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वाराणसीः दृश्य कला संकाय का चित्रकला विभाग एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन कर रहा है जिसका शीर्षक ‘बनारस घाटः इसकी सुंदरता एवं आध्यात्मिकता’ है। यह कार्यशाला 27 जनवरी से 02 फरवरी, 2025 तक चलेगी।

बनारस को गंगा नदी का आशीर्वाद प्राप्त है। माँ गंगा के तट पर यह नगर बसा है जो भारत की जीवन रेखा है। गंगा-स्नान और भगवान शिव की उपासना से जहाँ धार्मिक और आध्यात्मिक पुण्य और तृप्ति होती है वहीं घाट यहाँ का सौंदर्यात्मक आकर्षण है। यहाँ श्रद्धालु बैठकर, समय बिताकर अव्यक्त सुख और शांति की प्राप्ति करते हैं। मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाटों पर जीवन और मृत्यु के निरंतर चक्र को देखने का एक अलग ही अनुभव है। यह शहर उन लोगों के लिए एक विशिष्ट आध्यात्मिक स्थल है जो  काशी हिन्दू विश्वविद्यालय  दृश्य कला संकाय का चित्रकला विभाग एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन कर रहा है जिसका शीर्षक ‘बनारस घाटः इसकी सुंदरता एवं आध्यात्मिकता’ है। यह कार्यशाला 27 जनवरी से 02 फरवरी, 2025 तक चलेगी।

बनारस को गंगा नदी का आशीर्वाद प्राप्त है। माँ गंगा के तट पर यह नगर बसा है जो भारत की जीवन रेखा है। गंगा-स्नान और भगवान शिव की उपासना से जहाँ धार्मिक और आध्यात्मिक पुण्य और तृप्ति होती है वहीं घाट यहाँ का सौंदर्यात्मक आकर्षण है। यहाँ श्रद्धालु बैठकर, समय बिताकर अव्यक्त सुख और शांति की प्राप्ति करते हैं। मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाटों पर जीवन और मृत्यु के निरंतर चक्र को देखने का एक अलग ही अनुभव है। यह शहर उन लोगों के लिए एक विशिष्ट आध्यात्मिक स्थल है जो जीवन के अर्थ, मृत्यु और आत्मा के अस्तित्व पर गहरे विचार करना चाहते हैं। यहाँ की संकीर्ण गलियाँ, प्राचीन मंदिर, घाटों पर अर्पित की जाने वाली पूजा और गंगा के किनारे की ठंडी हवा एक ऐसी आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार करती हैं, जिसे शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल है। यह नगर, यहाँ के विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतीक पूजा-पाठ, धर्म और अध्यात्म ही नहीं बल्कि रचनाकारों के लिए भी एक आकर्षण रहे हैं और इन्हें समय-समय पर प्रकारांतर से रचा जाता रहा है। इसी तरह यहाँ से सवा सौ किलोमीटर दूर प्रयागराज कुंभ मेला स्थल है जो भारत का सबसे बड़ा और सबसे लोकप्रिय धार्मिक आयोजन है।

कार्यशाला का महत्व

इस कार्यशाला में पधारे प्रसिद्ध कलाकारों के बनारस घाट से संबंधित अपने कलाकृतियों के माध्यम व हुनर से यहां के छात्र-छात्राएं अवगत होंगे। इस महाकुंभ माह में चित्रकला विभाग अपने इस राष्ट्रीय कार्यशाला के माध्यम से अपने छात्र-छात्राओं के ज्ञान व कौशल में वृद्धि के साथ-साथ विश्वविद्यालय की गरिमा व ख्याती को भी बढ़ाने का कार्य करेगी। कार्यशाला मे तैयार अमूल्य कृतियों को धरोहर के रूप मे विभाग संग्रहीत रखेगा।

 

कार्यक्रम का विवरण

कार्यशाला का उद्घाटन विश्वविद्यालय के रेक्टर महोदय द्वारा दिनांक 27 जनवरी, 2025 को किया जाना है। यह कार्यशाला बनारस घाट की सुंदरता और आध्यात्मिकता को प्रदर्शित करने का एक अवसर होगा। कार्यशाला मे कार्य करने हेतु विभाग प्रसिद्ध चित्रकारों को कैनवास कलर एवं अन्य सामाग्री भी उपलब्ध कराएंगे।

 

बनारस  के प्राचीन और सांस्कृतिक महत्व के चित्रों से बीएचयू के लिए लाभदायक तथ्य –

संस्कृति और विरासत को उभारनाः चित्रकला के माध्यम से बनारस की संस्कृति, कला और इतिहास को उभारने का एक मौका मिलेगा, जो यह बताता है कि बीएचयू अपने स्थान पर सांस्कृतिक मूल्यों के प्रति प्रतिबध्द है।

पर्यटन को प्रोत्साहनः बनारस की पेंटिंग, बीएचयू कैंपस में आकर्षण बढ़ाएगी, जो देश और विदेश के लोगों को कैंपस और शहर की तरफ आकर्षित करेंगी। यह विश्वविद्यालय और शहर के आर्थिक विकास में सहायक होगा।

छात्रों के लिए प्रेरणाः छात्र छात्राओं को एक साथ कई बड़े विख्यात एवं नामचीन कलाकारों के साथ कार्य करने का मंच व अवसर प्रदान करेगा। छात्र छात्राएँ विख्यात कलाकारों के कार्य कौशल से रूबरू होंगे वही कलाकारों को भी प्रोत्साहन प्राप्त होगा। बनारस के साथ साथ कलाकारों व विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं का राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनेगी जो छात्रों को बनारस की संस्कृति और इतिहास के प्रति अध्ययन और अनुसंधान करने के लिए प्रोत्साहित करेगी।

कला और शोध का विकासः बनारस की पेंटिंग, बीएचयू के ललित कला और इतिहास के छात्रों के लिए एक प्रयोगात्मक उद्धरण होगी, जिससे उनका शोध और कला में रुचि बढ़ेगी।

गौरव का प्रतीकः कलाकारों द्वारा की गई पेंटिंग से यूनिवर्सिटी और शहर की एक पहचान बनेगी, जो बनारस की अनुपम विरासत को बढ़ावा देगी। ये ना सिर्फ यूनिवर्सिटी के लिए गौरव का प्रतीक है, बल्कि बनारस को एक विशेष सांस्कृतिक स्थान के रूप में और मजबूत करेगा।

कार्यशाला का उद्देश्य एवं इससे होने वाले लाभ जो निम्नांकित है :-

  1. बनारस की सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शनः वर्कशॉप में बनारस की सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन किया जा सकता है, जिससे लोगों को बनारस की समृद्ध संस्कृति के बारे में जानने का अवसर मिलेगा।
  2. छात्र-छात्राओं को एक साथ कई  बड़े विख्यात व नामचीन कलाकारों के साथ कार्य करने का प्लेटफार्म व अवसर प्राप्त होगा। साथ ही साथ नवाचार को भी बढ़ावा मिलेगा।
  3. कलाकारों को मिलेगा मंच: वर्कशॉप बनारस के कलाकारों को अपने कामों को प्रदर्शित करने और अपनी प्रतिभा को दिखाने का एक मंच प्रदान करेगा जिससे छात्र व चित्रकार दोनों प्रोत्साहित होंगे।
  4. स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावाः वर्कशॉप स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है, क्योंकि लोग बनारस में आकर्षित होंगे और स्थानीय व्यवसायों में निवेश करेंगे।
  5. कला और संस्कृति के प्रति जागरूकताः वर्कशॉप कला और संस्कृति के प्रति जागरूकता बढ़ेगी। जिससे लोग बनारस की सांस्कृतिक विरासत और कला के बारे में जानने के लिए आकर्षित होंगे। साथ ही साथ बनारस घाट की महत्ता मे भी चार-चाँद लगेंगे।
  6. बनारस की पहचान को बढ़ावाः वर्कशॉप बनारस की पहचान को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है, क्योंकि लोग बनारस की सांस्कृतिक विरासत और कला को दुनिया भर में पहचानेंगे।
  7. बनारस के युवाओं को अवसरः वर्कशॉप बनारस के युवाओं को अपनी प्रतिभा को दिखाने और अपने कामों को प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करेगा।

 

कार्यशाला में शामिल होने वाले कलाकारों का विवरणः-

हेमंत द्विवेदी, जिनका जन्म राजस्थान के उदयपुर में हुआ था, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय में एक प्रसिद्ध कलाकार और प्रोफेसर हैं। 35 से अधिक वर्षों के अनुभव के साथ, उन्होंने रचनात्मक चित्रों और परिदृश्यों में विशेषज्ञता रखते हुए दृश्य कला में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

प्रो. द्विवेदी को उनकी असाधारण प्रतिभा को मान्यता देते हुए राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पुरस्कार और कला मेला पुरस्कार सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले हैं। उन्होंने विश्व स्तर पर कई कार्यशालाओं, संगोष्ठियों और प्रदर्शनियों का आयोजन और उनमें भाग लिया है। अपनी कला साधना के अलावा, द्विवेदी लेखन, कविता, रंगमंच और प्रदर्शनी क्यूरेशन में शामिल हैं, जो भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य को समृद्ध करते हैं।

कुमार विकास सक्सेना, एक विख्यात स्वतंत्र (फ्रीलांसर) कलाकार हैं, जिन्होंने पेंटिंग में एम.ए. किया है, उन्होंने बचपन से ही जल रंग, टेम्परा, तेल और ऐक्रेलिक जैसे विभिन्न माध्यमों का जुनूनी ढंग से अन्वेषण किया है। इतिहास और विरासत से गहराई से प्रेरित, उनकी कला समकालीन जीवन, प्रकृति और अतीत के बीच संबंध को दर्शाती है। भारत, यूरोप और एशिया में यात्राओं से प्रभावित, उनके अतियथार्थवादी कार्य ऐतिहासिक संरचनाओं को प्रकृति के तत्वों के साथ मिलाते हैं, जो सह-अस्तित्व और सद्भाव को प्रदर्शित करते हैं।

उल्लेखनीय उपलब्धियों में चीन में “सिल्क रोड आर्टिस्टिक रेंडेज़वस“ (2023) में भारत का प्रतिनिधित्व करना और थाईलैंड की राजकुमारी से सम्मान प्राप्त करना शामिल है। कुमार ने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कला परियोजनाओं में भाग लिया है, सांस्कृतिक विविधता का जश्न मनाया है और वैश्विक स्तर पर कलात्मक सहयोग को बढ़ावा दिया है।

लक्ष्मण ऐले एक प्रसिद्ध भारतीय कलाकार लक्ष्मण ऐले ग्रामीण तेलंगाना की संस्कृति को चित्रित करने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी पूलम्मा श्रृंखला, जीवन की देवी संग्रह का हिस्सा है, जो स्त्री ऊर्जा, प्रजनन क्षमता और प्रकृति की पोषण भावना का सम्मान करती है। समकालीन सौंदर्यशास्त्र के साथ पारंपरिक रूपांकनों को जोड़ते हुए, ऐले विकास और पृथ्वी से जुड़ाव का प्रतीक बनाने के लिए पुष्प पैटर्न का उपयोग करते हैं। उनकी जीवंत रचनाएँ ग्रामीण महिलाओं की कृपा और लचीलापन को दर्शाती हैं, जीवन और सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाती हैं। यह श्रृंखला एक दृश्य और आध्यात्मिक कथा दोनों है, जो सशक्तिकरण और जीवन के दिव्य सार पर जोर देती है।

असित कुमार पटनायक ओडिशा में जन्मे असित कुमार पटनायक एक प्रसिद्ध समकालीन भारतीय कलाकार हैं। एक स्वर्ण पदक विजेता, उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ़ आर्ट एंड क्राफ्ट्स, खलीकोट से बीएफए और बीएचयू, वाराणसी से एमएफए अर्जित किया। अपने अर्ध-आलंकारिक यथार्थवाद के लिए जाने जाने वाले पटनायक के तेल और ऐक्रेलिक काम बनावट वाले अमूर्त और विचारोत्तेजक आकृतियों के माध्यम से मानवीय संबंधों का पता लगाते हैं। उनकी कला 25 से अधिक एकल शो, 100 से अधिक समूह शो और दुनिया भर में प्रतिष्ठित प्रदर्शनियों में प्रदर्शित हुई है, जिसमें फ्लोरेंस बिएनले, आर्ट एक्सपो न्यूयॉर्क और वर्ल्ड आर्ट दुबई शामिल हैं। उनकी कृतियाँ भारत के राष्ट्रपति के संग्रह सहित उल्लेखनीय संग्रहों का हिस्सा हैं।

अरविंद हरिकृष्ण सुथार, गुजरात में पैदा हुए, एमएस यूनिवर्सिटी ऑफ़ बड़ौदा से बीएफए और एमएफए के साथ एक प्रतिष्ठित कलाकार हैं। उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले हैं, जिनमें जापान के कनागावा बिएनले में स्वर्ण पदक और मुख्यमंत्री की “भारत छोड़ो“ आंदोलन प्रतियोगिता, साथ ही कैमलिन आर्ट फ़ाउंडेशन और गुजरात राज्य ललित कला अकादमी से प्रशंसा शामिल है।

अरविंद ने भारत और यूके में एकल प्रदर्शनियों में अपने काम का प्रदर्शन किया है, जिसमें मुंबई के जहांगीर आर्ट गैलरी और यूके के मिल स्टूडियो शामिल हैं। उन्होंने नॉर्वे, जापान और भारत जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उल्लेखनीय समूह प्रदर्शनियों में भाग लिया है और कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए जूरी सदस्य के रूप में कार्य किया है। वर्तमान में बड़ौदा के एमएस विश्वविद्यालय के चित्रकला विभाग में संकाय सदस्य, वे वडोदरा में रहते हैं और काम करते हैं। उनकी कला दुनिया भर के प्रतिष्ठित संग्रहों में शामिल है।

प्रोफेसर (डॉ.) राम विरंजन

प्रोफेसर (डॉ.) राम विरंजन ने जे.वी. जैन कॉलेज, सहारनपुर से ललित कला में व्याख्याता के रूप में 29 वर्षों का शानदार कैरियर शुरू किया है। उन्होंने अपनी सारी उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की। वह 1996 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में व्याख्याता के रूप में शामिल हुए। वह 2004 में ललित कला विभाग में अध्यक्ष बने और 2020 तक बने रहे। अध्यक्ष के रूप में उन्होंने अप्रैल-नवंबर 2018 तक पावलोडर स्टेट यूनिवर्सिटी, कजाकिस्तान में वाइस-रेक्टर के रूप में भी काम किया है। एक प्रशासक के अलावा वह देश के बहुत प्रसिद्ध कलाकार हैं और उनके नाम राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कला दीर्घाओं/संस्थानों सहित तेरह एकल प्रदर्शनियाँ हैं। उन्होंने चीन, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, अमेरिका, मलेशिया, रोमानिया, कजाकिस्तान, स्लोवाकिया, अल्बानिया, हांगकांग, बांग्लादेश, बुल्गारिया और भारत में कई अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों और संगोष्ठियों में भाग लिया। वे “भारत की समकालीन कला“ नामक पुस्तक के लेखक हैं और उन्होंने बीस से अधिक शोध पत्र और समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में कई लोकप्रिय लेख प्रकाशित किए हैं। वे ललित कला में बी.ओ.एस. के सदस्य के रूप में कई विश्वविद्यालयों (20 से अधिक) से जुड़े रहे।

डॉ.  अवधेश मिश्रा का जन्म अयोध्या, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था। डॉ. अवधेश मिश्रा को कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं, जिनमें भारत गौरव रत्न पुरस्कार, सार्थक वेलफेयर सोसाइटी, लखनऊ; शिक्षा रत्न सम्मान, सत्यबंधु भारत समाचार पत्र, लखनऊ; गोल्डन पर्सनालिटी ऑफ इंडिया, सार्थक वेलफेयर सोसाइटी, लखनऊ; कला रत्न सम्मान, रूप शिल्प ललित कला संस्थान, प्रयागराज; मीनाक्षी त्रिपाठी स्मृति सम्मान, विभू एजुकेशनल, सोशल एंड कल्चरल सोसाइटी, लखनऊ; अखिल भारतीय पुरस्कार, उत्कर्ष ललित कला अकादमी, उत्तर प्रदेश; राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार, नाइन फिश एंड डॉट लाइन स्पेस आर्ट गैलरी, मुंबई शामिल हैं।

उपरोक्त राष्ट्रीय कार्यशाला के विषय में इस कार्यशाला की समन्वयक सह-संकाय प्रमुख प्रो0 उत्तमा दीक्षित ने दिनांक 24 जनवरी 2025 को हुई प्रेस वार्ता में निम्नांकित महत्वपूर्ण जानकारियां दी :-

बनारस और कुंभ मेला, दोनों ही भारतीय धार्मिक आस्था, संस्कृति और परंपराओं के अद्वितीय प्रतीक हैं, जो आज भी लोक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। ये स्थल न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि भारतीय सभ्यता के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। चूँकि ये स्थल/नगर तथा यहाँ व्याप्त विचार, आस्था और सभी गतिविधियां समानांतर रूप से रचनाकारों का भी आकर्षण रही हैं और समस्त विधाओं में इन विषयों पर खूब रचा गया गया है जो समाज के लिए प्रेरणास्रोत की तरह स्वीकार किया गया है, इसलिए इन विषयों के माहात्म्य से अनुप्राणित हो काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का चित्रकला विभाग देश के विभिन्न क्षेत्रों के अपने-अपने रचनाकर्म की विशिष्टताओं के लिए प्रख्यात सात चित्रकारों को आमंत्रित कर दिनांक 27 जनवरी से 02 फरवरी 2025 तक सप्तदिवसीय चित्रकला शिविर आयोजित कर रहा है जिसके साथ आठ स्थानीय कलाकार भी सजीव चित्रकारी करेंगे। शिविर में अरविन्द सुथार (बदौड़ा), असित कुमार पटनायक (दिल्ली), हेमंत द्विवेदी (उदयपुर), लक्ष्मण एले (तेलंगाना), कुमार विकास सक्सेना (दिल्ली), अवधेश मिश्र (लखनऊ) और राम विरंजन (कुरुक्षेत्र) के साथ कार्यशाला की समन्वयक प्रो० उत्तमा दीक्षित के साथ प्रो० विजय सिंह, श्री के०सुरेश कुमार, डॉ० महेश सिंह, डॉ० ललित मोहन सोनी, डॉ० सुरेश चन्द्र जांगिड़ (सह-समन्वयक), श्री ओम प्रकाश गुप्ता, डॉ० सुनील कुमार पटेल (सह-समन्वयक) और श्री विजय भगत चित्रकला विभाग में आयोजित राष्ट्रीय कार्यशाला बनारस घाट का सौन्दर्य एवं आध्यात्मिकता के साथ ही समानांतर रूप से प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ के माहात्म्य विषय पर अपनी-अपनी शैली में काम करेंगे। इस कार्यशाला से न केवल कला मंच बल्कि बनारस शहर की संस्कृति, परंपरा और आर्थिक विकास को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का अवसर भी प्रदान करेगा। इस राष्ट्रीय कार्यशाला से बनारस की सांस्कृतिक एवं समृद्ध विरासत को बढ़ावा भी मिलेगा।

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