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डॉ. महिपाल चौबे ने कुक्कुट पालन के साथ-साथ पशुपालन के भी विभिन्न आयामों के बारे में दी विस्तार से जानकारी
वाराणसीः पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान संकाय, कृषि विज्ञान संस्थान, राजीव गांधी दक्षिणी परिसर, काशी हिंदू विश्वविद्यालय बरकछा, मिर्जापुर में राष्ट्रीय कृषि विकास योजना द्वारा वित्त पोषित और सहयोग प्राप्त परियोजना  “कुक्कुट पालन: विंध्यान क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक कमजोर वर्ग की स्थायी आजीविका के लिए बैकयार्ड पोल्ट्री फार्म” के अन्तर्गत छठी तीन दिवसीय बैकयार्ड पोल्ट्री प्रशिक्षण कार्यशाला के आयोजन का समापन किया गया।
इस कार्यशाला के अन्तर्गत विंध्य क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक कमजोर वर्ग की टिकाऊ आजीविका के लिए बैकयार्ड पोल्ट्री फार्म को एक विकल्प के रूप में चुनने के लिए सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को चुनना, उन्हें प्रशिक्षित करना और शुरुआत के लिए आवश्यक मूलभूत घटकों की प्राथमिक उपलब्धता को सुनिश्चित किया जाना शामिल था।
आज समापन समारोह में मुख्य अतिथि पशु पोषण विभाग के सहायक आचार्य डॉ. महिपाल चौबे रहे जिन्होंने किसानों के समक्ष कुक्कुट पालन के साथ साथ पशुपालन के विभिन्न आयामों के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने किसानों को कुक्कुट पालन हेतु प्रोत्साहित किया।

समारोह में कार्यशाला सचिव डॉ. उत्कर्ष कुमार त्रिपाठी ने मुर्गी पालन के फायदों और परिवार के आर्थिक संतुलन में कुक्कुट पालन के स्वरूप को समझाया। उन्होंने बताया कि जहां एक तरफ व्यावसायिक कुक्कुट पालन में हमें अति संवेदनशील आवास व्यवस्था, महंगे उपकरण, बाजार में मिलने वाले मुर्गी दाने के साथ इसको शुरू करना पड़ता है, वहीं इसके साथ ही हमें बहुत ज्यादा रखरखाव और ध्यान देने की आवश्यकता पड़ती है। वहीं पर बैकयार्ड कुक्कुट पालन बहुत ही कम लागत में, बहुत ही कम आवास सुविधाओं के साथ और घर की महिलाओं और बच्चों के द्वारा भी प्रबंधित किया जा सकने वाला एक अत्यंत ही सफल ग्रामीण उद्यम साबित हो सकता है। बैकयार्ड कुक्कुट पालन में हम भारतीय नस्लों को ज्यादा महत्व देते हैं क्योंकि उनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता और हमारे वातावरण में अनुकूलन की विशेष क्षमता पहले से ही प्रकृति प्रदत्त होती है, जिससे उनका पालन करने में हमें अतिरिक्त व्यवस्थाओं पर व्यय नहीं करना पड़ता है। ये परिस्थितियां उन्हें रोगों से लड़ने हेतु एवं किसी भी वातावरण में अपने आप को सुलभ तरीके से उत्पादकता की ओर ले जाने में सक्षम और सफल बनाती हैं। बैकयार्ड कुक्कुट पालन से हमें अंडाऔर मांस सहज ही उपलब्ध हो सकता है, जिससे कि हम अपने परिवार की पोषण संबंधी आवश्यकता तो पूरी कर ही सकते हैं, साथ ही साथ अधिक पैदावार होने की दशा में इसको बाजार में भी बेच सकते हैं, जिससे परिवार की आय में वृद्धि हो सकती है। यह एक अतिरिक्त आय के रूप में गरीब परिवारों के लिए सहायक सिद्ध हो सकता है। और इसके कई लाभों की वजह से हमारे पास इसको व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए प्रेरणा भी मिल सकती है।

कार्यशाला सह सचिव डॉ. अनुराधा कुमारी ने परियोजना में महिलाओं हेतु  सहभागिता के महत्व से सभी को अवगत कराया और महिलाओं को इसे व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित किया। इस बार कार्यशाला में 41 लाभार्थियों ने प्रतिभागिता हेतु पंजीकरण किया था जिसके लिए प्राथमिकता स्वरूप जागरूक महिलाओं एवं बेरोजगार युवाओं का चयन किया गया।
इस छठी तीन दिवसीय कार्यशाला के लिए दांती, लाल गंज, मनिहान, बहुती, बिरमापुर, बेलहरा आदि ग्रामीण क्षेत्रों से लोगों का चयन किया गया। कार्यशाला का आयोजन 18-20  मार्च, 2024 तक के लिए किया गया। जिसके समापन के समय प्रतिभागियों को चूजा, दाना, दवा आदि एवं प्रमाणपत्र वितरण के साथ साथ परियोजना के अंतर्गत प्रकाशित “बैकयार्ड कुक्कुट पालन” शीर्षक से बहु-उपयोगी पुस्तक का भी वितरण किया गया। इस  कार्यक्रम में डॉ. अभिषेक सिंह, डॉ. अंशुमान कुमार, डॉ अजीत सिंह, डॉ सरवन, डॉ. अजय चतुर्वेदानी आदि उपस्थित रहे।

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