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कामता प्रसाद

हमरी भौजी के चाचा नामी अल्हैत थे। इतने नामी थे कि सुल्तानपुर के डीएम से जिलाजीत अल्हैत का खिताब पाए थे। एक बार पड़ोस के गाँव में अपने अगुवा संग आए हुए थे और लहरा के गा रहे थेः जवान घोड़ी आगे कइ द्या, घोड़वै नशा म दउरत जाँय
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कॉ. विनोद मिश्रा की सतरंगी समाजवाद वाली लिबरेशन जब लोकरंजकतावाद के घोड़े पर सवार होकर चुनावी मैदान में उतरी तो उसका भी सपोर्ट बेस दन्न से बहुत अधिक बढ़ गया। संविधान जब बनाया जा रहा था तो इस बात का खास ख्याल रखा गया था कि निजी संपत्ति और उसके मालिकों पर रत्ती भर खरोंच न आए और चुनावों की व्यवस्था भी इसी ऐतबार से की गई थी कि इसमें हिस्सा लेने वाले सपने में भी निजी संपत्ति के खिलाफ जाने के बारे में नहीं सोचें।
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यह तो मानी हुई सी बात है कि निजी पूँजी-संपत्ति के खिलाफ जनमत के तैयार होने का भौतिक आधार कब का निर्मित हुआ पड़ा है लेकिन चूँकि मनोगत ताकतें काहिल-जाहिल हैं इसलिए जनता दुर्भिक्ष का शिकार होते हुए भी निजी मालिकाने के मोहपाश से अभी उबर नहीं पाई है। जब विनोद मिश्रा की लिबरेशन चुनावी जंग में नए-नए उतरी तो कहा गया कि नया मुल्ला ज्यादा प्याज खाता है और अब जब लाला शशिप्रकाश की लंगड़ी औलाद अभिनव सिन्हा की अगुवाई में रामनाथ की CLI की एक झाँट यानि कि RCLI अभी-अभी संपन्न हुए लोकसभा चुनावों में नाची-कूदी तो उसके लिए कौन सी संज्ञा दी गई, अभी तक पता नहीं चला है।
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कॉ. अरविंद जब नन्हे लाल-जनार्दन वगैरह के साथ नोयडा में मज़दूरों के बीच सक्रिय थे तो खाने के वांदे थे। RCLI के होलटाइमर नन्हे लाल को कूरियर ब्वाय की नौकरी करनी पड़ी थी ताकि बाकी कॉमरेडों के पेट में अन्न जा सके। तब शशिप्रकाश ने अपनी लाला बुद्धि का उपयोग किया और ट्रेनों-बसों, सरकारी-निजी दफ्तरों में भीख मँगवाने का चोखा धंधा शुरू करवाया और वह भी भगतसिंह के नाम पर। उनके लौंडे ने इसी धंधे को विस्तार देते हुए चुनावी राजनीति की दुनिया में कदम रखा है। बहुत संभव है कि आने वाले वर्षों में वह संसदीय राजनीति की दुनिया का चमकता हुआ सितारा बनकर उभरे।
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मुंबई का एक पत्रकार है। वीपी सिंह माने विजय प्रकाश सिंह। कह रहा था का गोर्की मीडिया का उछाला हुआ नाम है। उस समय मैंने उसकी बात मान ली थी। जबकि सच यह है कि गोर्की जैसा किसी भी देश में और किसी भी भाषा में दूसरा कोई लेखक हुआ ही नहीं है।
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RCLI के पिल्ले झाँझ-मंजीरा बजाते हैं। BHU-AU-LU के अलावा हैदराबाद यूनिवर्सिटी में भी दिशा की यूनिटें बन चुकी हैं। इन बहन के सगों से कोई पूछे कि कुत्तों इलाहाबाद-बनारस में कब से तुम्हारे लोग गुदाभंजन करवा रहे हैं, वर्किंग-क्लास के बीच कितने दिन गोर्की की माँ पढ़वाने पर खर्च किए। यही सवाल BSM से भी बनता है। एडवांस एलिमेंट की कांसेप्ट में ही खोट है। रामनाथ की CLI की सभी झाँटें इस रोग से ग्रस्त हैं। मूल झाँट के अगुआ दिगंबर फेसबुक पर लिखित में स्वीकार कर चुके हैं कि ऐक्टिविज्म के नाम पर वह बस अनुवाद करते रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं कि बिहारी-भ्रष्ट हिंदी में। महाशय एक पैराग्राफ शुद्ध हिंदी नहीं लिख सकते।
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हिंदी पट्टी में वाम शिविर के नाम पर चुनावी वाम ही है, वहाँ से हकाले गए कुछ तत्व एनजीओ वालों के साथ अपने अस्तित्व का संकट हल करते देखे जा सकते हैं। ML खेमे के नाम पर जो संरचनाएं अस्तित्वमान हैं, उनमें एक दूसरे को लेकर न्यूनतम शालीनता के भी दर्शन नहीं होते।
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क्यों श्रीमान शशिप्रकाश तुम्हारा लंगड़ा चुनावों का उपयोग बुर्जुआ सिस्टम को बेनकाब करने के लिए कर रहा है या फिर उसे वैधता प्रदान करने के लिए। एक बात यह तो बताओ कि कहाँ तो अरविंद के जमाने में खाने के लाले थे और कहाँ तुम लोग कई-कई लोकसभा सीटों पर गाजे-बाजे के साथ चुनाव लड़ रहे हो, इतने पैसे आ कहाँ से रहे हैं? 12 हजार की पगार पाने वाले फैक्ट्री मजदूरों से प्राप्त होने वाले चंदे से। किसको चूतिया बना रहे हो लाला महोदय? आने वाली पीढ़िया तुम पर थूकेंगी कि अपनी लँगड़ी औलाद को सुपरमैन बनाने के चक्कर में तुमने उस जिम्मेदारी के साथ विश्वासघात किया, जो इतिहास ने तुम्हारे ऊपर डाली थी। अरे साहस के साथ फैक्टरी मजदूरों में काम करते और लौंडे को कहीं प्रोफेसरी करने देते। लानत है, थूकता हूँ तुम पर।
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श्रीमान शशिप्रकाश तुम्हारे लोग देश भर में फैक्टरी इलाकों में दर्जन भर जगहों पर मज़दूरों के बीच स्टडी सर्किल चला रहे हैं और तुम्हारे पास इसके प्रमाण हैं और अगर ऐसा नहीं है तो बेहतर है मुंबई चले जाओ और जाकर करण जौहर का मनोरंजन करो।

 

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