सरकारी स्कूलों को जान करके तबाह किया जा रहा है, ताकि गरीबों के बच्चे भी अपनी गाढ़ी कमाई खर्च करके प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने के लिए जाएं या फिर नहीं पढ़ें । गरीब मजदूर तथा ड्राइवर के बच्चे अगर नहीं पड़ेंगे, तो सरकार के ऊपर नौकरी देने का दबाव नहीं रहेगा। ज्यादा बेरोजगार रहेंगे तो पूंजीपति कम मजदूरी पर जब बुलाएगी एक के जगह 10 दौड़ कर जाएंगे। पूंजीपति जनता की जरूरत के लिए कोई भी चीज नहीं पैदा करता है। वह हर चीज अपने मुनाफे के लिए बनाता है। अगर मुनाफा नहीं होगा, तो बड़ा-बड़ा फार्मर किसान अनाज भी नहीं उगाएगा, कपड़ा कारखाने का मालिक कपड़ा नहीं बनाएगा ,दवाई भी नहीं बनाएगा। स्कूल भी बंद कर देगा। हॉस्पिटल भी बंद कर देगा। इसी कारण गोदाम में अनाज पड़े रहने पर भी बहुत सारे देश में लोग भूखे मर जाते हैं। बड़े-बड़े शहरों में बहुत सारे फ्लैट खाली हैं। लेकिन मकान बनाने वाले और दूसरे मजदूर झुंगी झोपड़ियों में रहते हैं।
आप सब लोग देख ही रहे हैं कि मोदी सरकार लगातार बंदे भारत जैसे अमीरों के चढ़ने वाली रेल गाड़ियां चला रही है। लेकिन हजारों लाखों मजदूर और ड्राइवर काम खोजने के लिए इस शहर से उस शहर जनरल डब्बे में जानवर की तरह कोंचा कर जा रहे हैं। जनरल डब्बे को पहले से भी और काम कर दिया गया। प्लेटफॉर्म तथा गाड़ियां पूंजीपतियों को बेच दिया गया। पूंजीपति मुनाफा बढ़ाने के लिए कर्मचारी मजदूर की छंटनी कर रहे हैं। ऐसा इसलिए किया गया है कि रेलवे से उनका मुनाफा बढ़े।।
इन सभी चीजों में तभी सुधार किया जा सकता है, जब पूंजीवाद को खत्म किया जाएगा और पूंजीवाद को सिर्फ मजदूर ड्राइवर और किसान लोग मिलकर के ही खत्म कर सकते हैं। इसीलिए जरूरी है इस नारे को लगाना कि “पूंजीवाद मुर्दाबाद”-+ समाजवाद जिंदावाद”

अब मैं साथियों से कहना चाहूंगा कि हमें सामंती संस्कृति का विरोध करना चाहिए। हमें जाति धर्म तथा इलाके के नाम पर किसी को बेइज्जत किए जाने के खिलाफ मजबूती से लड़ना चाहिए।
अक्सर मजदूर तथा ड्राइवर साथी हमें बताते हैं कि मालिक ने उन्हें गाली दे दिया या उनसे बुरा व्यवहार किया। कई घरों में हम देखे हैं कि ड्राइवर उनकी कुर्सी पर या उनकी चौकी पर नहीं बैठ सकता है। ठेकेदार, राजनेता और माफिया तो कभी-कभी जाति धर्म या इलाके के नाम पर भी गाली दे देते हैं। जैसे भारत वर्ष के दूसरे कोने में बिहार के किसी मजदूर तथा ड्राइवर को बिहार करके अपमानित किया जाता है। इसी तरह से कभी-कभी जाति से जोड़कर के भी अपमानित कर दिया जाता है। हमें इस बात का मजबूती से विरोध करना चाहिए। जब बहुत पहले जमींदार और सामंत लोग हुआ करते थे, तो किसान लोग बेगारी करते थे और मालिक लोग उन्हें जब चाहे पीट देता था। किसान तथा बंधुआ मजदूर उनके कर्ज में डूबे होते थे। जमींदारी तो चला गया, लेकिन कुछ लोग आज भी इस संस्कृति और आदत के साथ मजदूर तथा ड्राइवर के साथ व्यवहार करते हैं। ऐसा वह अपने दिमाग में बैठे सामंती संस्कृति के प्रभाव में करते हैं। इसलिए मजदूर तथा ड्राइवर को सामंती संस्कृति का जमकर विरोध करना चाहिए और मालिकों से बराबरी के आधार पर इज्जत के साथ पेश आने की मांग को मजबूती के साथ रखना चाहिए। हम सबों को जनवादी तथा बराबरी की संस्कृति के लिए संघर्ष करना चाहिए। साबों को बोलने का अधिकार होना चाहिए। हमें सामूहिक नेतृत्व को विकसित करना चाहिए। यूनियन मजदूर और ड्राइवर का स्कूल होता है। यहां आप लिखने पढ़ने तथा बोलने के लिए सीखेंगे। तो हमें यह भी सीखना है कि हम दूसरों से कैसे बात करें और हमसे अन्य लोग कैसे बात करें। किसी भी स्थिति में किसी भी तरह के उत्पीड़न को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।
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यह लेख हम मजदूर तथा ड्राइवर साथियों के बीच वैचारिक बहस के लिए पेश कर रहे हैं। जो भी साथी हमसे असहमत हैं, वह इसके खिलाफ अवश्य लिखें।
बहस चलने से ही दिमाग साफ होगा। आप लोगों के विचार को जानने के लिए हम काफी उत्सुक हैं।

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