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हैदराबादः हिन्दी विभाग (मानविकी संकाय), हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद द्वारा आधुनिक हिन्दी कविता के यशस्वी कवि एवं लेखक श्री नरेश मेहता को समर्पित राजा धनराजगीर धर्मादाय दक्खिनी संगोष्ठी का आयोजन विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय के ऑडिटोरियम में किया गया । विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.जे.राव और राजा धनराजगीर की सुपुत्री राजकुमारी इंदिरा धनराजगीर के मार्गदर्शन में आयोजित इस संगोष्ठी विषय था ‘आधुनिक हिन्दी के विकास में दक्खिनी हिन्दी की भूमिका’ जिसमें दक्खिनी हिन्दी के प्रख्यात विद्वान प्रो. वी.पी. मुहम्मद कुंज मेत्तर ने बीज व्याख्यान दिया । अपने वक्तव्य में प्रो. मेत्तर ने कहा कि अमीर खुसरो, कबीर और मेरठ के संत गंगाधर आदि कवियों के बाद उत्तर में खड़ी बोली ने भारत में साहित्यिक माध्यम की भाषा के पद से अपदस्थ हो गई थी तब दक्षिण में ‘दक्खिनी’ के रूप में अपनी प्रतिष्ठा पा रही थी। और उस समय दक्खिनी के विकास में जयपुर, बीदर, गुलबर्गा, गोलकुंडा, अहमदनगर, बरार आदि भिन्न-भिन्न रियासतों में हुआ।

दक्खिनी का यह प्रभाव बढ़ता चला और तमिलनाडु और केरल भी दक्खिनी हिंदी भाषा और साहित्य के प्रभाव से लाभान्वित हुए बिना नहीं रहे। गुजरात से लेकर कन्याकुमारी तक प्रचलित दक्खिनी का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इसका मूल ढांचा खड़ी बोली ही है। संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता मानविकी संकाय के अध्यक्ष, प्रो. वी. कृष्ण ने की और उन्होंने दक्खिनी हिंदी के अध्ययन एवं अनुसंधान की आवश्यकता पर बल दिया। इस संगोष्ठी में हिंदी विभाग की अध्यक्ष प्रो. सी.एच.अन्नपूर्णा ने स्वागत वचन प्रस्तुत किया । इस सत्र का संचालन संगोष्ठी के संयोजन डॉ. आत्माराम ने किया ।

इस एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम सत्र की अध्यक्षता दक्खिनी हिन्दी की विशेषज्ञ डॉ. अवधीश राणी बावा साहेबा ने की । इस सत्र में डेली हिन्दी मिलाप, हैदराबाद के ब्यूरो चीफ और दक्खिनी हिंदी के विशेषज्ञ श्री एफ.एम. सलीम ने ‘लोकरुचि के बावजूद गंभीर नहीं हो पाया आधुनिक दकनी गद्य’ पर और माइक्रोसॉफ्ट के सीनियर डायरेक्टर, प्रोग्राम मैनेजमेंट एवं दक्खिनी हिंदी के जानकार व कवि श्री प्रवीण प्रणव ने ‘दक्खिनी के दिये का बाती – सुलेमान ख़तीब’ पर विचारोत्तेज व्याख्यान प्रस्तुत किया ।

संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में प्रो. हाशमबेग मिर्झा, ए.एस. एंड सीएम, नलदुर्ग, महाराष्ट्र ने दक्खिनी हिंदी की विकास प्रक्रिया पर विचार किया और पांडुलिपि विशेषज्ञ डॉ. शेख़ अब्दुल ग़नी, टी.डी.ओ.एल. एंड आर.आई., हैदराबाद ने ‘दक्खिनी की संरचना और उस पर संस्कृत का प्रभाव’ और गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज फॉर वूमेन, बेगमपेट,हैदराबाद की डॉ. अफ़सर उन्नीसा बेगम ने ‘वजही का साहित्य : सांस्कृतिक सद्भावना’ ने प्रपत्र प्रस्तुत किया।

इसके बाद आयोजित समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ.नरेन्द्र राय ने दक्खिनी हिंदी की कविताओं का पाठ किया । इसमें नरेन्द्र ने अपने कई लोकप्रिय दक्खिनी कविताओं का पाठ किया जिसमें ‘राम एक पैदा नै होरहै, रावण काइकि बढ़ते जारई’ भी प्रस्तुत किया । इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में हिंदी विभाग और उर्दू विभाग के कई शोधार्थी और विद्यार्थी गण में के अतिरिक्त बड़ी संख्या में नगर द्वय विद्वानों ने भाग लिया।

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