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अलीगढ़ 24 फरवरीः अलीगढ़ः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के आधुनिक भारतीय भाषा विभागान्तर्गत मराठी अनुभाग और केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के संयुक्त तत्वावधान में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर “राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और भाषाएं’’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि कुलसचिव मोहम्मद इमरान आई.पी.एस. ने कहा कि नई शिक्षा नीति 2020 की शुरुआत एक विशिष्ट शिक्षा व्यवस्था की कल्पना करती है, जो प्राचीन ज्ञान और शिक्षा के तरीकों को आधुनिक पाठ्यक्रम के साथ जोड़ती है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति पारंपरिक भाषाओं और अपनी जड़ों का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित करेगी बल्कि इसके माध्यम सेछात्रों में सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शैक्षिक अनुभव भी प्राप्त होगा।

भारत सरकार के रोजगार समाचार के पूर्व महाप्रबंधक श्री हसन जिया ने अपने विचार साँझा करते हुए कहा कि आजादी के पश्चात भारतीय शिक्षा के इतिहास में शैक्षिक सुधारों के लिए युगांतकारी परिवर्तन की झलक राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में देखने को मिलती है। शैक्षिक प्रणाली का उद्देश्य अच्छे इंसानों का विकास करना है, जो तर्कसंगत विचार और कार्य करने में सक्षम हो। उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य ऐसे योग्य लोगों को तैयार करना है जोकि अपने संविधान द्वारा परिकल्पित समावेशीऔर बहुलतावादी समाज के निर्माण में बेहतर तरीके से योगदान कर सकें।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के प्रो. जियाउररहमान सिद्दीकी ने नई शिक्षा नीति पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि जिन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मुद्दे, उपलब्धियों, चुनौतियों, अवसरों एवं दृष्टिकोण आदि पर विस्तारपूर्वक अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि दुनिया भर के कई विकसित देशों में यह देखने को मिलता है कि अपनी भाषा, संस्कृति और परंपराओं में शिक्षित होना कोई बाधा नहीं है, बल्कि वास्तव में शैक्षिक, सामाजिक और तकनीकी प्रगति के लिए इसका बहुत बड़ा लाभ ही होता है।

समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए सामाजिक विज्ञान शाखा के अधिष्ठाता प्रो. मिर्जा असमर बेग ने कहा कि, “उचित बुनियादी शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिध्द अधिकार है । उन्होंने कहा कि नयी शिक्षा नीति को सभी विद्यार्थियों के लिए, चाहे उनका निवास स्थान कहीं भी हो, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध करानी होगी। इस कार्य में ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहे समुदायों, वंचित और अल्प-प्रतिनिधित्व वाले समूहों पर विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत होगी।

संगोष्ठी के निदेशक डॉ. ताहेर पठान कहा कि,“प्राचीनभारतीय ज्ञान और विचार की समृद्ध परंपरा के आलोक में वर्तमान एवं भविष्य की शैक्षणिक आवश्कताओं को ध्यान में रखकर यह नीति तैयार की गयी है। ज्ञान, प्रज्ञा और सत्य की खोज को भारतीय विचार परंपरा और दर्शन में सदा सर्वाेच्च मानवीय लक्ष्य माना जाता था। भारतीय संस्कृति और दर्शन का विश्व में बड़ा प्रभाव रहा है। वैश्विक महत्व की इस समृद्ध विरासत को आने वाली पीढ़ियों के लिए न सिर्फ सहेज कर संरक्षित रखने की जरूरत है, बल्कि हमारी शिक्षा व्यवस्था द्वारा उस पर शोध कार्य होने चाहिएउसे और समृद्ध किया जाना चाहिए और नए-नए उपयोग भी सोचे जाने चाहिए। शिक्षा व्यवस्था में किये जा रहे बुनियादी बदलावों के केंद्र में अवश्य ही शिक्षक होने चाहिए।”

 

जनसंपर्क अधिकारी उमर पीरजादा ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लागू करने के लिए एएमयू द्वारा उठाये गये कदमों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि एएमयू ऐसा पहला शिक्षण संस्थान है जो सरकारी नीतियों को लागू करने के लिए अग्रिम पंक्ति में शामिल है।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. शाकिर अहमद नायकू ने किया। आधुनिक भाषा विभाग के अध्यक्ष प्रो. एम.ए. झरगर ने संगोष्ठी का सारांश पेश किया। डॉ. तमिल सेल्वन ने अतिथियों एवं शोधर्थियों का सेमीनार में शिरकत करने पर धन्यवाद ज्ञापित किया ।

संगोष्ठी के अंतिम दिन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष प्रो. पीताबास प्रधान, दर्शनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो. अकील अहमद, एनईपी सेल निसार अहमद तथा जनसंपर्क अधिकारी उमर पीरजादा, शिक्षा सलाहकार डा. स्वालेहा जैनी आदि ने विशेष व्याख्यान प्रस्तुत किये तथा छात्र व छात्राओं द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर दिये।

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