वाराणसीः काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के दुग्ध विज्ञान एवं खाद्य प्रोद्योगिकी विभाग में कार्यरत सहायक प्रोफेसर सुनील मीणा एव ंबी.आर.ए.बी.यू. के कुलपति प्रो0 दिनेश चन्द्र राय और टीम में कम उपयोग वाली कृषि फसल जैनोपोडिम एल्बम (बथुआ) पर अध्ययन कर इसके दीर्घकालीन संरक्षण के तकनीक विकसित की हैं।
इसमें प्रचूर मात्रा में पौष्टिक तत्व पाये जाते हैं लेकिन फसल ज्यादा दिन टिकाऊ नहीं होती है। अब इसे संरक्षित कर ऑंफ सीजन में भी उपयोग किया जा सकेगा। डा0 सुनिल मीणा ने बताया की उचित संरक्षण विधियों का इस्तेमाल कर बथुआ जैसे पोशक तत्वों से भरपुर पौधो की प्रजतियॉ गरीबी, भुख एवं कुपोषण से लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती हैं साथ ही आय उत्पन्न करने और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में भी मदद करती हैं। बथुआ और अन्य पत्तेदार सब्जिया सर्दी के मौसम में उगाई जाती है।
उनमें पानी की मात्रा अधिक होने के कारण जल्दी खराब हो जाती हैं सर्दी में अत्यधिक उत्पादन अपर्याप्त भडांरण, परिवहन और प्रसंस्कर्ण क्षमता के कारण इन मौसमी सब्जियों की भारी बर्बादी होती हैं इन मौसमी सब्जियों को संरक्षित करने वाली संरक्षण तकनीको का उपयोग और पता लगाना अतयंत महत्वपूर्ण हैं, ताकि इनका उपयोग आफ-सीजन में किया जा सके।
सुखाना एक प्राचीन तकनीक है, जिससे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने पर भोजन को सरक्षित कर सकते हैं। साथ ही लंबे समय तक संगहित और उपयोग किया जा सकता है। डा0 मीणा एवं प्रो0 राय के नेतृत्व वाले शोध दल में कृषि विज्ञान संस्थान के सहायक प्रोफेसर सुनील मीणा, एवं बी. कीर्ति रेड्डी के साथ ही एम.पी.ए.यू.टी. उदयपुर के डा0 कमलेश कुमार और प्रियब्रत गौतम शामिल रहे।
अघ्ययन का निष्कर्ष विश्वस्तर पर प्रतिष्ठित मइक्र्रोकेमिकल जर्नल ने प्रकाशित हुआ हैं डा. मीना में कहा की वर्तमान में जलवायु परिवर्तन और शहरी करण में वृद्धि के कारण खाद्य असुरक्षा एवं वैश्विक चुनौती के रूप में सामने आई हैं। वैश्विक खाद्य सुरक्षा से निबटने के लिए कई प्रयास किया गए है। डा. मीणा ने बताया कि अध्ययन में सी. एल्बम (बथुआ) को संरक्षित करने और भंडारण स्थिरता पर फोकस किया गया है।