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चरम नैराश्य की मनःस्थिति में पहुँचकर मनुष्य आत्महत्या करने की ओर प्रवृत्त होता है। स्वस्थ-सामान्य लोगों को तो छोड़ ही दीजिए, मेरी तरह के मेंटल पेशेंट के दिमाग में भी यह उधेड़बुन चलती रहती है कि बेंजो ग्रुप की चिंतारोधी दवा और ब्लड प्रेशर को नीचे लाने वाली दवा खाकर व्यक्ति बड़ी आसानी से आत्महत्या करने के ख्याल को त्याग सकता है और मनोरोग चिकित्सक के पास जाकर समुचित उपचार प्राप्त कर सकता है।
लेकिन, निर्णय लेने की शक्ति ही तो छीज जाती है और संकल्पशक्ति-इच्छाशक्ति मर जाती है, रसायनों के असंतुलन के कारण व्यक्ति जिस तरह से सोच रहा होता है, उसी को क्रियान्वित करने के लोभ का वह संवरण नहीं कर पाता। रेसिंग थाट्स की समस्या के कारण असंगत लेखन से बचने को लेकर अपने आत्मसंघर्ष की रोशनी में मैं इन बातों को लिपिबद्ध कर रहा हूँ। मेंटल पेशेंट दसों दिशाओं में खुद अपना ख्याल नहीं रख सकता। नौ दिशा में सतर्क रहेगा तो दसवीं दिशा छूट जाएगी और वह अनर्थ कर बैठेगा।
मुझे बाइपोलर डिसआर्डर है, स्किजोफ्रेनिया के भी कुछ लक्षण हैं। मेरी मानसिक बीमारी के कई सिरे हैं। पहला सिरा मध्यम दर्जे का उन्माद, दूसरा सिरा घनघोर उदासी, तीसरा सिरा रेसिंग थाट्स और आखिर में आती है अनिद्रा की समस्या। अपने परिवेश और देश-काल से कट जाने की समस्या तो शाश्वत है ही। अमेठी में लोग मुझे मेंटल, फिलोसफर, हाफ माइंड, क्रैक-सनकी वगैरह कहते रहे हैं। पता नहीं बनारसियों को मैं किस तर्क से चालू-शातिर वगैरह लगता हूँ?
रेसिंग थाट्स से उबरने की एकमात्र कारगर दवा सोडियम वैल्प्रोएट है। इसकी स्टैंडर्ड डोज 500-500 है। इसके पार्श्व-प्रभाव में भूख का नहीं लगना, गैस की समस्या और इसके कारण जोड़ों में दर्द, गले में चिपचिपे पदार्थ का फँसना, वजन का बढ़ना और नींद का डिस्टर्ब होना शामिल है। इसी दवा के कारण अंडकोष के बाएं हिस्से और मलद्वार में नर्व पेन रहने लगा था। दर्द काफी भयंकर रहता था। सर्जन-यूरोलॉजिस्ट को दिखाया-दवा खाई पर बेसूद। इस दवा के बंद कर देने पर ऊपर बताई गई समस्त समस्याएं खत्म हो गईं।
पिछले साल 20 अगस्त को एंडोऑक्सिफेन (ब्रांड नेम जोनाल्टा) परचे पर लिखी गई। गुस्से पर यह दवा एकदम से कारगर है। मारे क्रोध के मुँह से झाग निकलना, चीखना-चिल्लाना, माँ-बहन करना, बर्तन पटकना सब कुछ पहली डोज से ही बंद हो गया था। मैं बहुत खुश था कि दवा लह गई है। लेकिन मैं गलत था। उदासी और रेसिंग थाट्स की समस्या जस की तस बनी रही।
अभी एक हफ्ता हुआ सोडियम वैल्प्रोएट फिर से शुरू किया है। दोपहर बाद 500 एमजी ले रहा हूँ। आज सुबह शीतल बेवाल से बात हो रही थी। उन्होंने सुझाव दिया कि चाहो तो सुबह 250 एमजी लेकर देखो। कल से उनकी सलाह पर अमल करूँगा क्योंकि पहली मीटिंग मैं बहुत स्वस्थ महसूस नहीं कर रहा हूँ। शीतल बेवाल साइकियाट्री की नई दवाओं के रिसर्च में हिस्सा लेते रहे हैं और इस कारण मेरे आत्मीय मित्र हैं।
नींद के लिए मैं क्यूटियापिन 100 एंमजी लेता हूँ, इससे कम की डोज का उपचारात्मक असर नहीं होता, सिर्फ नींद आती है। लेकिन, इससे अधिक की डोज सोने-जागने के पैटर्न को प्रभावित करती है और पाचन-तंत्र संबंधी गड़बड़ियाँ पैदा करती है।

कामता प्रसाद 

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