संपादकीय टिप्पणीः बिहार की राजधानी पटना में कॉ. नंदकिशोर सिंह की अगुआई में आयोजित कन्वेंशन में यह भी कहा गया कि जंगली माओवादियों को मैदानी माओवादियों से लाइन का ज्ञान लेना चाहिए कि समाज पूँजीवादी है। मार्क्सवाद अगर कर्मों का मार्गदर्शक सिद्धांत है तो सबसे पहले समस्त माले-ग्रुपों को अपने माओवादी या माओ-विचारधारा का मानने वाले के रूप में खुद को विज्ञापित करना चाहिए, जिससे सभी एक हैं, जनता में इसका संदेश जाए। दूसरे, जिस लेवल की कुर्बानियाँ जंगली भाई दे रहे हैं, तुम भी उसी लेवल का संघर्ष अपने इलाके में विकसित करो और स्टेट के गोचर अंगों से लो ठकाचा।
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सुविधा के साथ किए जा रहे ऐक्टिविज्म का मोल न तो जनता की नजर में कुछ है और न ही जंगली भाइयों की नजर में। ————- कहना तो नहीं चाहिए पर सच तो यह है कि खुद जंगली भाइयों के मैदानी भाई महुए की दारू पीकर टुन्न होकर बिरहा गा रहे हैं जबकि उनका अपना क्लास १२ घंटे खटते हुए खून हग रहा है। ————— परजीवी-लखैरों से माओवादियों को क्यों बात करनी चाहिए भला? साइंस को व्यवहार में उतारकर दिखाओ, अपने इलाके में कुछ बड़ा करके दिखाओ, फिर वे जरूर तुमसे बात करेंगे, हो सकता है कि लाइन का ज्ञान भी लेने लगें, अभी तो वे तीन करोड़ जनता के निर्विवाद नेता है पर तुम्हारे पास कितने लोग हैं? नीचे प्रेस नोट जस का तस
*ऑपरेशन कगार को बंद करने और माओवादियों से शांति वार्ता बहाल करने हेतु पटना में जन अभियान के बैनर तले कन्वेंशन का आयोजन*
बिहार में कार्यरत जनतांत्रिक एवं क्रांतिकारी संगठनों के साझा मंच जन अभियान, बिहार के बैनर तले 3 जून,2025 को पटना के गांधी संग्रहालय में *जनविरोधी व दमनकारी ऑपरेशन कगार को बंद करने और माओवादियों से शांति वार्ता बहाल करने* हेतु एक कन्वेंशन का आयोजन किया गया।
शुरुआत में जन अभियान, बिहार के संयोजक नन्द किशोर सिंह ने कन्वेंशन का विषय प्रवेश कराते हुए प्रतिनिधियों का स्वागत एवं अभिवादन किया और साथ ही चार सदस्यीय अध्यक्ष मंडल का प्रस्ताव किया।
अध्यक्ष मंडल में कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया के नेता सतीश कुमार, जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी के प्रांतीय संयोजक मणिलाल, जनवादी लोक मंच के नेता पुकार और नागरिक अधिकार रक्षा मंच के नेता संजय श्याम शामिल थे।
कन्वेंशन को सम्बोधित करने वाले प्रमुख वक्ताओं में जनवादी लोक मंच के नेता साथी बलदेव झा, सीपीआई (एमएल) के प्रांतीय सचिव मंडल के सदस्य कॉ. अशोक बैठा, सीपीआई (एमएल)-न्यू डेमोक्रेसी के राज्य प्रभारी कॉ. वी.के.पटोले, जसवा के राज्य संयोजक साथी मणिलाल, एमसीपीआई (यू) के नेता निरंजन, सीसीआई के नेता कॉ. पार्थ सरकार, सर्वहारा जन मोर्चा के नेता साथी राधेश्याम, नागरिक अधिकार रक्षा मंच के नेता साथी रंजीत, बिगुल मजदूर दस्ता की नेता कॉ. वारुणी , कम्युनिस्ट चेतना केन्द्र के साथी राम लखन, वरिष्ठ राजनीतिकर्मी साथी चक्रवर्ती अशोक प्रियदर्शी , पीयूसीएल (बिहार) के महासचिव श्री सरफराज, पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता श्री अशोक कुमार, सामाजिक कार्यकर्ता श्री मनोज कुमार झा, कम्युनिस्ट सेंटर फॉर साइंटिफिक सोशलिज्म के साथी इन्द्रजीत ,आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
कन्वेंशन में जन संस्कृतिखलिहर-परजीवी ने कहा कि हे माओवादियों उसके पास आओ और दिशा का लो ज्ञान मंच के वरिष्ठ साथी प्रमोद यादव तथा अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा के साथी नरेश राम ने क्रांतिकारी गीतों की प्रस्तुति की।
वक्ताओं ने एक स्वर से ऑपरेशन कगार को जनविरोधी एवं दमनकारी बतलाया और उसपर अविलम्ब रोक लगाने की मांग की। अनेक वक्ताओं ने छत्तीसगढ़ एवं दंडकारण्य इलाके में ऑपरेशन कगार के तहत चलाए जा रहे सैन्य अभियान को भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार का फासिस्ट अभियान बताया। कन्वेंशन में यह बात उभर कर आई कि सरकार का दमन अभियान सिर्फ छत्तीसगढ़ और माओवादियों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश में मजदूरों, किसानों,अन्य मेहनतकश वर्गों व शोषित उत्पीड़ित जमातों और दबे-कुचले समुदायों के न्यायपूर्ण आन्दोलनों के साथ भी सरकार का रवैया बेहद शत्रुतापूर्ण और दमनकारी है।
जन अभियान,बिहार द्वारा पेश आलेख में मांग किया गया कि
1. छत्तीसगढ़ में चलाये जा रहे ऑपरेशन कगार को तत्काल प्रभाव से बंद किया जाए तथा इसमें लगाये गये सुरक्षा बलों को वहां से हटाया जाए।
2. आदिवासियों व आम जनता के खिलाफ दायर सभी फर्जी मुकदमे वापस लिए जाएं।
3. हाल के वर्षों में छत्तीसगढ़ में हुई सभी मुठभेड़ों और मारे गये आदिवासियों के मामले की जांच सर्वोच्च न्यायालय के पीठासीन जज की अध्यक्षता में हो और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
4. जल, जंगल, जमीन से सम्बन्धित देशी और विदेशी कॉरपोरेट कम्पनियों से किये गये सभी समझौतों को रद्द किया जाए।
5. माओवादी संगठन से शांति वार्ता की जाए और समस्या के मूल में जाकर उसका समाधान निकाला जाए।
एक बेहद गंभीर माहौल में सभा का संचालन किया गया। शुरुआत से ही सभागार में एक चुनौतीपूर्ण ढंग का दृढ़ संकल्प एवं विश्वास व्याप्त था जो अंत तक मौजूद रहा। प्रत्येक वक्ता ने 10 मिनट की समय सीमा में अपनी बातें रखने की कोशिश की। कन्वेंशन ने तीन बातों पर मुहर लगा दी – पहली तो यह कि जनविरोधी एवं दमनकारी सैन्य अभियान ऑपरेशन कगार पर अविलम्ब रोक लगे ; दूसरी यह सीपीआई (माओवादी) द्वारा की गई शांति वार्ता की अपील को केन्द्र सरकार स्वीकार करें और जल्द से जल्द उनसे वार्ता कर समस्याओं का हल निकाले और तीसरी यह कि केंद्र की फासिस्ट मनोमिजाज वाली सरकार के निशाने पर सिर्फ माओवादी व नक्सलवादी नहीं हैं ,बल्कि देश की वो तमाम प्रगतिशील व सच्ची जनवादी शक्तियां शामिल हैं जो अन्याय, अत्याचार, शोषण, उत्पीड़न व दमन के खिलाफ मुखर होकर आवाज उठाती हैं। सरकार ने यूं ही ऐसी तमाम शक्तियों को ‘अर्बन नक्सल’ के नाम से नहीं नवाजा है। इसलिए आज की लड़ाई फासीवादी शक्तियों को परास्त करने और जनतांत्रिक अधिकारों को बचाने की भी है।
साथी सतीश कुमार के ओजस्वी अध्यक्षीय भाषण के बाद कन्वेंशन की समाप्ति की घोषणा की गई।